Posted inहिंदी कहानियाँ

बस एक ही इच्छा – गृहलक्ष्मी कहानियां

उसका भोला-भाला चेहरा न जाने क्यों मुझे बार-बार अपनी ओर आकर्षित किये जा रहा था। उसने मेरा सूटकेस पकड़ा और कमरे की ओर चल दिया। कमरे से सम्बंधित सभी जानकारी देने के बाद वह बोला‘अच्छा बाबू जी ! मैं चलूं? मेरी स्वीकृति के बाद वह लौट गया।

Posted inहिंदी कहानियाँ

शिनाख्त हो गई है – गृहलक्ष्मी कहानियां

सनसनाती हुई-सी उठी हौक ने मुझे चीर डाला । लगा, उठने की चेष्टा में मैं हाथ-पैर हिलाना चाहती हूं, लेकिन न तो अपनी उंगलियों को मुट्ठी की शक्ल दे पा रही हूं, न घुटनों से टांगें मोड़ सकती हूं, न धड़ उठा सकती हूं । बस, समग्र चेतना जैसे दृष्टि में आकारित हो लपकती है और टेलीफोन की घंटी से चिपककर खड़ी हो जाती है-कौन होगा फोन पर? कहां से आया होगा? कैसी सूचना होगी? ‘कहीं’ ‘कहीं…’ में व्याप्त आशंका समूची देह को एकबारगी थर्रा देती है। सत्य जानना-सुनना चाहकर भी शायद मैं नहीं सुन-सह सकती जो मेरी उम्मीद के लहलहाते नन्हे पौधे को बाड़ छांटनेवाली अजगर-सी कैंची चला लीलने को आतुर है। मैं सहमकर आंखें मींच लेती हूं, शब्दों से पहले चेहरे बोलते हैं और रिसीवर उठाए दीदी के चेहरे ने कुछ उगल दिया तो?

Posted inहिंदी कहानियाँ

प्रीति की विदाई – गृहलक्ष्मी कहानियां

पिछले एक सप्ताह से चल रहा बारिश का दौर अब थम सा गया। मौसम ठंडा और सुहावना हो गया था। शहर की पहाड़ियां हरी भरी आकर्षक हो गई थीं ।

Posted inहिंदी कहानियाँ

खामोश सा अफसाना – गृहलक्ष्मी कहानियां

शेफाली से बिछड़े अतुल को दस साल से ज्यादा हो गए थे पर अतुल उसे एक पल को भी नहीं भूल पाया। उसकी निगाहें हर जगह शेफाली को ही ढूंढती रहती। इस बीच अतुल की शादी हो गई और वो प्यारे से बच्चों का पिता भी बन गया पर शेफाली…

Posted inहिंदी कहानियाँ

चुनाव चकल्लस – गृहलक्ष्मी कहानियां

आजकल की राजनीति तो आप जानते ही हैं बिना बानरीय उछल-कूद, मार-पीट, पत्थर-बाजी सर फुटौव्वल, हाथ-पैर तुड़व्वल के चुनाव-प्रचार का न श्री-गणेश होता है न समापन! हो सकता है आने वाले अगले दशक में चुनाव-प्रचारक-महावीर अपने साथ अणु-परमाणु बम और मिसाइल लेकर निकलें!

Posted inहिंदी कहानियाँ

दुनिया की सबसे हसीन औरत – गृहलक्ष्मी कहानियां

“खुर्शीद ,नाम तो बहुत खूबसूरत है “,सादिक के चेहरे पर नाम सुनते ही जैसे मुस्कुराहट नाच गई “वह भी कम खूबसूरत नहीं होगी, सलमा भाभी की आवाज में शोखी घुल गई ।कई बार सादिक ने सोचा भी ,कि किसी बहाने खुद जाकर एक बार देख आये।आखिर पूरी जिंदगी की बात है, लेकिन फिर जैसे उसे अपनी इस सोच पर ही शर्म आई ।आखिर सलमा भाभी कोई पराई तो नहीं, उन्होंने देख सुनकर ही रिश्ता भिजवाया होगा।

Posted inहिंदी कहानियाँ

आत्मसम्मान – गृहलक्ष्मी कहानियां

रोज-रोज अपने आत्मसम्मान पर चोट सहन करती उर्मिला अपने मन में सोच रही थी कि आख़िर क्यों वह अपने आत्मसम्मान को प्रतिदिन तार-तार होने देती है? क्यों बात-बात पर ताने सुनती है? क्या इस परिवार के लोगों को सम्मान देना सिर्फ़ उसका ही कर्तव्य है? क्या उनका कर्तव्य कुछ नहीं जो उसे उसके परिवार से दूर अपने घर ले आए हैं?

Posted inहिंदी कहानियाँ

ये क्या हुआ – गृहलक्ष्मी कहानियां

रविवार का दिन यानी छुट्टी का दिन।देर तक बिस्तर पर पड़े रहने में जो मज़ा है, वह रोज के भागा-दौडी़ में कहाँ? पड़े रहिए जब तक आप का मन करे ।आपका अपना दिन है जैसे चाहे गुजारिए, कोई कुछ कहने वाला नही,लेकिन एक बात का ध्यान रखिए पैर पसारे पड़े रहने के लिए केवल रविवार या छुट्टी का दिन होना ही अनिवार्य नहीं है, इसके लिए एक और बात का होना बहुत जरूरी है और वह है आप का स्टेटस सिंगल होना,यदि ये नहीं है तो आप चाह कर भी ऐसा कुछ नहीं कर सकते।

Posted inहिंदी कहानियाँ

टुएन्टी परसेन्ट – गृहलक्ष्मी कहानियां

सर, हमारा इनाम” नर्स ने मोती लाल की ओर आशा भरी नजरों से देखा ।

“इनाम भी मिलेगा भई ,पहले लड़के का मुंह तो दिखा दो ”

Posted inहिंदी कहानियाँ

बाई की बेटी – गृहलक्ष्मी कहानियां

आकाश पर केवल उसका अधिकार होता है, जिसे अपने पंखों पर विश्वास होता है। आकाश की असीमता से डरने वाले तो अपने पांव तले की ज़मीन भी नहीं बचा पाते। कुछ ऐसा ही सबक छिपा है इस कहानी में।

Gift this article