Posted inमुंशी प्रेमचंद की कहानियां, हिंदी कहानियाँ

उपदेश – मुंशी प्रेमचंद

प्रयाग के सुशिक्षित समाज में पंडित देवरत्न शर्मा वास्तव में एक रत्न थे। शिक्षा भी उन्होंने उच्च श्रेणी की पायी थी और कुल के भी उच्च थे। न्यायशीला गवर्नमेंट ने उन्हें एक उच्च पद पर नियुक्त करना चाहा, पर उन्होंने अपनी स्वतंत्रता का घात करना उचित न समझा। उनके कई शुभचिंतक मित्रों ने बहुत समझाया […]

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नमक का दरोगा – मुंशी प्रेमचंद

जब नमक का नया विभाग बना और ईश्वर प्रदत्त वस्तु के व्यवहार करने का निषेध हो गया तो लोग चोरी-छिपे इसका व्यापार करने लगे। अनेक प्रकार के छल प्रपंचों का सूत्रपात हुआ, कोई घूस से काम निकालता था, कोई चालाकी से। अधिकारियों के पौ-बारह थे। पटवारी गिरी का सर्वसम्मानित पद छोड़-छोड़कर लोग इस विभाग की […]

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सज्जनता का दंड – मुंशी प्रेमचंद

साधारण मनुष्य की तरह शाहजहांपुर के डिस्ट्रिक्ट इंजीनियर सरदार शिव सिंह में भी भलाइयां और बुराइयां, दोनों ही वर्तमान थीं। भलाई यह कि उनके यहां न्याय और दया में कोई अन्तर न था। बुराई यह थी कि वे सर्वथा निर्लोभ और निस्वार्थ थे। भलाई ने मातहतों को निडर और आलसी बना दिया था, बुराई के […]

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सौत – मुंशी प्रेमचंद

पंडित देवीदत्त का विवाह हुए बहुत दिन हुए, पर उनके संतान न हुई। जब तक उनके मां-बाप जीवित थे तब तक वे उनसे सदा दूसरा विवाह कर लेने के लिए आग्रह किया करते थे पर वे राजी न हुए। उन्हें अपनी पत्नी गोदावारी से अटल प्रेम था। संतान से होने वाले सुख के निमित्त वे […]

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विषम समस्या – मुंशी प्रेमचंद

मेरे दफ्तर में चार चपरासी हैं। उनमें एक का नाम गरीब है। वह बहुत ही सीधा, बड़ा आज्ञाकारी, अपने काम में चौकस रहने वाला, घुड़कियां खाकर भी चुप रह जानेवाला, यथा नाम तथा गुण वाला मनुष्य है। मुझे इस दफ्तर में आए साल भर होते हैं, मगर मैंने उसे एक दिन के लिए भी गैर […]

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आदर्श विरोध – मुंशी प्रेमचंद

महाशय दयाकृष्ण मेहता के पांव जमीन पर न पड़ते थे। उनकी वह आकांक्षा पूरी हो गई थी जो उनके जीवन का मधुर स्वप्न था। उन्हें वह राज्याधिकार मिल गया था जो भारत-निवासियों के लिए जीवन-स्वर्ग है। वाइसराय ने उन्हें अपनी कार्यकारिणी सभा का मेम्बर नियुक्त कर दिया था। मित्रगण उन्हें बधाइयां दे रहे थे। चारों […]

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गुप्त धन – मुंशी प्रेमचंद

बाबू हरिदास का ईंटों का पजावा शहर से मिला हुआ था। आसपास के देहातों से सैकड़ों स्त्री-पुरुष, लड़के नित्य आते और पजावे से ईंट सिर पर उठा कर ऊपर कतारों से सजाते। एक आदमी पजावे के पास एक टोकरी में कौड़ियाँ लिए बैठा रहता था। मजदूरों को ईंटों की संख्या के हिसाब से कौड़ियाँ बाँटता। […]

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बौड़म – मुंशी प्रेमचंद

मुझे देवीपुर गये पांच दिन हो चुके थे, पर ऐसा एक दिन भी न होगा कि बौड़म की चर्चा न हुई थी। मेरे पास सुबह से शाम तक गांव के लोग बैठे रहते थे। मुझे अपनी बहुज्ञता को प्रदर्शित करने का न कभी ऐसा अवसर ही मिला था और न प्रलोभन ही। मैं बैठा-बैठा इधर-उधर […]

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दुस्साहस – मुंशी प्रेमचंद

लखनऊ के नौबस्ते मोहल्ले में एक मुंशी मैकूलाल मुख्तार रहते थे। बड़े उदार, दयालु और सज्जन पुरुष थे। अपने पेशे में इतने कुशल थे कि ऐसा बिरला ही कोई मुकदमा होता था जिसमें वह किसी-न-किसी पक्ष की ओर से न रखे जाते हों। साधु संतों से भी उन्हें प्रेम था। रही शराब, यह उनकी कुल […]

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पूर्व संस्कार – मुंशी प्रेमचंद

सज्जनों के हिस्से में भौतिक उन्नति कभी भूल कर ही आती है। रामटहल विलासी, दुर्व्यसनी, चरित्राहीन आदमी थे, पर सांसारिक व्यवहारों में चतुर, सूद-ब्याज के मामले में दक्ष और मुकदमे-अदालत में कुशल थे। उनका धन बढ़ता था। सभी उनके असामी थे। उधर उन्हीं के छोटे भाई शिवटहल साधु-भक्त, धर्म-परायण और परोपकारी जीव थे। उनका धन […]

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