विक्रम चलता जा रहा था तो बेताल बोला, “मैं तुम्हें एक कहानी सुनाऊँगा और तुम्हें आखिर में, मेरे प्रश्न का उत्तर देना होगा। यदि तुमने उत्तर न दिया, तो तुम्हारे सिर के हजारों टुकड़े कर दूंगा!” यह कह कर बेताल कहानी सुनाने लगा।

एक राजा का नन्हा-सा एक पुत्र था। वह उसे अच्छी शिक्षा देना चाहता था। इसी उद्देश्य से वह एक साधु के पास पहुँचा और बोला, “इसे शिक्षा दें, किंतु एक राजकुमार की तरह ही पेश आएँ।” साधु ने दृढ़तापूर्वक कहा, “नहीं, यह संभव नहीं है। यदि उसे यहाँ शिक्षा ग्रहण करनी है, तो आम छात्रों की तरह ही रहना होगा।” राजा बहुत क्रोधित हुआ वह उस साधु को सबक सिखाना चाहता था। खैर उसने तय किया कि वह बाद में साधु से हिसाब-किताब बराबर कर लेगा। वह राजकुमार को आश्रम में छोड़ कर लौट आया।

कई वर्ष बीत गए। राजकुमार अपने प्रिय गुरु की देखभाल में एक बुद्धिमान युवक बना। जब आश्रम छोड़ने का समय आया, तो राजकुमार ने कहा, “गुरु जी! आपने मुझे जो अच्छी देख-रेख व शिक्षा प्रदान की, उसके बदले में, मैं भी कुछ देना चाहता हूँ!”

गुरु जी ने उसकी भावनाओं को सराहा व बोले, “मैं उचित समय आने पर अपनी गुरुदक्षिणा माँग लूँगा।” गुरु को धन्यवाद दे कर राजकुमार लौट गया। गुरु जी के व्यवहार से खिन्न राजा ने उन्हें सबक सिखाने की सोची। उसने अपने सैनिकों को आदेश दिया, “जाओ, गुरुकुल में आग लगा दो!”

एक दिन, राजकुमार अपने गुरु से मिलने गया। गुरुकुल को राख के ढेर में बदला देख, उसके क्रोध की सीमा न रही। उसने साधु से पूछा, “गुरु जी! यह सब किसने किया? जिसने भी किया होगा, मैं उसे छोडूंगा नहीं।”

अब बेताल ने राजा विक्रम से पूछा, “बता, साधु ने राजकुमार से क्या कहा? बोल, वरना तेरे सिर के हजार टुकड़े कर दूंगा।”

राजा विक्रम पल-भर के लिए रुके, किंतु जवाब दिए बिना नहीं रह सके। उन्होंने उत्तर दिया, “उन्होंने राजकुमार से कहा कि गुरुदक्षिणा चुकाने का उचित समय आ गया है। उन्होंने उसे उसके पिता को माफ करने के लिए कहा, जो गुरुकुल में आग लगवाने का जिम्मेदार था।”

बेताल ने हैरानी से कहा, “विक्रम! तेरी बुद्धि की तो दाद देता हूँ, पर तूने चुप रहने की कसम तोड़ दी इसलिए अब मुझे, तुझे छोड़ कर जाना होगा और बेताल फिर से पीपल के वृक्ष की ओर उड़ चला।

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