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ऐसा तो सोचा ना था- गृहलक्ष्मी की कहानियां

Hindi Short Story: साठ वर्ष की आयु पार कर चुकी सुनीता सुंदर होने के साथ ही आकर्षक व्यक्तित्व की भी धनी थी। सुंदर छवि के कारण नारी को कठिनाइयों का सामना करना ही पड़ता है। जवानी की दहलीज़ पर क़दम रखने के बाद से ही पुरुष का छिछोरापन उनके द्वारा कि गई अप्रिय हरकतें और […]

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टूटते बिखरते परिवार

Parivar ki Kahani: शिल्पा जब ब्याह कर ससुराल आई तो एक दिन सोहन ने उससे कहा, ‘शिल्पा मैं तुमसे कुछ कहना चाहता हूं या यूं समझ लो कि कुछ मांगना चाहता हूं।‘हां बोलो ना, क्या बात है सोहन?‘शिल्पा मैं जानता हूं तुम इतनी ज़्यादा पढ़ी लिखी हो और आजकल हर लड़की अपने पैरों पर खुद […]

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वो आधा घंटा—दुखद हिंदी कहानियां          

वो आधा घंटा-आज सुबह जब पवित्रा टहलने के लिए निकली तब उसे फूल बानो रास्ते में मिलगई। फूल बानो उसका नाम नहीं था किंतु सोसाइटी में फूल बांटती थी इसलिए सबउसे फूल बानो कहकर बुलाते थे। एकदम हंसमुख चेहरे वाली फूल बानो को देखकरसभी को लगता था कितनी ख़ुश रहती है यह, लगता है कभी […]

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दूसरा मायका – गृहलक्ष्मी कहानियां

संयुक्त परिवार में पली-बढ़ी लता बहुत ही संस्कारी और  सबकी चहेती थी। भगवान ने भी रंग रूप देने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी। दादा-दादी, चाचा- चाची, ताऊ-ताई, छह बहन, पांच भाई इतना बड़ा परिवार था उसका । परिवार में इतनी बेटियां होने के कारण शीघ्र ही उनका विवाह कर दिया जाता था। लता भी अब शादी की उम्र में आ चुकी थी, हालांकि अभी वह केवल 19 वर्ष की ही थी किंतु विवाह के लिए अब उसका नंबर आ गया था।

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घोंसला—गृहलक्ष्मी की कहानियां

अधेड़ उम्र की यमुना के घर के बाहर आँगन में एक विशाल वृक्ष था। उस वृक्ष पर कई पक्षी अपना घोंसला बनाकर रहते थे। यमुना हर सुबह पक्षियों को दाना डालती और पक्षी भी रोज़ दाना चुगने नीचे आते थे।आज यमुना के छोटे बेटे राघव का विवाह था। यमुना बहुत ख़ुश थी लेकिन राघव का […]

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एक चेहरे के कई रूप नजर आए—गृहलक्ष्मी की कविता

गृहलक्ष्मी की कविता: चूर हो गया दर्पण मेरा, अनेकों चेहरे उसमें मेरे नज़र आएहर टुकड़े में चेहरे के मेरे अलग-अलग कई रूप नज़र आए, कोई रोता, कोई हंसता था, ईर्ष्या से भरा हुआ कोई दिखता था,कोई अपमान किसी का करता कोई स्वयं अपमानित लगता था, कोई दयालु था, कोई क्रूर था और कोई स्वयं में […]

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यह रिश्ता है प्यार का – गृहलक्ष्मी की कहानियां

 राजीव का घर दुल्हन की तरह सजा हुआ था रंग-बिरंगे फूलों से बने हार, रंगीन बल्बों की सीरीज, बेहद आकर्षक मंडप और कानों को प्रिय लगे ऐसा लाजवाब संगीत चल रहा था। कोई भी राह से गुजरने वाला व्यक्ति दो मिनट रुककर, उस बंगले को देखता ज़रूर था। घर में आने-जाने वालों की भीड़ लगी हुई थी। राजीव की माँ दमयंती […]

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आत्मसम्मान – गृहलक्ष्मी कहानियां

रोज-रोज अपने आत्मसम्मान पर चोट सहन करती उर्मिला अपने मन में सोच रही थी कि आख़िर क्यों वह अपने आत्मसम्मान को प्रतिदिन तार-तार होने देती है? क्यों बात-बात पर ताने सुनती है? क्या इस परिवार के लोगों को सम्मान देना सिर्फ़ उसका ही कर्तव्य है? क्या उनका कर्तव्य कुछ नहीं जो उसे उसके परिवार से दूर अपने घर ले आए हैं?

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मेहमान बन कर आएंगे – गृहलक्ष्मी कहानियां

कलेक्टर के पद से सेवानिवृत्त होने के बाद वसुधा ने अपने पति से कहा, “अशोक हम दोनों सेवानिवृत्त हो चुके हैं, क्यों ना अब हम राहुल के साथ रहें। उन्हें सहारा मिल जाएगा और हमारे लिए भी कितना अच्छा होगा, इकट्ठे होकर रहना।”

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