Hindi Story: घर के आंगन में ही बीचों-बीच मंडप बानाया गया था, जिस पर चमचमाते तोरन लगाए गए थे।मंडप के चारों कोनों पर मिट्टी के सात कलश एक के ऊपर एक रखे गए थे,जो अलग अलग रंगों, छोटी- छोटी मोतियों और चमकीले शीशों के टुकड़ों से सजे हुए थे। घर के बाहरी हिस्से में जगमग करते रंग-बिरंगे लाइट की लड़ियां लगाई गई थी। यूं समझ लीजिए पूरे घर को दुल्हन की तरह सज़ा दिया गया था।
श्रीमती तिवारी (शोभा) चाहती थी प्रिया की शादी में हल्दी, मेंहदी, संगीत से लेकर विदाई तक का हर रस्म घर से ही हो इसलिए उन्होंने केवल रिसेप्शन के लिए ही मांगलिक भवन की बुकिंग करवा रखी थी।
गीत संगीत के साथ ही शादी की रस्में शुरू हो गई। श्रीमती तिवारी भाग-भाग कर सारे काम अपनी निगरानी में करवा रही थीं। वह नहीं चाहती थी प्रिया की शादी में किसी भी प्रकार की कोई कमी रह जाए । इस भीड़-भाड़ और आनंद उल्लास के माहौल में नहीं चाहते हुए भी कभी-कभी शोभा की आंखें छलक जाती, प्रिया भी हल्दी,मेंहदी लगे हाथों से कभी शोभा के लिए दवाईयां तो कभी पानी लेकर आ जाती और कभी शोभा से लिपट कर कहती -” मां… अब बस भी करो सुबह से दौड़ रही हो, थोड़ा आराम कर लो “।
प्रिया चाहती थी शोभा एक बार उससे लिपट कर रोए लेकिन शोभा अपनी आंखों में आ रहे आंसुओं को छुपा वहां से चली जाती। प्रिया स्वयं भी शोभा के गले लग, दिल खोलकर रोना चाहती थी, लेकिन वह भी ऐसा ना करने को मजबूर थी,क्योंकि उसे अपने दु:ख से ज्यादा मां-बाबा की खुशियों की फ़िक्र थी ।वह नहीं चाहती थी उसकी वजह से मां-बाबा को कोई ठेस पहुंचे या एक बार फिर उनकी आंखों में आंसू आए। यही वजह थी कि प्रिया शादी के लिए तैयार हो गई ।
आज रात जब प्रिया बाबा को दवाई देने उनके कमरे के पास पहुंची तो वह दरवाज़े पर ही ठिठक गई। मां,बाबा से कह रही थी-
“प्रिया की विदाई के नाम से ही कलेजा मुंह को आता है।प्रिया के बगैर पूरा घर सूना हो जाएगा। उसके बगैर मैं कैसे रह पाऊंगी ? यह घर काटने को दौड़ेगा “।
तभी बाबा, मां को समझाते हुए कहने लगे- “तुम यह कैसी बातें कर रही हो शोभा,बेटी को तो विदा करना ही पड़ता है और फिर कभी तुमने सोचा है, हमारे बाद प्रिया का क्या होगा ? जीवन की राह में एक मोड़ ऐसा भी आता है जब हर इंसान को एक हमराही की जरूरत पड़ती है।यह प्रिया के भविष्य का सवाल है। राजेश बहुत ही अच्छा लड़का है।वह हमारी प्रिया को बहुत खुश रखेगा। हमारी बेटी रानी बन कर रहेगी, रानी बन कर……” ऐसा कहते हुए बाबा का कंठ भर आया।
मां बाबा के रूआंसे स्वर जान कर बोली -” मैं सब समझती हूं लेकिन क्या आप प्रिया के बगैर रह पाएंगे? मुझसे ज्यादा स्नेह करते हैं आप प्रिया से, उसमें तो आप की जान बसती है “।
बाबा, मां से कुछ कहे बगैर चुपचाप दीवार पर लगी दीपक की तस्वीर की ओर निहारने लगे, फिर एक लंबी सी सांस लेते हुए बोले-” शोभा ….. अपने मन को कड़ा कर लो यदि हम टूट गए तो प्रिया बिखर जाएगी और अगर प्रिया बिखर गई तो हम दीपक को क्या जवाब देंगे…”?
यह सब सुन प्रिया बाबा को दवाई दिए बगैर ही अपने कमरे में लौट आई। अपने हाथों में दीपक और अपनी शादी की तस्वीर लिए दीपक के चेहरे पर हाथ फेरती अतीत की गलियारों में चलहकदमी करने लगी।प्रिया की आंखों के सामने दीपक और उसकी शादी की सुनहरी यादें पंख पसारे चलचित्र की भांति चलने लगे।प्रिया अब तक नहीं भूली वह लम्हा जब वह पहली बार ब्याह कर इस घर में आई थी। दीपक उसमें इतना खोया रहता कि कई बार वह स्वयं से शर्मा जाती। मां- बाबा से दुलार इतना मिलने लगा कि उसे मायके की भी सुध ना रही।
मां,बाबा और दीपक, तीनों प्रिया का ऐसे ख्याल रखते मानों वो कोई छोटी बच्ची हो,दीपक चाहता था प्रिया अपनी बी.ई की पढ़ाई पूरी कर ले, लेकिन प्रिया अब उस ओर बिल्कुल भी ध्यान नहीं दे रही थी या यूं समझ लीजिए वह ध्यान देना ही नहीं चाहती थी।वह सब छोड़ घर-गृहस्थी में रम जाना चाहती थी। दीपक को पाने के पश्चात उसके मन में कुछ और शेष पाने की अभिलाषा ही नहीं रही।
सब कुछ बहुत अच्छा चल रहा था लेकिन नियति को तो शायद कुछ और ही मंजूर था। अभी प्रिया की शादी के कुछ ही महीने बीते थे,उसके हाथों में रची मेंहदी के रंग भी नहीं उतरे थे कि एक रोड एक्सीडेंट में दीपक की मौत हो गई और पलक झपकते ही खुशियों के सारे पल फना हो गए।
दीपक के जाते ही लोगों के देखने का नजरिया ही बदल गया।लोग तरह-तरह की बातें बनाने लगे,कुछ लोग कहने लगे इसके पैर पड़ते ही घर का चिराग बुझ गया। जिस प्रिया को कल तक घर की लक्ष्मी कहा जा रहा था आज उसे अशुभ की संज्ञा दी जाने लगी।
समाज में कई प्रकार की कानाफूसी होने लगी जो उड़ती हुई मां बाबा के कानों पर भी पड़ने लगी। इन बातों से मां विचलित हो उठती तो बाबा उन्हें शांत कराते लेकिन कभी प्रिया को इस बात का आभास नहीं होने देते।
दीपक की मृत्यु के पश्चात प्रिया के जीवन में सब कुछ बदल गया था, नहीं बदला था तो केवल प्रिया के प्रति मां बाबा का प्यार, वे आज भी उसे उतना ही प्यार करते थे,बल्कि पहले से ज्यादा करने लगे थे मां तो प्रिया को पल भर के लिए भी अकेला नहीं छोड़ती।
इसी सब के बीच एक रोज़ प्रिया के माता-पिता उसे लेने पहुंचे तो बाबा अपने हाथ जोड़कर उनसे कहने लगे – “प्रिया आपकी अपनी बेटी है आप जब चाहें उसे ले जा सकते हैं।दीपक हमारे घर का चिराग था और अब प्रिया ही इस अंधियारे घर की ज्योति है, लेकिन फिर भी यदि आप प्रिया को अपने संग ले जाना चाहें तो हम रोकेंगे नहीं”। यह सब सुनने के बाद प्रिया के माता-पिता उसे साथ लिए बगैर ही लौट गए।
प्रिया ने मुस्कुराना ही छोड़ दिया, उसके पायल की छम-छम और चूड़ियों की खन-खन उसकी सिसकियों में कहीं खो गई, तभी एक दिन बाबा प्रिया के सिर पर हाथ फेरते हुए बोलें-” प्रिया तुम अपनी अधूरी पढ़ाई पूरी कर लो। व्यस्त रहोगी तो तुम्हारा मन भी लगा रहेगा और फिर दीपक की भी यही इच्छा थी”। प्रिया भी मान गई और उसने अपनी बी ई इन टेक्स्टाइल की पढ़ाई फिर से शुरू कर दी। धीरे धीरे प्रिया की जिंदगी फिर मुस्कुराने लगी ।
पढ़ाई पूरी होते ही बाबा ने अपने टैक्सटाइल इंड्स्ट्री का कार्यभार प्रिया को सौंप दिया ताकि वह व्यस्त रहे। प्रिया ने भी इंडस्ट्री के सभी काम ऐसे संभाल लिये जैसे दीपक ने संभाल रखा था। सहसा एक शाम जब प्रिया फैक्ट्री से घर लौटी तो मां और बाबा उसे अपने समीप बिठाते हुए बोले – “प्रिया अब तुम्हारी विदाई का वक्त आ गया है”।
अचानक प्रिया के हाथों से तस्वीर गिर गई और वह वर्तमान में लौट आई। तस्वीर को एक ओर रखती हुई सोचने लगी ये कैसा विधि का विधान है, जिस घर में उसकी डोली उतरी थी, कल उसी घर से उस की डोली उठेगी।
