बेटी की मां रानी-गृहलक्ष्मी की कहानी
Beti ki Maa Rani

Story for Mother: “मां! नित्या को अभी- अभी एयरपोर्ट पर छोड़ कर लौटी हूं..सुबह दस बजे पहुंच जाएगी और पूरे एक महीने तुम्हारे साथ रहेगी..तुमलोग खूब मज़े करना…और सुनो..तुम्हारे लिए एंटी रिंकल क्रीम भेजा है..उसे रोज रात में लगाना …देखना पहले जैसी लगने लगोगी.. “
“मुझे बूढ़ा नहीं होने दोगे तुमलोग …” कहकर वह हँसने लगीं तो शालिनी ने कहा,
“तुम एंजेल हो मां और एंजेल्स कभी बूढ़ी नहीं होतीं…” कहकर शालिनी ने फ़ोन रख दिया तो भावविभोर सुजाता देर तक बेटी के स्नेह में डूबी ठगी सी बैठी रही।
उसकी दोनों बेटियां संध्या और शालिनी उसका इतना ख्याल रखतीं हैं। एक सुबह फ़ोन करती है तो दूसरी शाम को ..क्या खाया.. क्या किया पूरा ब्योरा लेने के बाद भी उन्हें चैन नहीं मिलता। पिता जब तक जीवित थे वे निश्चिंत थीं मगर जब से उनका देहावसान हुआ है वे उसे कभी अकेली नहीं रहने देती।
शालिनी इंजीनियर है। शादी के बाद अमेरिका चली गई मगर हर साल जाड़ों में उसके पास आना नहीं भूलती। इसके अलावा गर्मियों की छुट्टियों में अपनी बेटी को नानी के पास भेज देती है। नानी को और क्या चाहिए उन्हें तो मूल से प्यारा सूद लगता ही है। नानी – नातिन आए दिन साथ- साथ नए- नए व्यंजन बनाते हैं,शॉपिंग करते हैं और सारी दोपहर साथ बैठ कर लूडो और कैरम खेलते हैं।
छोटी बेटी संध्या तो इसी शहर में कॉलेज में लेक्चरर है। वह भी सपरिवार लगभग हर हफ्ते का रविवार उसके साथ ही बिताती है। सच! वह कितनी भाग्यशाली है..अपने मौजूदा हाल पर उसे अपने सहेलियां,रेशमा,शर्मिला,और रागिनी और उनकी कही बातें याद आने लगीं।
सभी बेटों वाली थीं जो बेटों से निश्चिंत रहा करतीं थीं। जानतीं थीं कि अच्छे से पढ़ाई कर रहे हैं तो आज नहीं तो कल सफलता हासिल करेंगे ही… उन्हें लगता बेटे की मां को किस बात की चिंता..बेटा बहू लेकर आएगा जो बुढापे में उनकी सेवा करेगी…बेटों के घमंड में अक्सर उसका मज़ाक उड़ाते हुए कहतीं,

बेटी की मां रानी
बुढ़ापा भरे पानी
उसने एक बार कहा भी था,
“बेटों की तो आवाज़ तक बदल जाती है ..बेटियों के होने मात्र से घर आंगन गुलदस्ते सा सज जाता है और उनकी प्यारी आवाज़ में जब ‘मां’ सुनती हूं तो जीवन सार्थक लगने लगता है!”
“अरे! बेटियां पराया धन है.. इतना मोह जोड़ा तो बहुत पछताओगी..” रागिनी ने टोका।

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“मोह कोई जोड़ या तोड़ नहीं सकता ..”
उस वक्त उसने इतना ही कहकर मन की बात को मन में ही रख लिया था। आज वही सहेलियां अपने घरों में अकेली रहती हैं। समय के साथ बेटों की नौकरी व शादियां हुईं। ज्यादातर विदेशों में जा बसे जहां जाने के नाम से ही अकेलापन कचोटता है। बहुएं आती भी हैं तो ससुराल में खानापूर्ति कर अपने मायके चली जाती हैं। स्वाभाविक भी है। वर्ष में एक बार आना हो तो मां से मिलकर ही मन संतुष्ट होगा। फिर पानी का बहाव भी तो उधर ही होगा जहां गहराई होगी। भावनाओं को बहने के लिए भी स्नेह का अकूत भंडार चाहिए जो मां के सिवा और कोई नहीं दे सकता है। बच्चों के बच्चे वैसे भी मातृक संबंध ही ज्यादा समझते हैं।
ऐसे में उसके बुढ़ापे के लिए चिंतित सखियों के पास बोलने के लिए कुछ शेष न रहा सिवाए इसके,आज के जमाने में बेटियों की मां होना ही अच्छा..सुजाता की बेटियां और नाती-नातिन हाथों – हाथ लिए रहते हैं,तभी तो वैसी की वैसी है ..चेहरे पर वही रौनक है जो सालों पहले थी!
“बेटे हों या बेटियां..समय देना पड़ता है। इमोशन भी एक तरह का इन्वेस्टमेंट ही है जो जितना लगाया जाता है उससे अधिक मिलता है। मैं बेटियों के बचपन में अपना बचपन ढूंढ रही थी। उनके साथ ही पढ़ने और बढ़ने लगी.. आह! फिर से प्रथम कक्षा से बारहवीं में पहुंचना कितना सुखद था..अब वे मुझमें अपना अक्स ढूंढती हैं तभी हर छोटी बड़ी बात का इस कदर ख्याल रखतीं हैं वे कभी अपनी मां को बूढ़ी नहीं होने देना चाहतीं।”
“मुझे क्या पता मेरे लड़के न तो बचपन में कभी घर में टिकते थे और न अब टिकते हैं..मेरे पास आते भी हैं तो घूमने निकल जाते हैं!” रेशमा ने कहा।
“मेरा अंकित बहुत संवेदनशील है.. वह बचपन से ही लड़कियों की तरह मेरे साथ रसोई में लगा रहता और मेरे काम में हाथ बंटाता था..” शर्मिला ने बताया तो सुजाता ने उसकी चुटकी ली,
“अब बहू के काम में हाथ बंटाता होगा..ज्यादा सुखी होगा!” इसके साथ ही सब हँस पड़े।
रागिनी जिसके एक बेटा और एक बेटी है उसने आखिर में जो कहा उससे सभी सहमत हुए,
“ये तो मानोगी कि बेटी के लिए एक टीस सी उठती है मन में कि उन्हें भी ताउम्र वे सारे दर्द सहने होंगे जो हम ने सहे। पहले हर माह मासिक धर्म का दर्द, फिर विवाह के बाद मां बाप से बिछोह का दर्द और फिर मां बनने की असह्य पीड़ा… इससे तो किसी को इंकार नहीं…!”
“सही कहा रागिनी मगर यह भी तो देखो कि उन सभी दर्द में जीवन है.. पहला दर्द सृजन का संदेश देता है..स्त्रीत्व सिखाता है..दूसरा विवाह के बाद का बिछोह नवजीवन का आगाज़ कराता है.. तब वे माता पिता से दूर नहीं बल्कि और नज़दीक हो जाती हैं और तीसरा प्रसव का दर्द उन्हें संपूर्ण बनाता है तभी तो बेटियों से दर्द का रिश्ता बन जाता है जो हर रिश्ते पर भारी होता है। इन सभी विकट परिस्थितियों में मां बाप जिस स्नेह और विश्वास से उनकी ओर देखते हैं,उनका हौसला उतना ही मजबूत होता जाता है जिससे वे अपनी समस्त बाधाओं को पार कर हिम्मत से आगे बढ़ती चली जाती हैं..!”
सुजाता की बात पर सहेलियां प्रभावित हुए बिना न रह सकीं। आख़िर में सबने माना कि बेटियां दुहिताएं यानी दो कुलों का हित करने वाली होती हैं।
जो बहू है वह भी पहले बेटी है और हर हाल में स्नेहमयी है। कहते हैं न कि लड़के में अगर सही संस्कार न पड़े तो वह पूरे कुल खानदान को डुबोता है जबकि लड़कियां कितनी भी बिगड़ैल हों इतना मोह तो उनके अंदर होता ही है कि वे कभी मां बाप का सिर शर्म से नीचा नहीं होने देती हैं।
बदलते वक्त ने कुछ ऐसे ही उदाहरण पेश किए हैं जो बेटियों की मां को गर्व से भर देते हैं। वह दिन दूर नहीं जब बेटियों के लिए लोग ईश्वर के द्वार खटखटाएंगे..भगवान के सामने व्रत उपवास करेंगे ताकि बेटी के मां- बाप बन उनका जीवन सफल हो जाए।