Jataka Story in Hindi : किसी नगर में एक चोर रहता था। वह अक्सर रात को लोगों के घरों में घुसता। जो भी हाथ लगता, उसे ले कर चंपत हो जाता। एक रात वह ऐसे घर में घुसा। जिस पर कई दिन से ताला लगा था। बरामदे में पहुँचा तो उसने देखा कि एक कमरे में दीपक जल रहा था। वह सावधान हो गया, उसे लगा कि जरूर कमरे में कोई होगा।
वह धीरे-धीरे दबे पांव कमरे तक पहुँचा व बाहर इंतजार करने लगा। जब अंदर से कोई आवाज़्ा नहीं आई तो उसने भीतर झाँका। अंदर कमरे में एक पलंग और तीन-चार बड़ी अल्मारियाँ पड़ी थीं पर कोई दिखाई नहीं दिया। वह भीतर पहुंचा तो देखा कि कमरे में सोने के टुकड़े फर्श पर पड़े चमचमा रहे थे।
अपने भगवान को इतनी दयालुता दिखाने के लिए धन्यवाद दिया व सोचा-‘‘मैं यह सारा सोना उठा लूँगा। फिर मुझे चोरी करने की जरूरत भी नहीं पड़ेगी और मैं चैन से रहूंगा।’’
उसने जल्दी से सोने के टुकड़े रूमाल में भरने शुरू कर दिए।
कमरे से निकलने लगा तो कुछ और टुकड़े दिखे।

उसने रूमाल की गांठ खोली और उन्हें रखने लगा। इस तरह जब भी वह जाने लगता तो कुछ सोने के टुकड़े दिखने लगते। वह सारी रात यही काम करता रहा। उसे पता भी नहीं चला कि कब सुबह हो गई। लालच ने उसे सारी रात रोके-रखा।
सुबह की रोशनी में जाना खतरे से खाली नहीं था। अचानक किसी के दरवाजा खोलने की आहट हुई। दीपक भी बुझ गया था। कमरे में पड़े सोने के टुकड़े भी गायब हो गए।
चोर अचानक कुछ तय नहीं कर सका। उलझन में पड़ कर उसने वह पोटली वहीं छोड़ी और अलमारी के पीछे छिप गया। एक साधु महाराज भीख के कटोरे के साथ कमरे में आए। वे वहां बड़ी पोटली को देख सोचने लगे-‘‘इसे यहाँ कौन छोड़ गया? ये यहाँ कैसे आई?’’

उन्होंने उसे उठा कर खोला तो बीच में राख पड़ी थी।
उन्हें कुछ समझ नहीं आया तो वे पोटली को वहीं रख बिस्तर पर आराम करने लगे।
अलमारी के पीछे छिपा चोर सब देख रहा था। उसे भी समझ नहीं आ रहा था कि पोटली में पड़े सोने के टुकड़े, राख मंे कैसे बदल गए। सब कुछ एक करिश्मा लग रहा था।
थोड़ी देर आराम करने के बाद साधु घर से निकल गए। चोर ने पोटली को ध्यान से देखा। सचमुच उसमें राख का ढेर पड़ा था। वह नहीं जानता था कि क्या करे। दिन मंे बाहर निकलता तो पकड़ा जाता। फिर वह इस राज को भी सुलझाना चाहता था इसलिए वह कमरे में ही छिपा रहा।

शाम होते ही कमरे में रखा दीपक अपने-आप जल गया। फिर से फर्श पर सोने के टुकड़े पड़े दिखने लगे। वह फिर से सुबह तक सोना बटोरता रहा। फिर से साधु लौटा और रूमाल का सोना राख में बदल गया।
इस तरह चोर चार रातों तक वहीं रहा। पाँचवें दिन साधु के जाते ही, वह छिपने के स्थान से बाहर निकला व उनके पैरों में गिर पड़ा व बोला, ‘‘हे महात्मा! मुझे क्षमा करें या जो जी में आए सजा दे दें, पर बता दें कि इस कमरे में क्या हो रहा है? इस जलते दीपक व सोने के टुकड़ों और राख का राज क्या है?’’

साधु ने चोर से कहा- ‘‘सुनो, युवक! कभी इस धरती पर एक मठ था। इस कमरे के स्थान पर साधु संत रहते थे। यह सब उनकी ही इच्छा से कमरे में दीपक स्वयं जलता है। फर्श पर सोने के टुकड़े बिखरे रहते हैं पर पोटली में बांधते ही राख के ढेर में बदल जाते हैं।’’ चोर साधु की बातों से बेहद प्रभावित हुआ। साधु ने कहा- ‘‘निश्चय ही तुम पिछले जन्म में भले आदमी रहे होंगे। ईश्वर तुम्हारे प्रति दयालु हैं। उन्होंने तुम्हें सीधे रास्ते पर लाने व तुम्हारा विवेक जागृत करने के लिए ही यह खेल रचा होगा।’’
चोर ने उसी दिन से चोरी करना छोड़ दिया। वह घर जाने की बजाए साधु बन गया जो लोगों को यही उपदेश देता था।
‘‘सच्चाई के मार्ग पर चलो व ईमानदारी से जीयो।’’
शिक्षा:- अपने व्यवहार में सुधार करने के लिए कभी देर नहीं होती।

