Nikka's friend Sher
Nikka's friend Sher

Funny Stories for Kids: निक्का को मम्मी अच्छी लगती थीं । मम्मी की सारी चीजें भी । खासकर उनका बड़ा वाला लाल रंग का संदूक तो उसे बहुत लुभाता था । जैसे एक से एक अनोखी चीजों का पिटारा हो । पूरा अजायबघर। कभी-कभी वह कहता भी था, “मम्मी , आपका लाल वाला संदूक तो कमाल का है । पता नहीं, आपने उसमें कैसी-कैसी मजेदार चीजें इकट्ठी कर ली हैं, कि देखकर जी ही नहीं भरता ।”
सुनकर मम्मी हँसने लगतीं । कहतीं, “इस संदूक में मेरे बचपन की चीजें हैं । शायद इसीलि ए तुझे अच्छी लगती हैं ।”
फिर एक दिन की बात, मम्मी अपने संदूक को खोलकर कुछ निकाल रही थीं, तभी निक्का दौड़ा -दौड़ा आया । बोला, “मम्मी -मम्मी , मुझे दिखाओ अपना संदूक !” मम्मी को हँसी आ गई । बोलीं, “अरे, ऐसा क्या रखा है मेरे संदूक में ?”
“नहीं-नहीं, मम्मी , मैं देखूँगा जरूर !” और निक्का आखँ गड़ा कर संदकू में रखी चीजें देखने लगा । मानो मम्मी का संदूक नहीं, कोई अजायबघर हो ।
मम्मी के संदूक में अटरम-पटरम बहुत सारी चीजें थीं । खूब रंग-रंग की विचित्र चीजें । संदुर से चौकोर गुट्टे । लाल, पीले, हरे । तरह-तरह के डिजाइन वाली रंग-बिरंगी चूड़ियाँ । छोटे-छोटे चाँदी के कड़े । एक लाल-पीले रंग की लंबी सी चुटिया भी, जि समें सफेद मोती जड़े भी । साथ ही रसोई के छुटके- मुटके से बरतन । छोटे-छोटे गिलास, थाली, कटोरियाँ, एक कड़ा ही, एक भगोना भी । सारे पीतल के बरतन । अब भी खूब चम-चम चमकते हुए । देखो तो बस, देखते ही रह जाओ ।
निक्का दखे रहा था, तभी उसे काठ के बड़े संदुर से रंग-बिरंगे खि लौने दिखाई पड़ गए । काठ का शेर, काठ के हिरन और बारहसिंगा । काठ का हाथी । काठ की बहुत सी नन्ही -नन्ही चिड़ि याँ भी ।
देखते ही निक्का की आँखें फैल गई । बोला, “मम्मी , ये तो बहुत अच्छे हैं । बहुत ही अच्छे । इतने संदुर खिलौने तो मैंने कहीं देखें ही नहीं । आपके पास कहाँ से आए ?”

सुनकर मम्मी हँसने लगीं । बोलीं, “ओ रे बुद्धूराम, ये मेरे बचपन के खिलौने हैं । मेरी मम्मी के दिए हुए खिलौने । मैं बचपन में इन्हीं से तो खेलती थी । तुम चाहो तो कोई एक ले लो । लेकिन सँभालकर रखना, कहीं खो न जाए ।”
निक्का ने कुछ देर सोचा, फिर काठ का शेर ले लिया । वह सचमुच अनोखा था, जैसे सचमचु का शरे हो । पूरा मुँह खोल, दहाड़ता हुआ शरे । बोला, “मम्मी , सारे खिलौने अच्छे हैं । पर शेर तो अनोखा है । मेरे पास रहेगा, तो मुझे बिल्कुल किसी का डर नहीं रहेगा ।”
“सच्ची …?” मम्मी ने बड़े कौतुक से निक्का की ओर देखा ।
“हाँ, मम्मी , शेर के आगे तो सब थर-थर काँपते हैं । भला कौन उसके आगे ठहर सकता है ?” निक्का ने जोश में आकर कहा ।
“और अगर उसने तुमको ही काट लि या तो…?” मम्मी ने पूछा ।
“वाह, मम्मी , मुझको कैसे काटेगा ? मेरा तो दोस्त है ना । मेरी मम्मी के संदूक से निकला है, तो मेरा दोस्त तो होगा ही ।” निक्का ने गरदन हिलाते हुए बड़ी शान से कहा ।
“हाँ, ठीक कहा निक्का , तूने । बिल्कुल ठीक । बड़ा समझदार हो गया है रे तू ।” मम्मी हँसीं । निक्का की भोली बातें सुनकर उन्हें बहुत अच्छा लग रहा था ।
*
निक्का को वह काठ का शेर मिला, तो उसके तो मजे ही आ गए । उसने उसी शाम को पड़ो स में रहने वाले अपने दोस्तों सत्ते और मिंटू को दिखाया ।

बोला, “देखो, देखो, जरा देखो मेरा शेर । कितना संदुर । ऐसे मुँह खोले हुए है जैसे अभी खा जाएगा । पर मेरा तो यह बड़ा प्यारा दोस्त है ना । इसलिए मुझे बहुत प्यार करता है ।”
निक्का बोला, “हाँ, वाकई निक्का । बड़ा संदुर है । तेरे पास कहाँ से आया यह काठ का शेर ?”
“मेरी मम्मी के संदूक में था । मैंने माँग लिया ।” निक्का बोला, “मम्मी ने दे तो दिया, पर बोलीं, बहुत सँभालकर रखना निक्का । ये मेरे बचपन की निशानी है ।”

“तभी तो । मैंने इतना संदुर शरे कहीं देखा ही नहीं ।” सत्ते ने उस पर प्यार से हाथ फिराते हुए कहा ।
मिंटू भी शेर को हाथ में लेकर बड़े प्यार से देखता रहा । फिर उसे कुछ याद आ गया । बोला, “मेरी नानी के संदकू में भी एक संदुर सा ऊँट था । बड़ा ही शानदार । नानी कह रही थीं, जब तेरी मम्मी छोटी सी थी, तब इससे खेलती थी । मैंने माँगा तो नानी बोली, मिंटू, इसे खोना मत । बहुत सँभालकर रखना । पर खेल-खेल में वह पता नहीं कहाँ खो गया । नानी को पता चला, तो दुखी हुईं ।…”
बात तो ठीक है । निक्का बोला, “तूने अच्छा बताया मिंटू । अब मैं अपने शरे को बहुत सँभालकर रखूँगा।”
अब तो निक्का जहाँ भी जाता, वह शेर को अपने साथ जरूर ले जाता । उसे लगता, शेर मेरे साथ है, तो भला कौन मेरा क्या बिगाड़ सकता है ?
कोई पूछे तो बड़ी शान से कहता, “यह शेर मेरा दोस्त है । बॉडीगार्ड भी ।”
*
फिर एक दिन की बात । मम्मी ने देखा, निक्का बाहर लॉन में बैठा होमवर्क कर रहा है । साथ में शेर भी वि राजमान है ।
मम्मी को बड़ी हैरानी हुई । बोलीं, “बेटे, तुमने शेर को क्यों आगे बैठा रखा है ?”

इस पर निक्का बोला, “मम्मी , याद है न, एक बार मैं बाहर लॉन में बैठकर होमवर्क कर रहा था कि अचानक कहीं से बंदर आ गया । और पास आकर खों-खों करने लगा । मुझे एकदम उठकर भागना पड़ गया था ।”
“हाँ-हाँ, याद है बेटा !” मम्मी ने कहा । “पर अब मुझे नहीं भागना पड़ेगा ।” निक्का ने हँसकर बताया ।
“क्यों ?” मम्मी को हैरानी हुई । “अरे, आप इतना भी नहीं जानतीं ?” निक्का भोलेपन से बोला, “ये जो शेर है न, बबर शेर है मम्मी । यह बैठा है मेरे पास । अब भला बंदर की क्या हिम्मत कि वह मेरे आसपास भी आ जाए । बंदर के तो चाचा जी भी यहाँ आते हुए घबराएँगे !…क्यों, ठीक है न मम्मी ?”
निक्का की बात सुनकर मम्मी को हँसी आ गई । बोलीं, “वाह रे निक्का , तू तो बड़ा होशियार है । मुझे आज पता चला ।” और उन्होंने प्यार से निक्का का माथा चूम लिया । शाम को निक्का के पापा और भैया-दीदी आए, तो मम्मी ने सबको बताया निक्का के काठ के शेर का कि स्सा । बोलीं, “यह निक्का का दोस्त शेर है । उसका बॉडीगार्ड भी । हर मुसीबत से उसे बचाता है ।” इस पर निक्का के पापा ने निक्का की पीठ थपथपाते हुए कहा, “वाह रे वाह, मेरे शेर ! तूने तो शेरों से दोस्ती करनी शुरू कर दी ।” सुनकर सब हँसने लगे ।

ये कहानी ‘बच्चों की 51 नटखट कहानियाँ’ किताब से ली गई है, इसकी और कहानी पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर जाएंBachchon Ki 51 Natkhat Kahaniyan बच्चों की 51 नटखट कहानियाँ