Vikram or Betaal Story in Hindi : राजा विक्रम ने हमेशा की तरह पीपल के वृक्ष से लटक रहे शव को नीचे उतारा, जब विक्रम चुपचाप चलने लगा तो बेताल ने एक और कहानी शुरू की :
एक नगर में, जयानंद नामक धनी व्यापारी रहता था। उसका दूर का संबंधी रमेश भी उसी के यहां रहता था। रमेश जवान और खूबसूरत था लेकिन बड़ा आलसी था। उसे दिन में ही सपने देखने की आदत थी। जब देखो, तब ख्याली पुलाव पकाता रहता। वह अक्सर धनी होने का सपना देखता, लेकिन धन कमाने के लिए मेहनत नहीं करना चाहता था।
एक दोपहर उसने सपने में देखा कि वह धनी हो गया है और जयानंद उसके घर में नौकर है। वह चिल्लाया :- “अरे जयानंद! जाओ, एक गिलास पानी लाओ।” जब जयानंद ने उसे ऐसी बदतमीज़ी करते सुना तो उसने गुस्से में फटकारा :- “मुझे नौकर बुलाने की हिम्मत कैसे हुई तेरी, मेरे घर से अभी निकल जा।”
रमेश ने माफी भी मांगी पर जयानंद ने उसे घर से निकाल दिया। रमेश काफी परेशान था। उसने गांव लौटने का फैसला किया। गांव जाने के लिए एक घने वन से गुजरना पड़ता था। काफी लंबा सफर तय करने के बाद, वह एक पेड़ के नीचे सुस्ताने बैठ गया। तभी वहां से एक साधु गुजरे। रमेश उनके पैरों पर गिर गया व धनवान बनने का आशीर्वाद मांगने लगा। साधु मुस्कुराकर बोला :- “पुत्र धन कमाने के लिए मेहनत करनी पड़ती है।”
हालांकि रमेश इस उत्तर से संतुष्ट नहीं था किंतु, फिर भी बोला :- “प्रत्येक यही कहता है, किंतु यदि मेहनत ही करनी है तो ऐसे धन का क्या लाभ?”
कुछ सोचकर, साधु ने उसे एक मंत्र बता कर कहा:- “जब भी कोई सपना सच करना चाहो तो इस मंत्र का छः बार जाप करना।”

रमेश मंत्र पाकर प्रसन्न हुआ। वह शहर लौट आया तथा एक सराय में रहने लगा। एक दिन उसने सपना देखा कि जयानंद उससे माफी मांग रहा है और विनती कर रहा है कि वह उसकी पुत्री से विवाह कर ले। रमेश ने तत्काल छः बार मंत्र पढ़ा।
कुछ ही मिनटों में उसे बाहर से बाजे की आवाज सुनाई दी। जयानंद हाथ जोड़े खड़ा था। उसने कहा:- “मुझे माफ कर दो। घर चलो व मेरी बेटी मालिनी से विवाह कर लो।”

रमेश बहुत प्रसन्न हुआ व मालिनी से विवाह करने के लिए मान गया। वह उस घर में जयानंद का दामाद बन कर रहने लगा।
हालांकि, घर के नौकर-नौकरानियां उसे इज्जत-मान नहीं देते थे, क्योंकि पहले वह भी उन्हीं की तरह घर का एक नौकर था।
जयानंद ने भी इस चीज़ को ध्यान से देखा। फिर उसने एक शुभचिंतक होने के नाते रमेश को सलाह दी कि उसे अपना काम-धंधा करना चाहिए, तभी लोग उसे इज्जत देंगे। रमेश ने जयानंद से कुछ रुपया उधार लेकर अपना काम शुरू किया।
कुछ दिन बाद उसने सपने में देखा कि वह नगर का सबसे धनी व्यापारी हो गया है। उसने अपनी पत्नी को साधु व उसके मंत्र के बारे में बताया। फिर उसने छः बार मंत्र-जाप किया।
जल्द ही उसके व्यवसाय में चार-चांद लग गए। तीन माह में ही, वह नगर का सबसे धनी व्यापारी हो गया। अब घर के नौकर-चाकर भी उसका सम्मान करने लगे थे।

हालांकि, कई व्यापारी उसकी सफलता से जलते थे। वे राजा की नजरों में रमेश की छवि बिगाड़ना चाहते थे। उन्होंने दरबार में शिकायत कर दी कि रमेश सारे शाही कर नहीं चुका रहा है।
राजा ने उन लोगों पर विश्वास कर लिया व रमेश को चेतावनी दी कि अगर उसने सभी कर अदा नहीं किए तो उसे जेल जाना होगा।
इसी दौरान रमेश ने सपना देखा कि वह राजा बन चुका है और शिकायत करने वाले व्यापारियों को सजा दे रहा है। उसने अपनी पत्नी को सपने के बारे में बताया, तो उसने मंत्र का पाठ करने को कहा ताकि रमेश का सपना सच हो जाए, किंतु रमेश को जाने क्या सूझी, वह साधु के पास गया और जादुई मंत्र उसे लौटा आया और नगर में आकर अच्छे नागरिकों की तरह रहने लगा व नियमित रूप से सभी कर देने लगा। वह अब पूरी मेहनत और ईमानदारी से काम करने लगा था।

यहां बेताल ने कहानी समाप्त कर विक्रम से पूछा :- “रमेश राजा क्यों नहीं बना? विक्रम बोला :- “मेरे अनुसार रमेश अब परिपक्व हो गया था। उसे अहसास हो गया था कि समाज में केवल कड़ी मेहनत से ही धन, मान व प्रतिष्ठा पाए जा सकते हैं। किसी दूसरे का आदर-मान पाने के लिए स्वयं को साबित करना पड़ता है।”
बेताल बोला :- “तुमने बिल्कुल सही परख की, पर तू बोला और मैं चला।” कह कर बेताल फिर से पीपल के वृक्ष की ओर उड़ चला। राजा विक्रमादित्य एक बार फिर हाथ में तलवार लिए दीवानों की तरह उसका पीछा करने लगा।

