चोटी ही काट डाली-हाय मैं शर्म से लाल हुई
Chhoti hi kaat dali

Hindi Funny Stroy: संयुक्त परिवार में पले-बढे हम मै और मेरी कजिन कृपा दीदी जो मुझसे ढाई बरस बड़ी थी ,हमारी आपस में खूब पटती, हम अक्सर पढ़ते साथ-साथ, खाते साथ-साथ, और खेलते भी साथ-साथ। मां और बड़ी मम्मी अक्सर कहती अरे लड़कियों ज्यादा साथ में मत रहा करो नहीं तो ससुराल भी एक ही देखनी पड़ेगी, फिर  दोनों को एक ही घर में ब्याहना पड़ेगा।

पर हम दोनों  दुनिया से बेफिक्र दोनों खेलती साथ-साथ,पढती साथ साथ और घर के काम भी साथ साथ सीखतीं। एक दिन गर्मियों की छुट्टियों में हम दोनों में गिट्टू खेलते खेलते किसी बात पर बहस हो गई। फिर खेल तो खेल ही है ना ,दोनों ही अपनी-अपनी बात पर अड़ गई। दीदी कहने लगी मैं तुझसे बड़ी हूं, मेरी बात तुझे माननी ही पड़ेगी, मैंने कहा बड़े होने से कुछ नहीं होता जिसकी बात सही है उसकी  ही मानी जाएगी,वो अभी  भी बड़ा होने का रौब छाड़ रहीं थीं, मैंने भी कहा,आप ज्यादा मत बोलो, नहीं तो ये जो तुम्हारी मोटी-मोटी सी दो चोटियां है ना एक काट दूंगी।

उन्होंने भी गुस्से में कहा, हिम्मत है तो जरा काट के दिखा। मैं तो बस उन्हें अपना रौब दिखाने के लिए कन्नस पर रखी कैची उठा लाई। मुझे नहीं पता था कि मम्मी ने उस पर तभी दो दिन पहले ही तेज धार लगवाई है। कृपा जीजी मुझे हड़काती रही, वह बार-बार कहती रही,डर गई ना, डर गई ना। मैंने भी सिर्फ उन्हें डराने के लिए कैंची उनकी चोटी तक लगा दी।

पर इसे मेरी बदकिस्मती कहे या उनकी, चोटी पर कैंची  ना जाने कैसे चल गई और पूरी की पूरी उनके  बालों की एक लट बाहर आ गई। अब फिर क्या था जो कृपा दीदी अभी अभी तक ऐंठ रहीं थी वह रोने लगीं। मैं तो कैची फेंक,ये गई और वो गई। मैं तो चंद मिनटों में ही हवा हो गई। घर में सबसे अच्छा कोना अपने छिपने के लिए ढूंढने लगी। ये वो समय था जब  किसी की पली-पलाई लम्बी चोटी को छूना मतलब सांप के बिल में हाथ देना था।

हमारा घर काफी बड़ा था मैं छिप गई, अब पूरे घर में जैसे भूचाल  आ गया। पूरे घर के  छोटे बड़े सदस्य मुझे ही ढूंढ रहे थे। मुझसे छोटे बच्चे तो जैसे पुलिस बन मुझे ही ढूंढने के लिए लाइन लगाकर लग गये। मै हमारे यहां स्टोर रूम में बड़े संदूक के पीछे बिल्कुल अंधेरे कोने में जा छुपी। जहां मैं  क्या कोई भी घर का बच्चा डर की वजह से कभी नहीं जाता था। पर शायद आज का चोटी काटने का डर सबसे बड़ा था तो उस डर के आगे अंधेरा कुछ नहीं था।

काफी देर हो गई अब घर का माहौल थोड़ा शांत सा था। सभी को लगा मैं पड़ोस में मौसी के घर चली गई हूं, मां कहने लगी आएगी तो वापस घर में ही ना, आते ही उसकी टांगे तोड़ दूंगी। बस इतना सुनना था कि मैं डर की वजह से उस कोने में थोड़ा और सिमट गई।

तभी एक छोटी सी चुहिया मुझ पर चढ गई और मेरी चीख निकल गई । मैं डरते-डरते बाहर की तरफ भागी। डर और रोने की वजह से मेरा चेहरा लाल हो गया था। घर के आंगन में खड़े सभी छोटे-बड़े मुझ पर हंस रहे थे। कृपा दीदी  भी मेरी शक्ल और  हालत देखकर हंसने लगीं। मां और  बड़ी मम्मी ने थोड़ा बहुत डांटा और आगे से इस तरह की शैतानी करने के लिए मना किया। इसके  बाद हम दोनों बहनें फिर से सहेलियां बन गई। फिर कृपा दीदी के बालों की भी मेरी बालों की तरह छोटी बुआ बॉय कट कटिंग करा लाई , मैंने कहा पहले ही मेरी तरह बाल कटवा लेती तो ऐसा नहीं होता दीदी। सभी हंसने लगे।अब वो भी खुश थी और मैं भी खुश थी।
आज भी इस घटना का जिक्र आते ही मैं सोचती हूं क्या मैं भी इतनी शैतान हुआ करती थी।

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