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मनोरमा – मुंशी प्रेमचंद भाग – 22

शंखधर के चले जाने के बाद चक्रधर को संसार शून्य जान पड़ने लगा। सेवा का वह पहला उत्साह लुप्त हो गया। उसी सुन्दर युवक की सूरत आंखों में नाचती रहती। उसी की बातें कानों में गूंजा करतीं। भोजन करने बैठते, तो उसकी जगह थाली देखकर उनके मुंह में कौर न धंसता। हरदम कुछ खोये-खोये से […]

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मनोरमा – मुंशी प्रेमचंद भाग – 21

कई दिन गुजर गये। राजा साहब हरि-भजन और देवोपासना में व्यस्त थे। इधर 5-8 वर्ष में उन्होंने किसी मन्दिर की तरफ झांका भी न था। धर्मचर्चा की बहिष्कार-सा कर रखा था। रियासत में धर्म का खाता ही तोड़ दिया गया था। मगर अब एकाएक देवताओं में राजा साहब की फिर श्रद्धा हो आयी थी। धर्म-खाता […]

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मनोरमा – मुंशी प्रेमचंद भाग – 20

राजा विशालसिंह की हिंसा-वृत्ति किसी प्रकार शान्त न होती थी। ज्यों-ज्यों अपनी दशा पर उन्हें दुःख होता था, उनके अत्याचार और भी बढ़ते थे। उनके हृदय में अब सहानुभूति, प्रेम और धैर्य के लिए जरा भी स्थान न था। उनकी सम्पूर्ण वृत्तियां ‘हिंसा-हिंसा!’ पुकार रही थीं। इधर कुछ दिनों से उन्होंने प्रतिकार का एक और […]

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मनोरमा – मुंशी प्रेमचंद भाग – 19

अब उसे वागीश्वरी की याद आयी। सुख के दिन वही थे, जो उसके साथ कटे। असली मैका न होने पर भी जीवन का जो सुख वहां मिला, वह फिर न नसीब हुआ। यह स्नेह, सुख स्वप्न हो गया। सास मिली वह इस तरह की, ननद मिली वह इस ढंग की, मां थी ही नहीं, केवल […]

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मनोरमा – मुंशी प्रेमचंद भाग – 18

उन्होंने सब चीजों में से जरा-जरा सा निकालकर अपनी पत्तल में रख लिया और बाकी चीजें शंखधर के आगे रख दीं। शंखधर-आपने तो केवल उलाहना छुड़ाया है। लाइए मैं परस दूं। मनोरमा नॉवेल भाग एक से बढ़ने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें मनोरमा भाग-1 चक्रधर-अगर तुम इस तरह जिद करोगे, तो मैं तुम्हारी […]

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मनोरमा – मुंशी प्रेमचंद भाग – 17

पांच वर्ष व्यतीत हो गए। पर न शंखधर का कहीं पता चला न चक्रधर का। राजा विशालसिंह ने दया और धर्म को तिलांजली दे दी है और खूब दिल खोलकर अत्याचार कर रहें हैं। दया और धर्म से जो कुछ होता है, उसका अनुभव करके अब वह यह अनुभव करना चाहते हैं कि अधर्म और […]

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मिथकों से इतिहास तक-एक लेखक और पुरुषेतर चरित्र: Agnikaal Upanyas

Agnikaal Upanyas: ‘पता नहीं, यह गड़बड़ शुरू कहां से हुई? पर इसके पहले-पहले सूत्र तो श्रुति में ही मिलेंगे, ना? उन्होंने कॉफी के मग में चीनी घोलते हुई कहा। ‘क्यों? वेदों में तो महिलाओं को भी बड़ा महत्व दिया गया है। मैंने पढ़ी-पढ़ाई बात दोहराई। ‘क्या बात कहती हैं, आप? उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा। ‘अगर […]

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मनोरमा – मुंशी प्रेमचंद भाग – 16

जगदीशपुर के ठाकुरद्वारे में नित्य साधु महात्मा आते रहते थे। शंखधर उनके पास जा बैठता और उनकी बातें बड़े ध्यान से सुनता। उसके पास चक्रधर की तस्वीर थी; उससे मन-ही-मन साधुओं की सूरत का मिलान करता, पर उस सूरत का साधु उसे न दिखायी देता था। किसी की भी बातचीत से चक्रधर की टोह न […]

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मनोरमा – मुंशी प्रेमचंद भाग – 15

इधर कुछ दिनों से लौंगी तीर्थ करने चली गयी थी। गुरुसेवकसिंह ही के कारण उनके मन में यह धर्मोत्साह हुआ था। जबसे वह गयी थी, दीवान साहब दीवाने हो गये थे। यहां तक कि गुरुसेबक को भी कभी-कभी यह मानना पड़ता था कि लौंगी का घर में होना पिताजी की रक्षा के लिए जरूरी है। […]

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मनोरमा – मुंशी प्रेमचंद भाग – 14

किसान-महाराज का। कहीं से आते हो? चक्रधर-हम महाराज ही के यहाँ से आते है। वह बदमाश साँड़ किसका है, जो इस वक्त सड़क पर घूमा करता है? मनोरमा नॉवेल भाग एक से बढ़ने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें मनोरमा भाग-1 किसान-यह तो नहीं जानते साहब; पर उसके मारे नाकोंदम है। चक्रधर ने सांड […]