Hindi Love Story: वैष्णवी बहुत ही शांत और खुश दिखने की कोशिश कर रही है पर उसका मन बहुत अशांत चल रहा है। उसके मन की बातें न तो रोज फोन पर बातें करने वाले उसके मम्मी पापा समझ सकते हैं और न छह महीनों से सदा साथ रहने वाला उसका पति साकेत ही समझ सकता है।
अभी छह महीने पहले ही तो उसकी शादी साकेत से हुई है । वैष्णवी ने तो सपना देखा था कि उसकी शादी उसके कालेज के समय से बने दोस्त नीरज से होगी। उसे नहीं लगा था कि उसके पढ़े लिखे जागरूक कहे जाने वाले मम्मी पापा को कोई एतराज़ होगा। लेकिन वह नहीं भूलती जब वह छुट्टियों में घर आई थी और पहली बार उसने नीरज के बारे मे बताया। फिर तो घर में भूचाल आ गया, पापा ने तो बस हाथ नहीं उठाया परंतु बहुत डराया धमकाया ।
उस समय तो वह वापस नौकरी पर आ गई। यहां आकर दो वर्षों से साथ रह रहे नीरज को उसने बताया कि उसके यहां तो रजामंदी नहीं मिलेगी। बिना उनकी सहमति के शादी करना होगा, लेकिन नीरज इस पक्ष में नहीं था।
एक बार वैष्णवी ने अपने घर में फिर इस बात को उठाया, पर उसकी मां धमकी देने लगीं,
“अगर वह अपने मन की करती है तो उनका मरा मुंह भी वह नहीं देख पाएगी, वे अपनी जान दे देंगी।”
अब वह सोच ही रही थी कि क्या करे तब तक नीरज की कंपनी ने उसे कनाडा का आफर दिया। नीरज बहुत ही आसानी से उससे काफी दूर कनाडा के लिए निकल गया।
इतनी आसानी से वह उसे छोड़कर चला जाएगा, वैष्णवी ने नहीं सोचा था। नौकरी में आने पर दो वर्षों से वे साथ साथ रह रहे थे। पति-पत्नी नहीं थे, पर वह तो भावनात्मक रूप से भी जुड़ गई थी। नीरज के अचानक चले जाने से काफी समय लगा उसे अपने को संभालने में।
वैष्णवी को लाचारी में अपने मम्मी पापा के अनुसार चलना पड़ा। उन लोगों ने साकेत के यहां उसकी शादी की बात चलाई। दोनों परिवारों की ओर से दोनों को मिलने की इजाज़त मिली। मिलने जुलने के बाद उनकी सहमति मांगी गई। साकेत अपने परिवार का इकलौता बेटा है और वैष्णवी की तरह एक अच्छी आई टी कंपनी में है। आजकल शादी करने वाले लड़के लड़की अपनी पिछली जिंदगी के बारे में बताएं या नहीं ,यह तो उनका चॉइस होता है। वैष्णवी ने अपने राज को अपने तक सीमित रखा। दोनों की रजामंदी के बाद शानदार विवाह का आयोजन हुआ और दोनों विवाह के बंधन में बंध गए।
शादी के बाद का कुछ दिन तो पलक झपकते बीत गया ।शादी के बाद दोनों देश के बाहर एक द्वीप पर हनीमून मनाने गये।वहां से लौटकर एक सप्ताह वैष्णवी अपने ससुराल में रही और उसके बाद दोनों नौकरी पर आ गए, दोनों की नौकरी के साथ गृहस्थी भी शुरू हो गई।
वैष्णवी ऊपर से तो बिल्कुल नॉर्मल रहने की कोशिश करती, लेकिन अंतरंग क्षणों में भी वह पूरी तरह से साकेत की नहीं हो पाती। उसकी आंखों में उसके उसी दोस्त की तस्वीर आ जाती ,जिसके साथ उसने छह वर्ष साथ बिताये।
नीरज वैष्णवी की जिंदगी से सैकड़ों किलोमीटर दूर है, पर उसे अंदर से निकालना आसान नहीं हो रहा । आजकल के युवक युवतियां घर से दूर जाते हैं तो अपने संस्कार भी भूलने लगते हैं,लिव-इन रिलेशन बना लेते हैं। कई बार तो इसका अंत दुखदायी भी देखने को मिलता है। खैर, वैष्णवी के साथ ऐसा कुछ नहीं हुआ। वह तो विवाह के बंधन में बंध चुकी है, जिसकी नींव विश्वास और ईमानदारी पर टिकी होती है। इन बातों का उसकी जिंदगी से कोई वास्ता नहीं ,पर वह जानती है कि अब उसे कुशल बहू और पत्नी बनना ही होगा। लेकिन इसे लेकर मन और मस्तिष्क में चल रहे द्वंद्व से वह इंकार नहीं कर सकती।
साथ रहते रहते वैष्णवी को पता लगा कि साकेत तो बिल्कुल एक राजकुमार ही है। सुबह उठो तो उसके हाथ में चाय पकड़ाओ। उसे किचन का कोई काम नहीं आता और न मदद करने की कोई नीयत होती।
फिर वैष्णवी नीरज की यादों में खो जाती, जब भी वे साथ होते तो चाय, काफी वही बनाकर पिलाता था। जब दोस्तों की पार्टी उसके फ्लैट पर होती तो नीरज कोई न कोई एक अच्छा सा डिश जरूर बना देता, कितना जिंदादिल इंसान था वह!
एक साकेत है, उसे घर गृहस्थी के कोई काम में रुचि नहीं। उसे तौलिया, कपड़े तक निकाल कर देना पड़ता। एक दो बार वैष्णवी ने साकेत से कहा भी,
“यार तुम किचन में तो कुछ मदद नहीं कर सकते ,कम से कम अपने काम तो खुद करो.
“हां हां कर लूंगा। “
लेकिन शादी के छह महीने होने को आए ,उसमें कोई बदलाव नहीं आया। कभी ठंडे दिमाग से साकेत के बारे में सोचती तो यही लगता है कि इकलौता बेटा है, मां का दुलारा! पढ़ाई के लिए भी उसे घर से बहुत दूर जाना नहीं पड़ा। उसके शहर से मुश्किल से बीस किलोमीटर पर उसका इंजीनियरिंग कॉलेज था, प्रायः वीकेंड पर तो वह घर चला जाता।
कुछ दिनों से घर ,ऑफिस और साकेत की फरमाइशें पूरी करते-करते वैष्णवी सोचने लगी है कि साकेत के साथ क्या वह निभा पाएगी? उसे अपनी शादी करने पर अफसोस होता है। दूसरी तरफ उसने नीरज को निराश किया, उससे भी वह अपराध बोध से ग्रस्त हो जाती है । इसी तरह उहापोह से वह गुजर रही थी कि उसकी एक कालेज फ्रेंड ने पांच सहेलियों के साथ गोवा में मिलने का प्लान बनाया। एक महीने बाद उसकी शादी होने वाली है, वह एक गेट टूगेदर करना चाहती है। आजकल की नौकरी पेशा लड़कियां लड़कों से कम हैं क्या? वैष्णवी ने साकेत से जब इस प्लान के बारे बताया तो वह भी कहने लगा
“बढ़िया तो है,सबसे मिलना और मस्ती भी हो जाएगी।”
लेकिन जब यही बात उसने सासू मां को बताई तो वह नाराज होने लगी। साकेत ने ही मम्मी को समझाया कि शादी ऐसा बंधन नहीं कि हम अपनी अपनी जिंदगी नहीं जी सकते।
खैर, निर्धारित दिन वैष्णवी गोवा पहुंच गई । गोवा तो वे सब पहले भी घूम चुकी हैं। दोस्तों के साथ सी बीच पर, सड़कों -बाजारों पर मस्ती से टहलना हुआ। होटल के कमरे में गप्पबाजी हुई, खाने पीने के साथ बैचलरेट पार्टी की मस्ती हुई। दो दिनों का समय तो पता ही नहीं चला।
वहीं वैष्णवी को ये भी पता चला कि नीरज ने कनाडा में अपनी एक कलिग से शादी कर ली है और वह ग्रीनकार्ड के इंतजार में है। यह जानकर वैष्णवी को खुशी नहीं निराशा हुई। जिस नीरज को अपने दिल के कोने में बसा, वह साकेत जैसे सीधे सादे इंसान में केवल कमियां ही निकालती रहती है, कभी मन से उसका साथ नहीं देती। यहां तक कि साकेत से दूर जाने की प्लानिंग तक बना रही है। जिस नीरज के दूर होने पर भी उसे अपने अंदर महसूस करती रहती है, उसी शख्स ने उससे बातें छिपाई।
वापसी के लिए फ्लाइट में बैठ लैपटॉप ऑन करने के बावजूद उसके मन में विचार हिलोरें ले रहे हैं। उसने अपने मन को समझाया कि वह कौन सी दूध की धुली हुई है । साकेत को उसने भी तो अपनी पिछली जिंदगी, अपनी दोस्ती के बारे में नहीं बताया है और न जिंदगी भर बता सकती है। अब तो पिछले जीवन के अंधकार को भूलना ही होगा । जब उसने शादी कर ली है तो उसे साकेत की केवल कमियां नहीं उसकी अच्छी बातों को ध्यान में रखना होगा । अब छोटी बातों को बड़ा बनाना सही नहीं है ।
हैदराबाद एयरपोर्ट पर लैंड करते ही साकेत के फोन काल से उसमें एक उर्जा आ गई, बाहर निकल उस पर नजर पड़ते ही मन खुशी से झूम उठा। मन में उठ रहे गुबार पर विराम लगा। साकेत के गले लगते ही उसने मन ही मन दुश्चिंताओं से दूर रहने की कसम खाई।
उसके मना करने पर भी साकेत लेने आया, वह वैष्णवी को खुश देखना चाहता है, उसकी आंखों में उसके लिए प्यार नज़र आता है। ऐसे सरल इंसान को वह और कष्ट नहीं दे सकती। गोवा जाने से पहले उसने अपनी कंपनी में देश के बाहर के प्रोजेक्ट के लिए लिखकर रखा था, बस मेल करना था। कार से घर लौटते समय उसने अपने लैपटाप से उस लेटर को डिलीट कर दिया । साकेत के पूछने पर बताया कि यह आफिस का एक अर्जेंट काम था। एक बड़ा प्रोजेक्ट उसने पूरा किया है, अब उसे अधिक काम की चिन्ता नहीं रहेगी।
अगली छुट्टी में अब वे और साकेत कहीं बाहर जाने का प्लान कर सकते हैं, जहां बस मस्ती ही मस्ती होगी।
घर पहुंच वैष्णवी सीधे बाथरूम में घुस गई, हाथ मुंह धोकर कपड़े चेंज कर चाय बनाने को किचेन में जाती कि उसकी नज़र टेबल पर पड़ी, जहां दो कप चाय रखी थी और साकेत सोफ़ा पर बैठा मुस्कुरा रहा था। वैष्णवी साकेत से चिपक कर बैठ गई, उसे थैंक्स देते हुए चाय का कप उठाया. उसे लगा यह चाय का नहीं, प्यार का प्याला है।
