गृहलक्ष्मी की कहानियां
Grehlakshmi ki Kahaniyan-Barf ka Gola

गृहलक्ष्मी की कहानियां- मेट्रो सिटी की चकाचौंध ने न केवल बच्चों वरन नीलम को भी अभिभतू कर दिया था. आभास ने उसे और बच्चों को पहले ही आगाह कर दिया था कि यहॉं उन्हें अपने पुराने शहर की तरह हर किसी से रिश्ता नहीं जोड़ना है। आगे बढ़कर बात करने से लोग गंवार और फूहड़ समझेगें. डरी सहमी नीलम और बच्चों ने अपने काम से काम रखने में ही अपनी भलाई समझी. बंटू, पिंकू को पास के कॉन्वंट स्कूल में दाखिला करा दिया गया। नीलम अपार्टमेंट के नीचे बने बस स्टॉप पर दोना बच्चों को छोड़ आती। नीलम भले ही सबसे दूरी बनाए रखने में कामयाब रही। पर बंटू, पिंकू अपनी हमउम्र इशिता से दोस्ती किए बिना न रह सके। लौटते अपनी—अपनी मम्मियां के साथ जाते वे देर तक एक दूसरे की ओर देखकर हाथ हिलाते रहते। तो मजबूरन नीलम को भी उनकी ओर देखकर मुस्कुराहट बिखेरनी पड़ती। उसका बहुत मन करता आगे बढ़कर इशिता की मम्मी से बातें करे पर मन मारकर रह जाती। मुश्किल से 3-4 दिन ही यह सिलसिला चला होगा कि एक दिन इशिता की मम्मी ने आगे बढ़कर खुद ही बात करना शुरू कर दिया.
‘मैं श्रेया हूं। आपके पास वाले ब्लॉक में ही रहती हूं। हम लोगों की बॉलकनी तो बिल्कुल आमने सामने हैं. मैंने र्कइ बार आपको कपड़े सुखाते देखा है। आप नए—नए आए लगते हैं। हमारे बच्चे तो एक ही क्लास में हैं देखो न कितने अच्छे दोस्त बन गए है। इशिता तो सारे दिन तेजस ,श्रेयस की ही बातें करती रहती है। ट्विन्स हैं।
‘हॉं.’ इतनी देर बाद नीलम ने मुॅंह खोला था.

‘आप काफी रिज़र्व हैं?’
‘नहीं, ऐसा तो कुछ नहीं है.’ नीलम खूब बोलना चाहकर भी मन को मारे रख रही थी.
‘होती है, शुरू—शुरू में झिझक होती ही है….’ दोनों के बीच बातों का सिलसिला शुरू हुआ तो लिफ्ट तक आकर ही थमा। अब तो दोनों का मिलना रोज का काम बन गया था। सुबह बच्चों को रवाना करने के बाद दोनों देर तक बतियाती रहतीं। बातों का कोई विशेष केन्द्रबिंदू नहीं होता था। बच्चे, पति, बाई, रसोई आदि सभी मुद्दे एक—एक करके जुड़ते रहते। नीलम को तो मानो कोई खजाना ही मिल गया था। उसे अफसोस था कि वह अब तक क्यों अपने खोले में सिमटी रही। वह बॉलकनी में कपड़े सुखाने जाती और श्रेया नजर आ जाती तो कपड़े आधे सूखने तक दोनों बतियाती ही रहतीं।
आभास दोनों की दोस्ती को लेकर एकबारगी तो आशंकित हुआ पर फिर नीलम के चेहरे पर अपूर्व खुशी और ताजगी देखी तो उसने रोकना उचित नहीं समझा। व्यर्थ ही वहम के मारे बेचारी को इतने समय तक डरा—सहमाकर रखा। वह खुद तो ऑफिस में सबसे मिलकर, बतियाकर ताजा हो लेता है और यह बेचारी घर की चारदीवारी में घुटती रहे यह कहां तक जायज है? दो बातें इंसान को अपनों से दूर कर देती हैं एक उसका अहम और दूसरा उसका वहम। हम भारतीय भी अजीब हैं। किसी अनजान से बात करना तो खतरनाक समझते हैं लेकिन किसी अनजान से शादी करना बिल्कुल ठीक। अपनी साचे पर आभास को खुद ही हंसी आ र्गइ और आशंका का कुहासा छंट गया.

बच्चों और उनकी मम्मियां में प्रेम बढ़ा तो पापा लागे कैसे अछूते रह जाते? हालांकि पुरूष अपने स्वभाववश परस्पर मिलकर भी तेल और पानी की तरह अलग अलग बने रहते हैं। जबकि महिलाएं दूध और पानी की तरह पूरी तरह घुलमिल जाती हैं। नीलम और श्रेया पड़ोसिन थीं, फिर सहेलियां बनीं और अब तो सगी बहनें जैसी हो गई थीं। पर कहते हैं न ‘अति सर्व त्र वर्जयेत्’
एक बार बच्चों की आपसी लड़ाई में बंटू, पिंकू को समझाने के साथ—साथ नीलम ने इशिता को भी कुछ कह दिया। नीलम के मन में कोई दुर्भाव नहीं था। जैसे उसने अपने बेटों को समझाया वैसे ही इशिता को भी अपनी बेटी समझकर समझा दिया। लेकिन श्रेया को जब यह बात पता लगी तो उसे अपनी इकलौती लाड़ली बिटिया को टोकना बहुत अखरा। गुस्से में उसने नीलम को फोन पर ही दो चार सुना दी। नीलम अपनी सफाई में कुछ कहती लेकिन श्रेया ने कोई मौका ही नहीं दिया और फोन रख दिया। नीलम जब आक्राश में यह सब अपने पति को बता रही थी तब बाई ने सुन लिया और नमक मिर्च लगाकर जाकर श्रेया को सुना आई।
आगबबलू श्रेया ने उसी वक्त नीलम से सारे संबंध तोड़ लेने का निर्णय ले लिया। उसे अपना निर्णय नीलम को सुनाने की जरूरत नहीं पड़ी। क्योंकि बाई ने ऐसा संदेश तुरंत पहुंचाना अपना फर्ज समझा। संबंधों में आई दरार समय के साथ साथ खाई बनती चली गई। दोनों एक दूसरे को देखकर मुॅंह फेर लेतीं। बच्चे मांओ के सामने चुप रहते लेकिन बस में बैठते ही दोस्त बन जाते और वापिस शाम को बस से उतरने तक यह दोस्ती कायम रहती। बस से उतरते ही अजनबियों की तरह वे अपनी अपनी मांओं की अंगुली पकड़कर घर की राह पकड़ लेते। नीलम बॉलकनी में कपड़े सुखाने जाती और सामने बॉलकनी में श्रेया नजर आ जाती तो वह बाल्टी वहीं छोड़कर उल्टे पैरों अंदर लौट आती मानो कोई अपशकुन हो गया हो। बच्चे सहमे सहमे तो नीलम घुटी घुटी सी रहने लगी
आभास सब देखकर भी लाचार थे। वे जानते थे उनका हस्तक्षपे आग में घी का काम करेगा। नीलम को समझाने या सांत्वना देने का प्रयास करते तो वह और भड़क उठती.
‘गलती मेरी थी उन पर इतना विश्वास करने से पूर्व मुझे उन्हें अच्छी तरह समझ लेना चाहिए था। आजकल तो जमाना ही दिखावे का है। यहॉं वेलकम ड्रिंक के तौर पर तो कृत्रिम लेमन फेवर वाला नींबू पानी परोसा जाता है और फिंगर बाउल में असली नींबू। मैं अनाड़ी ही जिंदगी के रगं मंच को समझ नहीं पाईं यहॉं हर एक को नाटक करना पड़ता है। माचिस की जरूरत ही नहीं पड़ती क्योंकि आदमी ही आदमी से जलता है.’
आभास के पास नीलम के तर्को का कोई जवाब नहीं होता था. शायद समय के साथ ही नीलम के दिल से कड़ुवाहट निकल पाएगी। यह सोचकर वे खुद को शांत कर लेते थे।
आभास को एक सप्ताह के लिए चंडीगढ़ किसी प्रशिक्षण में जाने का आर्डर मिला तो नीलम और बच्चों के अकेले रह जाने के ख्याल ने उन्हें और चिंतित कर दिया। काफी सोच विचार के बाद उन्होंने निर्णय लिया कि वह सबको साथ लेकर जाएगें.
‘चंडीगढ प्रशिक्षण पूरा हो जाने के बाद हम लोग 3-4 दिन आगे मनाली घूमकर आएगं। बर्फ पर तुम लोगों को खूब मजा आएगा.’
बच्चे खुशी से तालियां बजाने लगे तो नीलम भी प्रफुल्लित मन से जाने की तैयारियां करने लगी आभास को अपने निर्णय से तसल्ली महसूस र्हुइ। आखिरकार वह अपने परिवार को सुकून के कुछ क्षण उपलब्ध करवा सका। चंडीगढ में भी वह लगभग हर शाम घूमने निकल जाते। नीलम ने खूब शॉपिंग भी की लेकिन यात्रा का चिर प्रतिक्षित पड़ाव तो अभी बाकी ही था-मनाली की बर्फ.
याक पर बैठ कर चोटी पर पहुंचे तो वहॉं रूई के समान बिखरी बर्फ देखकर सबके चेहरे खिल उठ. सब निर्निमेष अभी अभिराम प्राकृतिक सौन्दर्य का पान ही कर रहे थे कि नीलम की पीठ पर एक बर्फ का गोला आकर लगा। वह चौंककर मुड़ी तो आभास को दूसरा गोला बनाते देखकर चिहुंक उठी. उसके हाथ फटाफट नीचे झुककर बर्फ उठाकर गोले बनाने लगा। बच्चों ने मम्मी पापा को बच्चा बनता देखकर उत्साह की सीमा नहीं रहीं।

चारों में गोले बनाने और एक दूसरे पर फेंकने की होड़ सी मच गई. बंटू, पिंकू से छोटी—छोटी हथेलियां में थोड़ी—थोड़ी सी बर्फ ही उठाई जा रही थी। उनके बनाए छोटे—छोटे गोले फेंकने से पूर्व ही हाथों में पिघल रहे थे। दोनों जल्दी ही थक गए और रूआंसे से बैठ गए।
‘पापा, गोले बन तो फटाफट जाते हैं पर ज्यादा देर टिकते नहीं, फेंकने से पूर्व ही पिघल जाते है.’ ‘बेटा हमारे हाथों की गरमी उन्हें पिघला देती है.’
अब तक नीलम भी बच्चों के पास आ गई थी। ‘घर में भी तो अपने ऐसा ही होता है बच्चों फ्रिज में बर्फ तो फटाफट जम जाती है पर बाहर निकलते ही पिघल जाती है.’
‘हूं तुम्हारी ममा ठीक कह रही है। बर्फ के गोले बनाना तो आसान है पर बनाए रखना बेहद मुश्किल.’
‘और उन्हें बनाए रखने का एक ही उपाय है-शीतलता बनाए रखना.’ नीलम ने बच्चों को समझाने के अंदाज में गर्व से बताया.
‘अच्छा?वाकई? तुम जानती हो?’ आभास ने चेहरे पर आश्चर्य के भाव लाते हुए पूछा तो नीलम कुछ सोचने पर मजबरू हो गई। आभास की भावभंगिमा ने कुछ न कहते हुए भी उसे बहुत कुछ समझा दिया था.
‘वाकई रिश्ते भी तो बर्फ के गोले की तरह ही होते हैं। बनाना कितना आसान, लेकिन बनाए रखना कितना मुश्किल! और उन्हें भी बनाए रखने का एक ही उपाय है-शीतलता बनाए रखना। श्रेया के साथ अपने रिश्ते में यदि उसने अपना मिजाज थोड़ा सा भी शीतल यानि ठंडा रखा होता तो उनके आपसी संबंध इतने कटु न हो पाते। माना गलती श्रेया की थी पर सुलह का प्रयास तो वह भी कर सकती थी। जब सबका हिसाब करने के लिए इश्वर बैठा है तो उसे क्या हक बनता है किसी की गलतियों को बेनकाब करने का? मन में चल रहे युद्ध को विराम देने की बजाय व्यर्थ ही इतने समय तक वह खुद से लड़ती रही। कुएं में उतरने वाली बाल्टी यदि झुकती है तो भरकर ही बाहर आती है। जीवन का भी यही गणित है जो झुकता है वह प्राप्त करता है। अच्छे के साथ तो सभी अच्छे रहते हैं। बड़प्पन तो बुरे के साथ अच्छा रहने में है। पानी से खून साफ कर सकते हैं पर खून से खून नहीं साफ किया जा सकता.’
नीलम जाने कितनी देरे ख्यालों की दुनिया में खोई रहती यदि उसकी पीठ पर ताबड़तोड़ बर्फ के गोलों की बारिश शुरू न हो गई होती। देखा तो पाया बच्चों ने पापा के साथ एकजुट होकर उस पर धावा बाले दिया है। नीलम ने लपककर एक गोले को कैच करके उसे चूम लिया, ‘जिंदगी का इतना सुंदर सबक सिखाने के लिए शुक्रिया’.

ऐसा करते आभास से नजरें मिली तो उसके कपोल रक्तिम हो उठे. आभास की शरारती निगाहें कह रही थीं, ‘इस चुंबन पर तो हमारा हक होना चाहिए था.’

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