Hindi Kahani: घर में मारग्रेट का एकाध छूट गया सामान या अनावश्यक मानकर छोड़ दिया गया सामान-उसे यानी शिप्रा मिश्रा को चर्च को लौटाना जरूरी लगा । चौबीस दिन की शेष तनख्वाह पहुंचाना भी । अक्टूबर की चटख धूप में चिलचिलाहट है। बस से उतरकर सड़क पर आते ही उसने महसूस किया । घर की […]
Author Archives: चित्रा मुद्गल
ओशो की वाणी में सारे सुर समाहित हैं: Osho Vani
Osho Vani: किसी की नजर में ओशो, प्रोफेसर हैं तो किसी की नजर में प्रवचनकर्ता, पर मेरी नजर में ओशो प्रोफेसर रजनीश नहीं ‘आचार्य रजनीश’ हैं। आज भी जब उन्हें सुनती हूं, पढ़ती हूं, वो मुझे आचार्य के रूप में ही मिलते है। इतना ही नहीं ओशो को केवल मात्र प्रवचनकर्ता कहना भी उनका अपमान […]
रक्षक-भक्षक-दुखद हिंदी कहानियां
रक्षक-भक्षक-हम मंदिर के प्रांगण में प्रवेश कर चुके थे । चढ़ावे का सामान बेचने वालों की नजर हम पर पड़ चुकी थी । वे बाकड़ों से लगभग लटक-लटककर पूजा की सामग्री अपनी-अपनी दुकान से खरीदने को हमें आमंत्रित कर रहे थे । मैंने पाया कि उनकी हांकों और आमंत्रणों से बेखबर मम्मी की दृष्टि प्रांगण […]
केंचुल-गृहलक्ष्मी सिलेब्रिटी कहानी
दोनों हथेलियां कमर पर टिकाए उसने कुपित दृष्टि से सिद्धू को देखा । सिद्धू उसकी कोप दृष्टि से अनभिज्ञ दो-तीन छोकरों से घिरा कंचे का निशाना साध रहा था । खेल में उसकी इस एकाग्रता ने उसे और भन्ना दिया । दांत किटकिटाते हुए बड़बड़ाई, “अक्खा दिन मस्ती… घर की फिकिर है हलकट को!” बानी की दुकान के ओटले पर चढ़ गई । वहीं से हांक लगाई, “ये मेलया! बंद कर तेरा गोटी-बोटी… नल आया रे, पड़ लवकर… लाईन लगाके रक्खी मैं ।” आशा के विपरीत, पहली ही पुकार में सिद्धू ने कमला की तरफ गरदन घुमाई । अंदेशा ही था । नल आने का समय हो रहा है । उसकी पुकार मचने ही वाली है; पर एकाएक दांव छोड़कर कैसे भागे? मुश्किल से तो उसका ‘चानस’ आया है । गोटियों से खीसा खाली हो गया है और उंगलियों के बीच निशाना साधती गोटी तनी हुई है । तय किया, ‘चानस’ नहीं छोड़ेगा । बगैर गरदन घुमाए हुए ही प्रत्युत्तर में उसने आलाप-सा भरा, “तू चल, बस, अब्बी जाता मैं ।” कमला इस ढिठाई से और चिढ़ गई । लगभग चीखी, “ये…आता-बीता कुच्च नई… लगेच उट्ठ, नई तो देऊं आके एक थोबड़े पर! सिद्धा नल पे जा, कोई लंबर इद्दर-उद्दर किया तो काऊन टंटा करेगा हलकट!” तंबाकू होंठों में दबी हुई थी । ‘पिच’ से पीक थूकी और ‘थू’, ‘थू’ करके लुगदी उगली । पीछे मुड़कर क्षणांश को बानी पर नजर डाली । ‘गिराकों’ में व्यस्त बानी उसे देख मुस्कराया-“जाएगा, जाएगा ।” फिर एक कमाँठी की दस पैसे वाली ‘ब्रुक बॉण्ड’ की चाय की पत्ती का पैकेट थमाते हुए बोला, “हुमर से इदरीच खेलता । फिकिर नई होती तेरे को!” चेतावनी-सी दी कमला को, “संभाल हां, नई तो ये पन तेरे को रत्नू का माफक एक रोज धक्का देगा ।” “मरने दे । किसको-किसको संभालूं बोल?” चेहरा घुमाकर सिद्धू को ताका । वह गोटी छोड़-छाड़कर नल की ओर सरपट भागा । इत्मीनान से बानी की तरफ मुड़ी, “अपनाच पेट भरने के वास्ते क्या मैं अक्खा दिन रखड़ती? हरामी नई समझते तो ।” ओटला उतरकर अपनी गली में मुड़ने लगी तो एकाएक खयाल हो आया, माल के बारे में पूछ ले । पलटी और नीचे से ही आवाज लगाई, “गुड़ आया, बानी?” “सब्बू नक्कीच आएगा । नौ बजे तलक सरना को भेजना, पारी भेजूं?” “ड्रम गड़ता क्या मेरे इदर? फकत दस किल्लो भेज । अऊर सुन,” स्वर को थोड़ा तरेरा, “वजन बरोबर करना हां, बोत डांडी मारने कू लगा तू ।” चलते-चलते यह भी बता दिया कि “सरना को वकत नई, विष्नू को भेजेगी नई तो मैं खुदिच आएगी ।” “सरना को भेज? हुं हुं!” नाली के पसरे बोदे को टांग पसारकर लांघती हुई बड़बड़ाई-“शेंडी लगाता हरामखोर! सब समझती मैं । चानस खोजता है ।” सरना तब फेरी के लिए नहीं जाती थी । उसके काम में मदद करती थी । चाहे सौदा-सुलफ लाना हो, चाहे ‘गिराकों’ को बाटली भरकर देना हो, चाहे बानी के यहां से ‘माल’ लाना हो । एक रोज अड़ गई, ‘मेरे को नई जाने का बानी की दुकान पर । मैं नई जाएगी गुड़ वजन करने । बापू को भेज, नई तो सिद्धू को भेज ।” कमला को लगा, लड़की कामचोरी दिखा रही है, दस-पंद्रह किलो वजन-उठाने के डर से । अभी तक तो लाती थी । यह एकाएक क्या चढ़ गया मगज में? सिद्धू अभी बहुत छोटा है । विष्णु को भेजते डरती है । लाएगा आठ किल्लो और बोलेगा दस । कितने चक्कर लगाएगी बानी के? यह पूछने- भर के लिए कि कितना माल ले गया । उसे सुबह-सुबह ही भट्ठी सुलगानी पड़ती है । बाहर निकले तो माल बनाने का वादा । टालमटोल से पारा चढ़ गया । भौंहें माथे से जा लगीं । नथुने फूल गए । सीधा गाली निकली, “कामचोर रांड! काय को नई जाएगी? बइठ के घानी खाने कू मांगता!” “मैं एकलीच खाती?”“खाते तो सब, पन काम के वास्ते ना बोलने से चलता?” कमला थोड़ी विनम्र हुई । “बाकी सब करेगी, फकत बानी की दुकान पर नई जाएगी ।” “पन काय को नई जाएगी?” “बोला ना बस, […]
पत्नी-गृहलक्ष्मी की कहानियां
द्वार पर थपथपाहट।“कौन?” यमराज की नींद उचटी ।“हम हैं स्वामी, आपके दूत ।”“अर्धरात्रि में? क्या बात है?”“बात कुछ विशेष नहीं प्रभु । मृत्युलोक से एक उद्दंड प्राणी जबरन घुस आया है ।”“तुम क्यों लाये उसे?”“लाये नहीं, वह स्वेच्छा से चला आया ।”“क्या? उसका यह दुस्साहस? बगैर हमारी आज्ञा के चला आया?”“आप इसी से पूछ लीजिए […]
जंगल- गृहलक्ष्मी की कहानियां
रीडर अणिमा जोशी के मोबाइल पर फोन था मांडवी दीदी की बहू तविषा का। आवाज उसकी घबराई हुई-सी थी। कह रही थी, “आंटी, बहुत जरूरी काम है। अम्मा से बात करवा दें।” अणिमा दीदी ने असमर्थता जताई-मांडवी दीदी कक्षा ले रही हैं काम बता दें। उनके कक्षा से बाहर आते ही वह संदेश उन्हें दे […]
हथियार-गृहलक्ष्मी की कहानियां
अब भी उनकी निगाह मेन्यू से लिपटी हुई है ।उसकी आंखें उनकी ऊपर-नीचे टोहती, सरकती नजर को छूकर, अनमनी-सी इधर-उधर उचकती, ठहरती, अपनी गढ़ाती ऊब को नियंत्रित नहीं कर पा रही हैं । बूढ़े होने को आए, जाने इतना समय क्यों लगाते हैं चीजें चुनने में कि उनके स्वाद की ललक ही क्षीण हो जाए? […]
रक्षक-भक्षक – गृहलक्ष्मी की कहानियां
हम मंदिर के प्रांगण में प्रवेश कर चुके थे । चढ़ावे का सामान बेचने वालों की नजर हम पर पड़ चुकी थी । वे बाकड़ों से लगभग लटक-लटककर पूजा की सामग्री अपनी-अपनी दुकान से खरीदने को हमें आमंत्रित कर रहे थे । मैंने पाया कि उनकी हांकों और आमंत्रणों से बेखबर मम्मी की दृष्टि प्रांगण […]
रक्षक भक्षक-गृहलक्ष्मी की कहानियां
हम मंदिर के प्रांगण में प्रवेश कर चुके थे । चढ़ावे का सामान बेचने वालों की नजर हम पर पड़ चुकी थी । वे बाकड़ों से लगभग लटक-लटककर पूजा की सामग्री अपनी-अपनी दुकान से खरीदने को हमें आमंत्रित कर रहे थे । मैंने पाया कि उनकी हांकों और आमंत्रणों से बेखबर मम्मी की दृष्टि प्रांगण […]
पाठ – गृहलक्ष्मी की कहानियां
निकट भविष्य में सरकार गिरने की संभावना ने प्रदेश के जनसेवक की वातानुकूलित नींद में खलल डाला । उन्होंने निश्चय किया-स्वास्थ्य मंत्री होने के नाते देश के नौनिहालों की चिंता में दुबले होना उनका परम कर्तव्य है । देर आए, दुरुस्त आए । अब वे अपने निर्वाचन क्षेत्र के प्रत्येक सरकारी स्कूल का दौरा करेंगे […]
