Parental Emotional Trauma and Child Behavior
Parental Emotional Trauma and Child Behavior Credit: Istock

Summary: माता-पिता का अनसुलझा दर्द और बच्चों का व्यवहार

माता-पिता के पुराने भावनात्मक घाव अनजाने में बच्चों के व्यवहार, आत्मविश्वास और रिश्तों को प्रभावित करते हैं, जिससे उनका भावनात्मक विकास बाधित होता है।

Parental Emotional Trauma: सभी माता-पिता चाहते हैं, वह अपने बच्चों को अच्छी परवरिश दें। इस चाहने में पेरेंट्स अनजाने में ही अपने बच्चे तक अपने डर, असुरक्षा को भी पहुंचते हैं। माता-पिता के पुराने या कहे उनके बचपन के भावनात्मक घाव उनके परवरिश पर असर डालते हैं। जब माता-पिता अपने पुराने घाव को स्वीकार कर उसे भरने की बजाय उसे अपने परवरिश में शामिल कर लेते हैं तो इसका सीधा असर बच्चों के मानसिक और भावनात्मक विकास पर पड़ता है।

किसी भी व्यक्ति के जीवन के वह अनुभव जो उनके मन पर बुरा प्रभाव डालते हैं। जिससे उत्पन्न डर, असुरक्षा या व्यवहार आज भी उनके अंदर है। भावनात्मक घाव कहे जा सकते हैं। पुराने भावनात्मक घाव के कुछ उदाहरण हैं:

व्यक्ति का अपने बचपन में परिवार या माता-पिता द्वारा बार-बार डांटना, तुलना करना या अपमानित करना।

माता-पिता का बच्चों के लिए भावनात्मक रूप से अनुपलब्ध रहना। उसकी भावनाओं को अनदेखा करना।

Parental Emotional Trauma and Child Behavior
Parental Emotional Trauma and Child Behavior

अपने दोस्तों से बिलिंग का शिकार होना। अपने रंग, रूप के कारण परिवार समाज या दोस्तों में अवहेलना झेलना।

व्यक्ति के बचपन में मिले यह घाव समय के साथ दब तो जाते हैं, लेकिन पेरेंटिंग के दौरान अनजाने ही वह बाहर निकलते हैं।

अपने साथ हुए व्यवहार को दोहराना: अक्सर देखा जाता है, जानबूझकर या अनजाने में माता-पिता अपने बच्चों की परवरिश के समय इस तरह का व्यवहार अपनाते हैं जैसा उनके पैरेंट्स ने उनके साथ किया है। उदाहरण बच्चों को अनुशासित करने के लिए डांटना, डरना या पिटना। बच्चों की भावनाओं को नजर अंदाज करना या उन्हें प्यार देने के लिए उनकी उपलब्धियां को जरूरी समझना।

बच्चों को वही संस्कार देना जो उन्हें मिले हैं: माता-पिता अपने बच्चों को कहते हैं बड़ों से सवाल पूछना गलत है, बड़ों से बहस मत करो जो बड़े कहें उन्हें पूरा करो, क्या छोटी-छोटी बात पर रोते हो, तुम कुछ नहीं कर सकते, तुम्हारा क्या होगा और भी बहुत से वाक्य हैं जो पेरेंट्स अपने बचपन में अपने माता-पिता से सुनते हैं और खुद पैरंट्स बनने के बाद उसे अपने बच्चे के साथ दोहराते हैं।

जब बच्चे अपने पेरेंट्स के व्यवहार से आहत होते हैं या सुरक्षित महसूस नहीं करते तो बच्चा गुस्से या विद्रोह के जरिए अपनी भावनाओं को व्यक्त करता है।

अगर बच्चे को बार-बार अच्छा बच्चा बनने को कहा जा रहा है तो वह अपने भावनाओं को दबाकर खुद को अच्छा बच्चा साबित करता है। लेकिन यही दबी हुई भावना एक छुपी हुई भावनात्मक घाव का रूप लेती है।

माता-पिता द्वारा लगातार बच्चों की आलोचना से बच्चा खुद को कमजोर और अकेला अनुभव करता है। वह खुद को दूसरों से कमतर समझता है। उसका व्यक्तित्व एक डरपोक बच्चे का बनता है।

पहला कदम, पेरेंट्स अपने भावनात्मक घाव को स्वीकार करें। पेरेंट्स समझे, उनके समय में जो चीज जैसी थी अब भी वह वैसी नहीं है। अपने डर, असुरक्षा को स्वीकार करें। अपनी अधूरी भावना को बच्चों पर ना थोपे। अपनी गलती को स्वीकारने तथा माफी मांगने की हिम्मत दिखाएं। परेशानी अधिक है तो काउंसलर की मदद ले।

पेरेंट्स आप अपने भावनाओं के प्रति जागरूक होकर अपने व्यवहार को बदल सकते हैं और अपने बच्चों को एक अच्छा भविष्य दे सकते हैं।

निशा निक ने एमए हिंदी किया है और वह हिंदी क्रिएटिव राइटिंग व कंटेंट राइटिंग में सक्रिय हैं। वह कहानियों, कविताओं और लेखों के माध्यम से विचारों और भावनाओं को अभिव्यक्त करती हैं। साथ ही,पेरेंटिंग, प्रेगनेंसी और महिलाओं से जुड़े मुद्दों...