saadu ki putri hitopdeshhindi kahani
saadu ki putri hitopdesh hindi kahani

गंगा नदी के किनारे एक साधु रहते थे। वे न केवल विद्वान थे बल्कि उनके पास जादुई शक्तियाँ भी थीं।

एक दिन वे ध्यान में मग्न थे, तभी बाज की चोंच से एक चुहिया छूट कर उनके हाथों में आ गिरी। उसकी छोटी-सी पूँछ व काली चमकीली आँखें थीं। उन्हें वह बहुत अच्छी लगी पर घर ले जाने से पहले उन्होंने जादुई मंत्रों के प्रयोग से उसे एक लड़की में बदल दिया।

वे उस लड़की को घर ले जाकर पत्नी से बोले- “तुम हमेशा से संतान चाहती थीं न, तो लो आज से यही हमारी पुत्री है, इसे पूरी देखभाल व स्नेह से पालो।

साधु की पत्नी भी अपनी पुत्री को देख प्रसन्न हो उठी। वह उसे राजकुमारी की तरह पालने लगी। साल बीतते गए, नन्ही लड़की एक सुंदर युवती बन गई। जब वह अठारह वर्ष की हुई, तो साधु व उसकी पत्नी उसके लिए वर तलाशने लगे।

साधु ने कहा- “मेरी बिटिया का विवाह ऐसे व्यक्ति से होना चाहिए, जो सबसे बड़ा हो। मेरे हिसाब से सूर्य ठीक रहेगा।” पत्नी ने भी हामी भरी। उन्होंने जादुई मंत्रों के प्रयोग से सूर्य को नीचे बुला लिया। उन्होंने उसे अपनी पुत्री से विवाह करने को कहा।

पर पुत्री ने पहले ही न कर दी। वह बोली- ” पिताजी! यह तो बहुत गरम है। मैं उससे विवाह करूँगी, जो इससे भी बेहतर हो।”

साधु निराश हो गए। उन्होंने सूर्य से कहा कि वे ही कोई वर सुझाएँ। सूर्य ने कहा- “बादलों के देवता से बड़ा कौन होगा, उनमें तो मेरी किरणों को भी रोकने की शक्ति है।”

साधु ने बादलों को नीचे बुलाया व अपनी पुत्री से विवाह करने को कहा, पर इस बार फिर पुत्री ने मना कर दिया व बोली- “ये तो कितना बदसूरत है, मैं इससे विवाह नहीं कर सकती।” साधु ने बादल देवता से कहा कि वही कोई अच्छा वर सुझा दें। वे बोले- “पवन देवता ठीक रहेंगे, वे तो मुझे भी अपने फूंक से उड़ा देते हैं।”

साधु ने पवन देवता को बुला कर अपनी पुत्री से विवाह करने को कहा। पुत्री ने फिर इंकार कर दिया व बोली- “मैं इससे शादी नहीं करूँगी। ये तो कहीं टिकते नहीं, हमेशा यहाँ-वहाँ भागते रहते हैं।” साधु ने पवन देव से पूछा- “क्या मेरी पुत्री के लिए ऐसा वर हो सकता है, जो आपसे भी बेहतर हो?”

पवन देव ने कहा कि “पर्वत देव मजबूत व ऊँचे हैं, वे मेरा भी रास्ता रोक देते हैं।”

साधु ने पर्वत देवता से कहा कि वह उसकी पुत्री से विवाह कर लें। पुत्री ने फिर से मना कर दिया व बोली- “ये तो बहुत लंबे, सख्त व कठोर हैं, मैं इनसे विवाह नहीं कर सकती, इनसे भी कोई बेहतर चाहिए।”

पर्वत देवता ने चूहे का नाम सुझाया। वे बोले-“माना मैं काफी सख्त, मजबूत व ऊँचा हूँ, पर चूहे मुझमें भी आसानी से बिल बना सकते हैं।”

साधु ने चूहे को बुलाया, उसे देखते ही उसकी पुत्री खुशी से उछल पड़ी- “हाँ पिताजी! यही तो है वह, मैं जिससे शादी करना चाहती थी!”

साधु ने सोचा- इसे ही किस्मत कहते हैं। यह एक चुहिया थी और एक चूहे से विवाह करना ही इसके भाग्य में लिखा है। उन्होंने जादुई मंत्रों के प्रभाव से पुत्री को फिर से चुहिया बना दिया।

चूहा व चुहिया विवाह करके खुशी-खुशी रहने लगे।

शिक्षाः- कोई भी अपने मूल स्वभाव को नहीं बदल सकता।

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