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स्टोरी टेलिंग से मुश्किल विषय भी लगने लगेगा आसान: Story Telling For Students

Story Telling For Students: कहानी सुनना तो हर किसी को अच्छा लगता है। बचपन में दादी-नानी या माँ से सुनी कहानियाँ आज भी हमें याद आती हैं। इन्हीं कहानियों को बच्चों को पढ़ाने में इस्तेमाल किया जा सकता है। ये कहानियाँ किसी भी विषय की समझ को आसान बना सकती हैं। ख़ासतौर पर ऐसे बच्चे […]

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गृहलक्ष्मी की कहानियां – चल री सजनी

गृहलक्ष्मी की कहानियां – गूंजती ढोलक की थाप, हंसती-गाती-ठुमकती महिलाएं, शहनाई की स्वर-लहरियां आकाश को भेदती आतिशबाजी और सबसे निःस्पृह बैठी सुधा। एक क्षण के लिए भी किंचित हंसी उसके चेहरे पर नहीं आती है। फेरों का कार्यक्रम निपट गया। दूल्हा और बाराती भी जनवासे में चले गये। मां ने सुधा का पूजा वाले कमरे […]

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गृहलक्ष्मी की कहानियां : एहसास

बीस साल की राधिका शहर में आने के बाद और आकर्षक लगने लगी थी। कुछ ही दिनों में उसका सौंदर्य निखर आया था। अत: रमेश का उसकी तरफ खिंचाव बढ़ रहा था।

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संकल्प – गृहलक्ष्मी की कहानियां

मनवर को पुलिस पकड़ कर ले गई तो गांव में हड़कम्प मच गया। हर सांय कच्ची शराब को हलक में उतारने वालों के लिए यह बुरी खबर थी। देखते ही देखते यह खबर पूरे इलाके में जंगल की आग की तरह फैल गई। करछूना गांव की महिला पंचायत की यह हाल के दिनों में सबसे […]

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प्रतीक्षित लम्हा- भाग 1

मेरी बातों को सुन आलोक ने मेरी आंखों में झांका, धीरे से मुस्कुराया… कुछ देर यूं ही मुस्कुराता रहा। फिर बोल उठा- ‘ऐसी बात तो नहीं भावी। तुम तो… मेरी मूकता में… शब्द हो…! और सच पूछो तो मैं तुममें ही जीवन का सार ढूंढा करता हूं, जहां मेरे मन में भावनाओं के न जाने […]

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एकांतवास—गृहलक्ष्मी की कहानियां

गृहलक्ष्मी की कहानियां-अमन को यह एकांतवास अंदर ही अंदर खाए जा रहा था। उसे यह समझते देर नहीं लगी कि यह उसके किए का ही फल है। अब वह जान चुका था कि अकेले रहने का दर्द क्या होता है।अमन ने पूरे अस्पताल को एक बार फिर गौर से देखा। जगह-जगह फूलों की महक, लोगों […]

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आवरण – गृहलक्ष्मी की कहानियां

गृहलक्ष्मी की कहानियां – हफ्ते भर की मेहनत के बाद पूरा घर सेट हुआ था, बिजेन्द्र के आॅफिस जाते ही मैंने सोचा आज अदरक वाली गरमागरम चाय पीते हुए अपनी मनपसंद पत्रिकाएं पढूंगी, जो पिछले कई दिनों से नहीं पढ़ पा रही थी। तभी डोरबेल की आवाज सुनकर दरवाजा खोला तो सामने 4-5 महिलाएं खड़ी […]

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गृहलक्ष्मी की कहानियां : सिमटते दायरे

क्या सोच रखा है मैंने गुड़िया के बारे में कि उसे उन्मुकतता से जीना सिखाऊंगी, उसे बांधूगी नहीं, कभी। लड़कों की तरह तो नहीं पर लड़कों से अलग ही बनाऊंगी, क्योंकि मैंने इस समाज को देखा था, सोचा था और समझा भी था, जहां पर कभी लड़के-लडकियां समान नहीं हो सकते थे…

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गृहलक्ष्मी की कहानियां : मेरी भी शादी करा दो

गृहलक्ष्मी की कहानियां : उसकी तैयारी देख बड़ी भाभी अक्सर चुटकी लेती। ‘‘ऐसा न हो कुमुद की इसी मंडप में कोई तुम्हें भी ब्याह कर ले जाए।” शादी के दिन तो दुल्हन से ज्यादा कुमुद ही मंच से लेकर मंडप तक छायी हुई थी। रंग-रूप ही नहीं अपने आकर्षक व्यक्तित्व और आधुनिक ढंग के मैचिंग […]

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बर्फ का गोला— गृहलक्ष्मी की कहानियां

गृहलक्ष्मी की कहानियां- मेट्रो सिटी की चकाचौंध ने न केवल बच्चों वरन नीलम को भी अभिभतू कर दिया था. आभास ने उसे और बच्चों को पहले ही आगाह कर दिया था कि यहॉं उन्हें अपने पुराने शहर की तरह हर किसी से रिश्ता नहीं जोड़ना है। आगे बढ़कर बात करने से लोग गंवार और फूहड़ […]

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