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उम्र, इच्छा और पैसे की कहानी-गृहलक्ष्मी की कविता

Hindi Poem: जब छोटे थे, जेब में सिक्के भी नहीं थे,पर सपनों के झोले में बादल भरे कहीं थे। सोचा था, बड़े होकर सब पा लेंगे,पैसे भी होंगे, ठाट से जी लेंगे। जवानी आई — उमंगों की थी बरसात,जेब में तूफ़ान नहीं, बस खाली हालात। जॉब मिली तो तनख्वाह ने मज़ाक किया,मन बोला “शाबाश”, जेब […]

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त्यौहारों पर मां याद आती है-गृहलक्ष्मी की कविता

Hindi Poem: हर बेटी के भीतरएक अनसुनी धड़कन होती है —माँ की।जो समय के हर पड़ाव परधीरे से याद दिलाती है कि“तू अकेली नहीं, मैं तेरे भीतर हूँ।” माँ बहुत याद आती है —क्योंकि जीवन के हर रंग, हर विधि,उसी से तो सीखी थी।खाना बनाना, तुलसी को जल चढ़ाना,दीपक का रुख किस दिशा में हो —सब उसकी ही सिखाई हुई लकीरें हैं,जो आज […]

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पिता को खोने के बाद बेटे का हाल—गृहलक्ष्मी की कविता

Hindi Poem: जिन बेटों ने पिता को खोया, वे समय से पहले बड़े हो गए—मानो बचपन की किताब का आख़िरी पन्नाअचानक किसी ने फाड़ दिया हो। वे खेलों की जगहजिम्मेदारियों के पथरीले आँगन में उतरे,जहाँ हँसी के स्वर दबकरसिर्फ़ माँ की थकी हुई साँसें गूँजती थीं। कम उम्र के कंधों परभारी बोझ उतर आया—रोटी, शिक्षा, और घर […]

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चंद्रमा हो तुम मेरे जीवन के—गृहलक्ष्मी की कविता

Karva Chauth Poem: तुम ताको, करवा चौथ चंद्रमैं पूर्णचंद्र  तुम्हें  तकता हूँतुम मेरी उम्र की दुआ करोमैं अमर प्रेम की करता  हूँ झुमकों को तकते, नयन मेरेबाहों का बना मेरे, कण्ठहारप्रेयसि!   सिंदूरी  होठों   सेलिख दूं माथे पर अमर प्यार तुम देखो अटारी पर जाकरश्यामल आकाश से घिरा चाँदमैं  मेघ  वर्ण  की  छाया  बनकरूँ […]

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हे पुरुषों-गृहलक्ष्मी की कविता

Hindi Poem: तुम समाज के सबसे सशक्त स्तंभ हो,तुममें शक्ति है—पूरा परिवार उठाने की,अकेले ही उसे सँवारने की। फिर भी, न उड़ाओ व्यंग्य,न गढ़ो ठिठोलियाँ अपरिपक्व,महिलाओं पर, जिनकी आत्मा भीतुम्हारी दुनिया का हिस्सा है। समझो—तुम समाज की हर महिला के संरक्षक हो,यदि कोई अकेली है,तो वह तुम्हारी जिम्मेदारी है।कोई बहाना नहीं, कोई मौका नहीं। तुम […]

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ऑनलाइन शॉपिंग-गृहलक्ष्मी की कविता

Hindi Poem: ऑनलाइन शॉपिंग ने,जीना किया आसान।बैठे-बैठे खरीद ले,जग का सभी सामान।। सुनो, ई-खरीदारी का,किस्सा इक मज़ेदार।लगे यदि रिलेटेबल तो,तुरन्त बताओ यार।। कार्ट में कपड़े भर लिए,देख के सस्ते दाम।बीस सूट करके पसंद,दिल को मिला आराम।। डिस्काउंट ऑफर बहुत,लूट हो जैसे आज।कपड़े खरीद मनमाफ़िक,हो गया खुद पे नाज़।। इंतज़ार की घड़ी खत्म,कपड़ों का मिला स्टॉक।रंग-बिरंगे सूट […]

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पंजाब डूबता नहीं उठता है—गृहलक्ष्मी की कविता

Hindi Poem: कल सारी रात नींद नहीं आई,बारिश की वह बूंदें,जो संगीत सी लगती थी,उन्होंने एक दहशत सी फैलाई।मेरा पंजाब सहम रहा है,तिनके की तरह बिखर रही है,किसी की सारी उम्र की कमाई।पर सलाम हैमेरे पंजाब के हौसले को,जिसने इस बेदर्द मौसम में भी,अपनी हिम्मत न भुलाई।हर इंसान कर रहा है कोशिश,इस बाढ़ से उबरने की,न जाने […]

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मस्त मलंग-गृहलक्ष्मी की कविता

Hindi Poem: सुबह होते ही आपाधापी  थोड़ी देर लग गई क्या आँख  कोसती खुद को  हजार बार  हमेशा अव्वल आने की है चेष्टा। थोड़ी सिलवट रह गई बिस्तर में  झाला थोड़ा सा लग चुका,  चलो पहले बना लो चाय  खुद से ही होती प्रतियोगिता। हम देते रहते खुद ही परीक्षा फिर करते आँकलन समीक्षा  खुद […]

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मां हो कर ही मां को जाना-गृहलक्ष्मी की कविता

Hindi Poem: त्याग, समर्पण, जिम्मेदारी,              सबको अब पहचाना है !माँ होती है क्या ? मैंने ये ,                                   माँ ही है आधार सृष्टि का,                सार है वेद ऋचाओं का […]

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हमारे लिए बेशक नहीं खरीदा गया-गृहलक्ष्मी की कविता

Hindi Poem: गुड्डा/गुड़िया या खेल खिलौनापर हमें याद रखना होगाके हमें तैयार किया गया ऐसे कि हम हर माहौल में खुशव एडजस्ट हो सके,,, हमें सिखाते सिखातेवो खुद को ही भूल गईकि अब कहती हूँअम्मा अब तुम अपने लिए जिओअपने पसन्द की चीजें खरीदोमां अब तुम छोटी हो जाओकि तुम्हारी बेटी बड़ी हो गई है!!!

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