Posted inहिंदी कहानियाँ

पागल की हवेली – गृहलक्ष्मी कहानियां

समिधा को अपनी ससुराल, लखनऊ की पुस्तैनी हवेली, रास न आई। उसे यह हवेली कम, भुतहा महल ज्यादा लग रही थी। अब वह अपने मायके से, शिकायत भी नहीं कर सकती, उसी ने मनोज को चुना है। घर में सभी उसके चुनाव से प्रसन्न हो गए।

Posted inहिंदी कहानियाँ

श्रीमती जी की नाराजगी – गृहलक्ष्मी कहानियां

समाज से बहिष्कृत लेखक नामक इस प्राणी को इस स्थान से अधिक सकून और कहां मिल सकता है। नैतिकता के बोझ तले दबा यह प्राणी एकांतवासी न हो तो और क्या हो?

Posted inहिंदी कहानियाँ

मुंशी प्रेमचंद की सवा सेर गेहूॅं- गृहलक्ष्मी कहानियां

क्या घर आए साधु को भोजन खिलाने की चाहत रखना शंकर की गलति थी या ये उसकी अज्ञानता थी जिसने उसके साथ असके परिवार का भी सर्वनाश कर दिया।

Posted inहिंदी कहानियाँ

शीत युद्ध – गृहलक्ष्मी कहानियां

जब से वो आई थी, मेरा जीना हराम हो गया था। घर के सभी सदस्यों पर तो जैसे उसने जादू ही कर दिया था। उसको काबू करने की मेरी तमाम कोशिशें नाकाम हो गई थीं, जिससे वो मेरी आंखों में भी चुभने लगी।
वैसे भी मेरा उससे कोई खास लगाव का रिश्ता नहीं था, क्योंकि वह मेरे ससुराल से आई थी।

Posted inहिंदी कहानियाँ

दूसरा मायका – गृहलक्ष्मी कहानियां

संयुक्त परिवार में पली-बढ़ी लता बहुत ही संस्कारी और  सबकी चहेती थी। भगवान ने भी रंग रूप देने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी। दादा-दादी, चाचा- चाची, ताऊ-ताई, छह बहन, पांच भाई इतना बड़ा परिवार था उसका । परिवार में इतनी बेटियां होने के कारण शीघ्र ही उनका विवाह कर दिया जाता था। लता भी अब शादी की उम्र में आ चुकी थी, हालांकि अभी वह केवल 19 वर्ष की ही थी किंतु विवाह के लिए अब उसका नंबर आ गया था।

Posted inहिंदी कहानियाँ

पहल – गृहलक्ष्मी कहानियां

आज जैसे ही मैं कालेज से घर पहुंची, पूरे घर पर सन्नाटा पसरा हुआ था.रोज इस वक्त मां दादी के पैर दबा रही होती हैं, बड़ी भाभी बच्चों को होम वर्क और छोटी भाभी खाने पर मेरा इंतजार कर रही होती है, परन्तु आज का दृश्य कुछ और ही था. मैं समझ गई आज फिर छोटी भाभी को लेकर अवश्य कोई विवाद उत्पन्न हुआ होगा.

Posted inहिंदी कहानियाँ

विडंबना – गृहलक्ष्मी कहानियां

ये एक स्त्री के लिए विडंबना ही तो है कि घर-बाहर हर जगह उसका अपना ही वजूद सुरक्षित नहीं। नरपिशाचों से खुद को बचाते हुए लक्ष्मी का भाग्य भी ऐसी ही परिस्थितियों से गुज़र रहा था।

Posted inहिंदी कहानियाँ

इतिश्री – गृहलक्ष्मी कहानियां

प्रसव के दौरान देवरानी पलक की मौत ने मुझे भीतर तक झकझोर दिया, उसकी उम्र ही क्या थी? मौत उम्र नहीं देखती, उसे जब आना होता वह आती है। मन को समझाएं हुए मैं उसकी नवजात बेटी को कमरे में सुलाने गयी तो वहां ताई सास अपनी बहू मीना को पाठ पढ़ा रही थीं। ‘मीना’ तू अपने मायके खबर कर दे। तेरे घर वाले सांत्वना देने आ जाएंगे, फिर मौका देखकर तेरी बहन रीना के रिश्ते की बात पल्लव से चला देंगे। बच्चों की खातिर शादी के लिए पल्लव मान ही जायेगा।

Posted inहिंदी कहानियाँ

पाप का ताप- गृहलक्ष्मी कहानियां

 सुबह लगभग साढ़े नौ बजे शिवानी आफिस पहुँची। उसने अपना हैंडबैग टेबल पर रखा ही था कि:-  मैडम, आपको मैनेजर साहब ने बुलाया है, अभी”चपरासी ने शिवानी को आकर संदेश दिया।  ठीक है तुम जाओ”कह कर शिवानी कम्पनी के मैनेजर ‘गजेन्द्र सिन्हा’ के केबिन में दाखिल हुई।  अरे आओ शिवानी क्या बात है? आज तो […]

Posted inहिंदी कहानियाँ

मुन्ने की वापसी – गृहलक्ष्मी कहानियां

पहले-पहल राइचरण जब मालिक के यहाँ नौकरी करने आया, तब उसकी उम्र बारह वर्ष की थी। जैसोर ज़िले में उसका घर था। लंबे बाल, बड़ी-बड़ी आँखें, साँवला, चिकना और छरहरा। जात से कायस्थ। उसके मालिक भी कायस्थ थे। मालिक के एक साल के बच्चे की देखभाल और पालन-पोषण में सहायता करना ही उसका प्रधान कर्त्तव्य था।

Gift this article