Ahaṅkāra
Ahaṅkāra

Heart Touching Story: बहुत पुरानी बात है, एक सेठ था दिल का उदार। उसके पास विलासिता की सभी वस्तुएं मौजूद थी। अपनी विलासिता का गर्व भी जबरदस्त था। जब भी कोई उसके पास आता तो वह बड़ी-बड़ी बातें करता हुआ अपने बंगले की हर चीज उसे दिखाता और साथ ही यह कहने से भी नहीं चूकता था कि उसके पास जो कुछ भी है वह यहां से कोसों दूर तक किसी के पास नहीं है। सब लोग सेठ की इस आदत से वाकिफ थे इसलिए उससे दूर ही रहना पसंद करते थे। कई बार ऐसा भी हुआ कि सेठ ने किसी-किसी व्यक्ति को घेरकर उसके ना चाहते हुए भी अपनी विलासिता की डींगे मारी।

खैर एक दिन वह संत को अपना बंगला दिखाने लाया। संत अलमस्त थे और सेठ अपनी आदत के मुताबिक ही अपने बड़प्पन की डींगे हांकने में व्यस्त था। संत को उसकी हर बात में अहम ही नजर आता था। यह बात स्वाभाविक भी थी क्योंकि सेठ तो अपने अहम को प्रदर्शित करने के लिए ही दिखावा कर रहा था। वह अपनी बातों में इतना व्यस्त था कि उसने संत की ओर देखा तक नहीं। ना ही उसे इसका अहसास था कि संत उसकी बातों से चिढ़ रहे हैं।

बहरहाल सेठ से आजिज आकर संत ने उसकी मैं-मैं की महामारी मिटाने के उद्देश्य से दिवार पर टंगे मानचित्र को दिखाते हुए पूछा, “इसमें तुम्हारा शहर बस इतना सा ही है। क्या तुम इस नक्शे में अपना बंगला बता सकते हो?”

उसने जवाब दिया, “मेरा बंगला इस पर कहां दिखता है? वह तो ऊंट के मुंह में जीरे के बराबर है।”

संत ने पूछा, “तो फिर अभिमान क्यों?”

शर्मिंदगी के मारे सेठ का सिर झुक गया। वह समझ गया कि नक्शे में उसका नामोनिशान नहीं है, फिर वह क्यों फूला समा रहा है? अब सेठ को समझ आ गया था कि वह अब तक जो कुछ कर रहा था वह अहंकार के वशीभूत हो करके ही कर रहा था।

शिक्षा : यह सत्य ही है कि अहंकार बुद्धि को खा जाता है। यदि आप कहते हैं कि ये मेरा है या मैं ही कर सकता हूं तो आपकी बातों से अहंकार झलकता है। इसलिए ऐसी बातों से हमेशा बचना चाहिए।

ये कहानी ‘दिल को छू लेने वाली कहानियाँ’ किताब से ली गई है, इसकी और कहानी पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर जाएंDil Ko Chhoo Lene Wali Kahaniyan (दिल को छू लेने वाली कहानियाँ)