ताई जी की सोच पर घृणा हुई, अभी पलक को गुजरे मात्र एक दिन ही हुआ है और इन्हें सूझी है कि पल्लव की दूसरी शादी की। कभी बिगडै़ल और जिद्दी रीना की शादी की बात पल्लव से चली थी, लेकिन पल्लव ने साफ इंकार करते हुए अपनी सहकर्मी पलक से प्रेम विवाह किया था और मैंने उनका साथ दिया था इस वजह से ताई जी और मौजी मुझसे चिढ़ गयी थी।

इधर रीना की भी शादी हो चुकी थी, लेकिन उसके झगड़ालू स्वभाव के कारण एक साल के अंदर ही उसका अपने पति से तलाक हो चुका था। पल्लव-पलक की पहली संतान बेटा प्रांजल था जो लगभग 5 वर्ष का था। दूसरी बरा जब पलक गर्भवती हुई तो उसने वह बच्चा मुझे देने का वचन दे दिया। यह सुनकर मेरी आंखों में आसूं आ गये 10 वर्षों से सूने पड़े ममता के आंगन में अचानक यूं बहार आ जायेगी, मैंने सपने में भी ना सोचा था। उसके इस निर्णय पर मैंने भावातिरेक से उसे गले लगा लिया।देवरानी जेठानी के मध्य ऐसा आत्मीय कम ही देखने को मिलता है लेकिन एक बच्चे की वजह से हमारा रिश्ता इतना अटूट और भावना प्रधान बन गया । लेकिन होनी को कौन टाल सकता है। प्रसव के दौरान आयी जटिलताओं के कारण पलक की मौत हो गयी लेकिन बच्चा बचा लिया। उसको अपनी कोख जाई संतान समझकर सीने से लगा लिया।

शाम के समय ताई जी मांजी से बोली, ‘विद्या, पलक तो चली गयी लेकिन अब यह सोच पल्ल्व और उसके बच्चों का क्या होगा’?

‘‘हां दीदी, यही चिंता तो मुझे घुन की तरह खाये जा रही है, बच्चों का क्या होगा। पल्लव की उम्र ही क्या है? बेचारा कैसे काटेगा बिन औरत के अपनी पहाड़ सा जीवन?”

मुझे मां जी की सोच पर क्रोध आया, उन्हें पलक की मौत का गम नहीं बल्कि पल्लव को लेकर इस बात की फिक्र है कि वह बिना औरत के जीवन कैसे काटेगा?

‘‘अब दीदी तुम ही कोई लड़की बताओ जो मेरे बेटे से शादी करके उसके बच्चों को भी अपना लें’।

‘‘क्यों चिंता कर रही है विचार अपनी मीना की बहन रीना है ना। वह तो बेचारे अब भी शादी करने को तैयार हैं, बस पल्लव मान जाये।”

‘‘लेकिन दीदी, रीना तो तलाकशुदा हैं, मां जी ने चिंतित स्वर में कहा।

‘‘तो तेरा बेटा कौन सा कुंवारा है। वह विधुर होने के साथ-साथ दो बच्चों का बाप भी तो है। आखिर क्या कमी है रीना में सुंदर है जवान है। और फिर उसके घरवाले दहेज में मोटी रकम भी तो देगें,” आखिरी बात ताई जी बड़े धीरे से मां जी के कान में कही।

शायद आखिरी बात ही मांजी की समझ में आ गयी क्योंकि पल्लव की शादी में दहेज जो नहीं मिला था इस वजह से मां जी पलक से हमेशा नाखुश रहीं। 

‘‘ठीक है दीदी, मौका देखकर मैं पल्लव से बात कर लूंगी,”

‘‘विद्या, लोहा जब गरम हो चोट तभी करनी चाहिये। अभी पल्लव दुख में डूबा है और उसके सामने बच्चों के भविष्य का सवाल है। वह बच्चों का मुंह देखकर पिघल जायेगा और शादी के लिये हां भी कर देगा।”

देवरानी -जेठानी की बातें सुनकर मुझे लगा जैसे यह दोनों किसी राजनीतिक मुद्दे पर बड़ी गम्भीरता से विचार विमर्श कर रही हों।

रात के खाने के बाद सभी के सामने मां जी पल्लव से बोली, ‘‘बेटा, पलक तो अब हम सबको छोड़कर चली गयी, लेकिन मुझे तेरी और बच्चों की चिंता खाये जा रही है। मुझ बूढ़ी का क्या भरोसा, आज हूं कल नहीं इसलिये चाहती हूं, तू रीना से शादी कर ले। बच्चों को मां मिल जायेगी और तेरा अकेलापन भी दूर हो जायेगा।”

‘‘मां, मैं दूसरी शादी नहीं करूंगा, प्रांजल 5 साल का चुका है स्कूल जाने लगा है उसे संभाल लूंगा मै। बिटिया तो भाभी की है। उसके होने से पहले ही पलक ने उसे भाभी को दे दिया था। रही मेरी बात तो मैं पलक की यादों को सहारे काट लूंगा अपना जीवन।”

अपनी चाल में नाकाम देखकर ताईजी और मां जी दोनों भड़क गयी। मां जी ने तो मेरी तरफ मुखातिब होते हुए कठोर प्रहार कर दिया, अरे जिस औरत के खुद के बच्चे ही ना हुए हों, भला वह पराये बच्चों को कैसे संभालेगीं। और तू अपना पहाड़ जैसा जीवन पलक को यादों के सहारे काटने को कह रहा है, यह तू अभी भावनात्मक जोश में बोल रहा है। भरी जवानी में बिन साथी के रहना मुश्किल है यह प्रकृति का नियम है। ”

मांजी की बात सुनकर मेरे अंदर क्रोध का ज्वालामुखी फूट गया,” अगर मैं बच्चों को नहीं संभाल सकती तो क्या गारण्टी है कि रीना या अन्य कोई लड़की बच्चों को संभाल लेगी।

और हां मांजी, आप कहती हैं कि भरी जवानी में कोई बिन साथी के नहीं रह सकता, लेकिन आपके सामने इसका जीता जागता प्रमाण मैं हूं। मैं अपने साथी के उस साथ से दूर हूं, जिसकी आप बात कर रही हैं।

शादी की पहली ही रात मालूम हुआ कि शेखर शारीरिक संबंध बनाने में अक्षम है, जानकर मुझे भी झटका लगा था, लेकिन उन्होंने पूरी ईमानदारी और विश्वास से बताया कि उन्हें भी इस बात का पता अभी चला है अगर यह बात उन्हें मालूम होती तो वह शादी ही न करते। सरल हृदय शेखर ने उसी रात निवेदन किया कि वह उन्हें त्याग कर दूसरा विवाह कर ले, वह मुझे तलाक देकर आजाद कर देंगे।”

लेकिन उनकी ईमानदारी और विश्वास देखकर और यह जानते हुए भी कि पेट की भूख से ज्यादा तन की भूख भंयकर होती है, उन्हें मन से अपना लिया, यह सोचकर कि आजीवन कुंवारे, विधवा और विधुर भी जिदंगी गुजारते हैं।

शेखर सब सुन रह थे। उनके सीने से लगकर रो पड़ी, ‘‘प्लीज शेखर, मुझे माफ कर दो। मैने यह सब बताना नहीं चाहती थी, लेकिन जब चोट मेरी ममता पर की गई तो मैं खुद को रोक ना सकी।”

‘‘शानू, अच्छा हुआ, जो आज तुमने यह सच सबके सामने बता दिया, वरना मैं अंदर ही अंदर घुटता रहता। लेकिन मैं जानता हूं, तुम्हारे इस त्याग की कोई चर्चा नहीं होगी, क्योंकि तुम औरत हो। अगर यह त्याग किसी पुरुष ने किया होता तो चारों तरफ उसकी सहनशीलता के किस्से फैल जाते।”

शेखर ने सच ही कहा, यह सब सुनकर लोग धीरे धीरे वहां से हट गए जैसे कोई तमाशा खत्म हो गया हो। ताई जी बड़बड़ाते हुए दूसरे कमरे में चली गई। मां जी बस इतना बोली, ‘‘शानू, मुझे तुम पर पूरा भरोसा है कि तुम बच्चों को संभाल लोगी। पल्लव शादी करे या ना करे यह उसका निजी मामला है,”

यह कहकर मां जी ने अपने कर्तव्य की इतिश्री कर ली।

यह भी पढ़ें –भाग्य या दुर्भाग्य – गृहलक्ष्मी कहानियां

-आपको यह कहानी कैसी लगी? अपनी प्रतिक्रियाएं जरुर भेजें। प्रतिक्रियाओं के साथ ही आप अपनी कहानियां भी हमें ई-मेल कर सकते हैं-Editor@grehlakshmi.com
-डायमंड पॉकेट बुक्स की अन्य रोचक कहानियों और प्रसिद्ध साहित्यकारों की रचनाओं को खरीदने के लिए इस लिंक पर क्लिक करेंhttps://bit.ly/39Vn1ji