बहुत पुरानी बात है, जब मैं जेठ व ससुरजी के सामने घूंघट किया करती थी। एक दिन मेरे पतिदेव कान पर रख रेडियो का स्विच घुमा रहे थे। फिर बोले, ‘पकौड़ी खाने का मन कर रहा है, जाओ कुछ पकौड़ियां बना लाओ। हमारा किचन ऊपर था। मैंने पकौडिय़ां बना कर ऊपर से ही इनको आवाज लगाई, ‘पकौड़ी बन गई हैं, आ जाइए। इन्होंने नहीं सुना तो मैं गुस्से में पकौड़ी लेकर नीचे आई और इनकी पीठ पर जोर से हाथ मारते हुए बोली कि कब से कह रही हूं, पकौडिय़ां बन गई हैं, ले लीजिए। जैसे ही वे पीछे मुड़े तो मैंने देखा कि मेरे पति नहीं बल्कि मेरे जेठजी थे। जेठजी मुस्कुराते हुए बोले, ‘गोयल को भेजता हूं। उनके ऐसा कहते ही मैं शर्म से लाल हो गई। कहां तो घूंघट करती थी, कहां उन्हें हाथ मार दिया। फिर तो मैं कई दिनों तक जेठजी के सामने नहीं गई। दरअसल दोनों भाइयों की कद-काठी एक जैसी है और इत्तेफाक से उस दिन दोनों ने एक ही रंग के कपड़े पहने हुए थे।

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