Hindi Love Story: बिल्ली, “रास्ता काट गई” पीछे से ठहाको की आवाज आने लगी। “छोड़ना यार, क्यों पीछे पड़ा रहता है उसके?” क्यों ना बोलूं रोनी सी शक्ल जब भी सामने आती है। कुछ न कुछ गड़बड़ होती ही है। “देख मेरी गाड़ी पंचर हो गई” कॉलेज का सहपाठी जोर से बोला और प्रिया सर झुकाए आगे बढ़ गई।
यह सब रोज का था। जरा सी बात पर रो देने के कारण स्कूल में भी सभी उसे हर समय परेशान करते रहते हैं। उसे तो यह सब सुनने की आदत हो गई थी। जब से वह पैदा हुई थी पिता हर समय उसे मनहूस कहकर संबोधित करते क्योंकि उसके पैदा होने के कुछ मिनट बाद ही उसकी मां का देहांत हो गया। अपनी पत्नी की मौत की वजह वो प्रिया को बताते। खुद तो कभी दो शब्द प्यार के बोल नहीं उस पर सौतेली मां के ताने उफ़! कुछ समय बाद तरस खाकर नीता बुआ जी उसे पढ़ाई के बहाने अपने घर ले गई। वहां भी कौन सा उसे सुख था। फूफा जी की जली कटी उसके जख्मों को कभी भरने नहीं देती। “खा गई अपनी मां को और हमारी छाती पर मूंग दलने बैठी है।” बुआ भी कम न थी बिन मां की बच्ची को शिक्षा दिलाने के बहाने फ्री की नौकरानी बनाकर रख दिया। फिर भी प्रिया ने हार नहीं मानी सरकारी स्कूल में स्कॉलरशिप के बल पर अपनी पढ़ाई मैं आगे बढ़ती रही। दिन में घर का काम, रात में पढ़ाई कर जैसे तैसे डॉक्टरी के लिए सरकारी कॉलेज में दाखिला प्राप्त कर गई। सब कुछ छोड़कर निकल गई अनजाने शहर दिल्ली कि शायद अब तो गुजरे वक्त की परछाई उसे पर न पड़ेगी। अब मनहूसियत उसका पीछा नहीं करेगी। पर आने वाले वक्त के पन्नों पर क्या-क्या लिखा है यह हमारी सोच से परे है।
प्रिया, आज बहुत खुश थी उसे इंटर्नशिप के लिए मनचाहा हॉस्पिटल मिल गया था। एक बेहतरीन डॉक्टर बनने के लिए अच्छे गुरुओं की जरूरत तो होती ही है। लेकिन उसकी यह खुशी बांटने के लिए कोई नहीं था जीवन के संघर्षों को पार करना ही होता है। यही सोच चल पड़ी अपनी राह बनाने। उसमें बस काम सीखने की ललक थी। मगर तभी उसकी मुलाकात एक सीनियर वैभव से हुई। शांत स्वभाव का लड़का, पर्सनालिटी ऐसी की कोई एक बार मिले तो भूल नहीं सकता था। सब कुछ सही चल रहा था। तभी एक बार प्रिया के गलत दवा देने के कारण एक मरीज की जान पर बन आई। मरीज के घरवालों ने अस्पताल में बहुत हंगामा किया। उसकी नौकरी जाने ही वाली थी की वैभव ने सामने से आकर सारी जिम्मेदारी अपने ऊपर ले ली। उसके प्रयासों से मरीज ठीक हो गया। उस दिन से प्रिया वैभव की आभारी बन गई।
आज से पहले उसके पक्ष में कोई खड़ा नहीं हुआ, कभी उसने उसके कानों ने सुना नहीं था की कोई उसके प्रति भी भावना रखता है। हमेशा उपेक्षा से भरी रहती मगर आज पहली बार किसी ने उसके लिए बोला तो उसे एहसास हुआ की कुछ उसमें भी अच्छाई है। उसी दिन से वैभव से उसकी बातचीत शुरू हो गई शायद मन ही मन वो उसे पसंद करने लगी थी। मगर बोलने का तो सवाल ही नहीं होता। जिसने कभी अपने गलत के लिए नहीं लड़ा वह अपनी भावनाएं कैसे व्यक्त करती?
मगर न जाने कैसे दोनों के बीच नजदीकियां बढ़ने लगी। कई बार नाइट शिफ्ट ड्यूटी पर काम न होने पर दोनों काफी देर तक बातचीत किया करते। मेलजोल बढ़ने पर वीकेंड्स में प्रिया वैभव के घर जाने लगी। बिना बात के धुआं तो उठाता नहीं दोनों की नजदीकियां सभी को दिखाई देने लगी। अस्पताल में बातें बनने लगी। अगर कोई पूछता तो प्रिया झटके से कह देती “वे मेरे सीनियर है हमारा सिर्फ इतना ही रिश्ता है।”
सब कुछ ठीक ही चल रहा था। कि एक दिन अचानक उसके पिता का फोन आया। प्रिया ने कांपते हाथों से फोन उठाया उधर से आवाज आई “बेटी घर आ जाओ” मनहूस लड़की के अलावा उसके पिता ने उसे कभी नाम से संबोधित नहीं किया था। मगर आज अचानक क्या हो गया? डरते हुए बोली “क्या काम है पापा?” यही आ जाओ बैठकर बात करते हैं। बहुत सोच विचार करने के बाद कानपुर पहुंची। घर की दहलीज पर कदम रखते ही पिता के चीखने चिल्लाने की आवाज उसके कानों में गूंजने लगी। उसे ऐसा लगने लगा कि अभी वहां से भाग जाए। मगर तभी “प्रिया, तुम आ गई आओ अंदर आओ”। अब वहां कुछ वैसा नहीं था जैसा वह छोड़कर गई थी। घर खंडहर में बदल गया था। पापा दीन हीन हालात मे व्हीलचेयर पर पड़े थे। शायद किसी ने सही कहा है “कर्मों का फल तो यही मिलेगा” आज नहीं तो कल मिलेगा पर मिलेगा जरूर। उसे पिता पर बहुत दया आ रही थी। तभी सौतेली मां गुस्से से बोली “अब यहां बिठाकर चाय नाश्ता नहीं करवाऊंगी” प्रॉपर्टी के पेपर पर दस्तखत लो और चलाता करो इस मनहूस को। पिता चुप थे। प्रिया समझ गई सौतेले भाई बहनों के लिए उसे यह त्याग तो करना ही होगा सो चुपचाप दस्तखत कर वापस लौट गई।
हॉस्टल आकर बहुत रोई तभी उसे वैभव कॉल आया “प्रिया तुम दो दिन से कहां थी?”
तबीयत ठीक नहीं थी इसीलिए हॉस्पिटल नहीं आई। झूठ बोल देती है। अरे तुम्हारी तबीयत अभी हरी कर देता हूं।पांच दिन के लिए मनाली जा रहा हूं तुम चलोगी मेरे साथ?
मैं कैसे?
अब इतना भी नाटक न करो फटाफट पैकिंग कर मुझे एयरपोर्ट पर मिलो तुम्हारा टिकट तैयार हैं। कुछ बोलती उससे पहले ही फोन कट गया।
वो तुरंत तैयार होकर एयरपोर्ट पहुंची वहां पर वैभव उसका इंतजार कर रहा था।दोनों मनाली पहुंच घूमते फिरते हैं जैसे कोई नया शादीशुदा जोड़ा हो। प्रिया भी उसके साथ सारी दुख तकलीफ भूल जाती है। दोनों मनाली से लौटकर वापस अस्पताल के कामों में व्यस्त हो जाते हैं। एक दिन शिफ्ट खत्म कर प्रिया हॉस्टल लौट रही थी। अचानक वैभव के केबिन से हंसने की आवाज आई।
कोई लड़की नहीं नहीं मैं कुछ ज्यादा ही सोच रही हूं पेशेंट होगी और बिना इजाजत लिए कमरे में प्रवेश कर जाती है। यह कौन है? प्रिया सोच ही रही थी कि…
वैभव ये लड़की कौन है?
ये नई इंटर्न है और तुम बताओ कैसी हो, कैसा रहा तुम्हारा टूर?
“बहुत बढ़िया तुम होते तो और मजा आता” बोल शिवानी ने उसे गले से लगा लिया।
प्रिया कुछ समझ पाती इससे पहले ही दोनों बाहर चले गए
अगले दिन, वैभव वो कौन थी? और तुमने मुझे अपनी गर्लफ्रेंड बोलकर उसे क्यों नहीं मिलवाया? आखिर हम “रिलेशनशिप” में है।
गर्लफ्रेंड? देखो हम दोनों के बीच सब कैजुअल था “जस्ट फॉर फन” और कुछ नही। और ये वैभव वैभव क्या लगा रखा है? सर बोलो “शिवानी मेरी मंगेतर है” और हमारे बीच जो कुछ हुआ वो बस “सिचुएशनशिप” थी। आज प्रिया एक बार फिर वक्त के हाथों “खिलौना” बनी ठगी सी खड़ी रह गई।
