Summary: एक घर जो सबका है
मुंबई की हलचल के बीच ‘कृष्णा निवास’ एक ऐसा घर है जहाँ रिश्तों की गर्माहट हर दीवार से झलकती है। यह कहानी बताती है कि सुख-सुविधाओं से बढ़कर असली सुकून अपनेपन और साथ में बसता है
Short Story in Hindi: मुंबई की भीड़भाड़ वाली गली में खड़ा था एक चार मंज़िला पुराना मकान ‘कृष्णा निवास’। चारों ओर ऊँची-ऊँची इमारतें, ट्रैफिक की आवाज़ें और तेज़ रफ्तार ज़िंदगी थी, लेकिन इस मकान के अंदर कुछ अलग ही दुनिया थी एक संयुक्त परिवार की, जहाँ हर मंज़िल पर अलग कहानी बसती थी, मगर सबकी सांसें एक ही छत के नीचे चलती थीं।
सुबह का वक्त नीचे के फ्लोर पर रसोई से आती अदरक वाली चाय की खुशबू पूरे घर में फैल रही थी। अम्मा हर दिन की तरह सबसे पहले उठ जाती थीं। वो तुलसी में जल चढ़ाकर धीरे-धीरे रामनाम जपतीं और फिर रसोई में आकर गैस जलातीं। ऊपर की मंज़िल से बच्चों के भागदौड़ की खड़खड़ाहट सुनाई देती, और साथ ही छोटे टी.वी. पर कार्टून की आवाज़।
यह परिवार किसी एक व्यक्ति का नहीं, बल्कि सबका था। घर के बड़े बेटे रवि ऑफिस जाते हुए नीचे वाली मंज़िल पर अपनी चाची को रोज़ “नमस्ते” कहे बिना नहीं निकलते थे। छोटे बेटे अर्जुन का स्टार्टअप घर के एक हिस्से से चलता था, जहाँ उनकी पत्नी सिया अकाउंट्स संभालती थीं। और सबसे ऊपर, कॉलेज जाने वाली नेहा और स्कूल का नटखट अनुज हर दिन घर में नई हलचल मचाते रहते।
हर दिन की भागदौड़ के बीच भी इस परिवार का एक अनकहा पर खूबसूरत नियम था रात का खाना सब साथ बैठकर खाना। चाहे कोई कितनी भी देर से आए, थाली सबकी साथ सजेगी। रसोई में सिया और पूजा मिलकर खाना बनातीं ,दाल में थोड़ा ज़्यादा नमक पड़ता तो दोनों मिलकर दाल को प्यार से ठीक कर देतीं। जब सब खाने की मेज़ पर बैठते, तो बातें ऐसे चलतीं जैसे कोई पुरानी रेडियो की कहानी बीच-बीच में हंसी, छींटाकशी, और पुरानी यादें।
लेकिन जैसे हर कहानी में एक मोड़ आता है, वैसे ही एक दिन इस घर में भी आया। रवि को अपने ऑफिस से एक नया फ्लैट मिलने का शानदार ऑफर मिला। वो सोचने लगा “ऑफिस नज़दीक रहेगा, बच्चों का स्कूल भी। क्यों न अलग रह लें? थोड़ी प्राइवेसी भी मिलेगी।
बात छोटी थी, लेकिन पूरे घर में गूंज उठी। अम्मा ने कुछ नहीं कहा, बस तुलसी में पानी डालते वक्त उनकी आँखें नम थीं। अर्जुन चुपचाप बैठ गया। सिया ने धीरे से कहा, “नया घर कितना भी सुंदर हो, क्या उसमें ये दिल को सुकून देने वाली घर के सभी लोगों की आवाज़ें होंगी?

पिछले कुछ समय से रवि रोज़ की इतनी दूरी वाली भागदौड़ से थोड़ी राहत चाह रहा था, अगर वह ऑफिस से मिला ऑफर अपना लेता तो उसे बस ऑफिस के समय से पांच मिनट पहले ही निकलना होता और वो समय से घर भी आ जाता ,उस फ्लैट से इतना पास था उसका ऑफिस। सारा दिन ऑफिस में रवि के दिमाग में यही सब चलता रहा ,लेकिन उसी रात जब वो देर से घर लौटा, तो देखा पूरे परिवार में उसके बिना किसी ने भी खाना नहीं खाया था। थालियाँ सजी थीं, और सबउसी का इंतज़ार कर रहे थे।
उस पल उसकी आँखों में आंसू टिक नहीं पाए और उसे एहसास हुआ कि सुविधा और अपनेपन में शायद ज़मीन आसमान से भी ज्यादा का फ़र्क है।
अगली सुबह रवि ने सबको बुलाकर बताया मैंने नया फ्लैट छोड़ दिया। अब ये घर ही हमारा सब कुछ है। अगर जगह कम पड़ेगी, तो दिल थोड़ा बड़ा कर लेंगे।
कुछ समय के लिए शायद मई स्वार्थी हो गया था, उम्मीद है आप सब इसे मेरी नादानी समझ कर माफ़ कर देंगे।
घर में तालियाँ बज उठीं, और दादाजी ने मुस्कुराते हुए कहा, “शहर में जगह छोटी हो सकती है, लेकिन रिश्ते अगर बड़े हों, तो मकान महल बन ही जाता है।
उस दिन के बाद परिवार के इस प्यार ने घर को और खूबसूरत बना दिया। अब हर रविवार को सब मिलकर “मूवी नाइट” मनाने लगे। अब ‘कृष्णा निवास’ सिर्फ़ एक पता नहीं था बल्कि अब वो एक जीवित कहानी थी, जहाँ सुबह की शुरुआत सबके साथ होती थी, और रातें हँसी-मजाक पर खत्म।
शहर की तेज़ रफ्तार ज़िन्दगी अब उन्हें थकाती नहीं थी, क्योंकि हर शाम जब वो घर के अंदर आने के लिए दरवाज़ा खोलते तो बाहर की भागदौड़ पीछे छूट जाती और अंदर सिर्फ़ घर की गर्माहट मिलती।
