भारत कथा माला
उन अनाम वैरागी-मिरासी व भांड नाम से जाने जाने वाले लोक गायकों, घुमक्कड़ साधुओं और हमारे समाज परिवार के अनेक पुरखों को जिनकी बदौलत ये अनमोल कथाएँ पीढ़ी दर पीढ़ी होती हुई हम तक पहुँची हैं
पूरे चार साल बाद विपुल आ रहा था। लगता है जैसे कल की ही बात हो जब केवल हमारा परिवार ही नहीं पूरी कालोनी खुशी से झूम उठी थी, जब उन सबकी गोद में खेला, शर्मिला-सा विपुल आई.आई.टी. की परीक्षा में सफल हो गया था। मुझे तो उसी दिन पहली बार पता चला था, कि आई.आई.टी. कुछ खास है और मेरे बेटे ने कुछ कमाल कर दिखाया था। मेरा सीना गर्व से फूल गया था। लोगों की बधाई को खुशी और शालीनता से स्वीकारती, मैं मिठाई खिलाती थक नहीं रही थीं।
“ट्रिन-ट्रिन-ट्रिन…….” फोन की घंटी से मैं वर्तमान में लौटी।
“हेलो”
“……”
“नमस्ते बेटा”
“……”
“नही विपुल अभी तो नहीं आया है। उसके पापा और अनुष्का उसे लेने एयरपोर्ट गये हुए हैं। बस आते ही होंगे। मोहित तुम शाम को तो आ रहे हो न?”
“……”
“ठीक है बेटा खुश रहो।” फोन को रखते हुए मैं मुस्कुरा उठी।
सुबह से विपुल के दोस्तों के फोन का तांता लगा है। पिछले एक हफ्ते से मेरे घर में विपुल के आने की तैयारी चल रही है। उसके कमरे की सफाई से लेकर उसकी पसन्द के सामान एकत्र करने में पिता-पुत्री ने रात-दिन एक कर रखा है और दोनों ने मिलकर आज शाम को उसके लिए एक सरप्राईज पार्टी भी रखी है। जिसमें उसके सभी संगी-साथियों को आमंत्रित किया है।
“ट्रिन ऽऽऽऽ…” की तेज आवाज से पुनः मेरी तंद्रा टूटी। ख्यालों में ऐसा खो गई थी कि गाड़ी की आवाज तो छोड़ो मुझे घंटी की भी आवाज मुश्किल से सुनाई दी थी। हड़बड़ा कर दरवाजे की ओर दौड़ी।
मुझे देखते ही विपुल गले लग गया। खुद को इतना समझा-बुझाकर मजबूत बना रखा था पर दो साल बाद बेटे को देखा तो ममता कमजोर पड़ गई और मेरी आँखों से गंगा-जमुना बह निकली।
“अरे! तुम रो रही हो? मैं तो सोच रहा था तुम विपुल को देखकर खुश हो जाओगी।” पतिदेव ने मेरी चुटकी ली।
बेटा तुरन्त माँ की तरफ से बोल पड़ा। “ये बात नहीं है पापा। …मम्मी इसलिए रो रही है कि मैं समझ सकूँ कि मेरे पीछे से आप दोनों ने उनका बिल्कुल ख्याल नहीं रखा और अब उन्हें आप दोनों की बहुत-सी शिकायत करनी है।”
“पापा, ये तो पासा उलटा पड़ गया।” अनुष्का मुस्कुरा कर बोली।
“हाँ बेटा, अब तो लगता है तुम्हारी मम्मी के बनाये पकवान ही बचायेंगे। जल्दी से बेटा, वही ले आओ।”
“पापा आपकी फाइल भी इस समय काम आ सकती है।” अनुष्का ने सुझाया।
“कौन सी फाइल” आश्चर्य से विपुल पूछ बैठा।।
“भईया, आपके लिए बहुत से रिश्ते भी आये हैं। एक से एक सुन्दर लड़कियों की फोटों आई हैं। पापा ने पूरी फाइल बना रखी हैं। आजकल मैं और मम्मी तो रोज उसी में खोये रहते हैं कि इनमें से आपको कौन-सी लड़की पसन्द आयेगी। अब आप बताइये पहले होने वाली भाभी की फोटो……..?”
“चल हट! शैतान।” विपुल ने अनुष्का के सिर पर चपत लगाया।
“मम्मी आपने क्या-क्या बना रखा है पूरा घर महक रहा है।” विपुल ने अपनी बाँहें माँ के गले में डाल दीं।
नाश्ते के साथ-साथ अनुष्का का न्यूज बुलेटिन चालू था। दो साल पहले जब विपुल आया था तब जो सिरा जहाँ छूटा था उसे आज की तारीख तक अपडेट किया जा रहा था। अचानक विपुल अपना पसन्दीदा फरा खाते हुए बोला “अनुष्का, वो तेरी सहेली शालिनी थी न, कहाँ है वो? “
अनुष्का अचकचा कर माँ की ओर देखने लगी।
मैं बीच में बोल पड़ी, “मैंने तुम्हें बताया था न पिछले साल उसकी शादी हो गई थी। शालिनी के साथ बहुत बुरा हुआ बेटा।”
विपुल की जिज्ञासा बढ़ गई थी। बीच में ही बोल पड़ा। “हाँ-हाँ, एक एन.आर.आई. इंजीनियर के साथ उसकी शादी हुई थी। आपने जब बताया था तो मैंने उससे बात की थी बधाई देने के लिए। बहुत खुश थी। क्या हुआ उसे?”
“बेटा उसके साथ बहुत धोखा हुआ। शादी के बाद तीन महीने उसका पति भारत में रहा। दोनों खूब घूमे-फिरे। खूब खुश थे। फिर वो वापस चला गया कि वहाँ जाकर शालिनी को बुला लेगा। पर दिन महीनों में बदल गये उसने कोई वीजा नहीं भेजा। इधर शालिनी गर्भवती थी। पिता घबरा गये वो स्वयं उसे लेकर दामाद के पास चले गये। वहाँ पहुँचने पर पता चला कि वो तो पहले से शादीशुदा था, उसके दो बड़े-बड़े बच्चे थे। वर्मा जी एकदम टूट गये। शालिनी को सहमति के आधार पर तलाक तो मिल गया है। पर वो भी एकदम बिखर गई है। वर्मा जी को हार्ट अटैक हुआ था। बड़ी मुश्किल से बचे हैं। अभी हफ्ते भर पहले अस्पताल से घर आये हैं। इकलौती बेटी के भविष्य के लिए परेशान हैं।
जो जाता है उनसे मिलने, बस उसके आगे हाथ जोड़ते रहते हैं कि उनकी सुशील बेटी के लिये कोई अच्छा-सा रिश्ता बता दे।”
मेरे मुँह से आह-सी निकली, “सुन्दर तो शालिनी बहुत है, गुणी भी है। शायद, शादी दोबारा हो भी जाती, परन्तु बच्चे के साथ कौन करेगा शादी। सात महीने का बच्चा गिरा भी नहीं सकते। बेचारी शालिनी….?”
पतिदेव ने मुझे तसल्ली दी, “तुम इतनी दुखी मत हो। मैंने कई लोगों से बात की है, कोई न कोई लड़का जरूर उसका हाथ थामेगा। हम वर्मा जी को उनकी मुसीबत में अकेला थोड़े छोड़ देंगे। सब मिलकर ढूंढेंगे उसके लिए कोई अच्छा लड़का।”
रोष के साथ मैं बोली। “लड़का?….. आप भी बात करते हैं। कोई दुहाजू, दो, चार, बच्चों का बाप या पिता की उम्र का कोई अधेड़ ही अब उसे अपनाएगा।”
“ये क्या बात हुई मम्मी? क्या कमी है शालिनी में। वो क्यों किसी बूढ़े खूसट से शादी करेगी?” अनुष्का गुस्से से बोली।
“ये कड़वी सच्चाई है अनुष्का। शालिनी में कोई कमी नहीं है बल्कि हर वो गुण है जो कोई अपनी बहू या पत्नी में देखना चाहता है। परन्तु एक गर्भवती, तलाकशुदा स्त्री को कोई लड़का नहीं अपनाता उसे कोई जरूरतमंद उम्रदराज मर्द ही अपनाता है।” अनुष्का की ओर देखते हुए मैं बोली।
“अरे भाई, तुम लोग क्या विषय लेकर बैठ गये। कह रहा हूँ न, हम सब मिलकर कोई लड़का ढूंढेंगे।” विषय बदलने के लिए पतिदेव बोले।
“ऐसा लडका नहीं ढूंढ पायेंगे पापा आप लोग, कभी नहीं ढूंढ पायेंगे।” तैश में विपुल बोला।
“ये कैसी बात कर रहे हो तुम? कोई न कोई सुलझा हुआ लड़का, कहीं न कहीं जरूर होगा और समय भले ही लगे, पर हम उसे ढूंढ जरूर लेंगे।” दृढ़ता इनके स्वर में थी।
विपुल के स्वर में भी उतनी ही दृढता थी, “नहीं पापा, नहीं ढूंढ सकेंगे, आप।”
“क्यों नहीं ढूंढ सकेंगे? जरा एक कारण तो बताओ।” तैश इनके स्वर में साफ झलक रहा था।
बहुत ही शान्त स्वर में विपुल बोला, “पापा, जब तक हर इंसान अपना घर छोड़ कर अच्छाई को दूसरे के घर में ढूंढता रहेगा। ऐसा लड़का नहीं मिलेगा। सुलझा हुआ, वैसा लड़का, आपका अपना खून भी तो हो सकता है।”
कुछ पल को सब मौन हो गये। “तुम….. तुम करोगे शालिनी से शादी?” पतिदेव सीधे विपुल की आँखों में देख रहे थे।
“हाँ, अगर आप लोगों का आशीर्वाद मिलेगा तो जरूर करूंगा।” विनम्रता से विपुल बोला।
मेरे स्वर में उत्तेजना और हिचकिचाहट दोनों थी, “तुम…..तुम….. मेरा मतलब है तुम शालिनी और उसके बच्चे को अपनाओगे?”
“हाँ मम्मी, अगर आप लोग चाहेंगे तो मैं जरूर अपनाऊँगा शालिनी को। ये तीन महीने की शादी को मैं शादी नहीं मानता और उस अजन्मे बच्चे का क्या दोष?” विपुल के स्वर में दृढ़ता थी।
“बेटा, ये बात तुम सोच समझ कर कह रहे हो न? कोरी भावुकता में तो इतनी बड़ी बात नहीं कह दी है?” पतिदेव पुनः बोले।
“नहीं पापा, कोई भावुकता नहीं। आप सबके आशीर्वाद के साथ मैं शालिनी को अपनी जीवन संगिनी बनाने को तैयार हूँ।”
नम आँखों से बेटे को निहार कर पतिदेव बोले, “आज तुमने मेरा सिर गर्व से ऊँचा कर दिया है। आज मुझे अपने आप पर नाज हो रहा है कि तुम मेरे बेटे हो।”
“विपुल, बेटा तूने मेरे दूध का हक अदा कर दिया।” आँसुओं के साथ बमुश्किल मैं बोल पाई।
विपुल और अनुष्का एक साथ मेरे गले आ लगे।
“शुभ काम में देरी कैसी। चलो चलो, उसके घर चलें।” पतिदेव चहक कर बोले।
खुशियों की सौगात लिए हमारे कदम शालिनी के घर की ओर उठ गये।
भारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा ‘भारत कथा मालाभारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा ‘भारत कथा माला’ का अद्भुत प्रकाशन।’
