बार बार मुड़ मुड़ कर देखती मीनाक्षी डरी हुई लग रही थी। हालांकि जब उसने मुड़कर देखा तो कोई भी नहीं था लेकिन जिस जगह से वह गुजर रही थी , वह बहुत डरावनी सी और वीरान सी लग रही थी । इसका कारण था बीते कुछ महीनों में इस जगह पर होने वाली अपहरण और बलात्कार की घटनाएं।

            यह रास्ता उसे उसकी मंज़िल तक जल्दी पहुंचा देगा, यह सोचकर वह इस रास्ते पर मुड़ गयी थी पर अब मन ही मन थोड़ा डर भी रही थी।

            सिर झुकाये मीनाक्षी तेज कदमों से आगे बढ़ी जा रही थी। तभी अचानक उसे एक उन्नीस- बीस साल का लड़का पास की पतली सी गली में से आता हुआ दिखाई दिया। मीनाक्षी थोड़ा ठिठक गयी और अपनी निर्धारित गति से, बिना उस लड़के की ओर देखे, आगे बढ़ती रही। वह लड़का धीरे धीरे मीनाक्षी के पीछे चल रहा था। लड़के को मीनाक्षी के हाव भाव से साफ समझ आ रहा था कि मीनाक्षी डरी हुई है। उस लड़के ने पीछे से आवाज लगाई……

“दीदी… दीदी… रुकिए… ये आपका कुछ सामान गिर गया

है।”

” नहीं मेरे पास तो कुछ सामान  नहीं था, किसी और का

होगा।”

मीनाक्षी ने अपनी जगह पर ही मुडकर जवाब दिया और फिर आगे बढ़ गयी।

“अरे ये गुलाबी रूमाल है, आपका नहीं है क्या?” लड़के ने फिर पूछा।

मीनाक्षी अपनी जगह पर ही रुक गयी और इधर उधर देख कर बोली…”ओह्ह हाँ, मेरा ही है। पता ही नहीं चला कब गिर गया!…. थैंक यू।” कहते हुए मीनाक्षी ने उस लड़के के हाथ से अपना रूमाल ले लिया।

“आप क्या हाईवे के तरफ जा रही हो दीदी?” लड़के ने आत्मीयता दिखाते हुए पूछा।

मीनाक्षी ने हाँ में सिर हिला दिया।

” इधर से क्यूँ? यह रास्ता सुरक्षित नहीं है। आपको इधर से नहीं आना चाहिए था। आप कहो तो मैं शार्टकट से ले चलूँ?… आप भरोसा कर सकती हो मुझ पर।” लड़के ने हमदर्दी जताते हुए कहा। 

     मीनाक्षी को  लड़के की बात सही लगी तो मीनाक्षी ने सहमति जताई और लड़के के पीछे पीछे बातें करते हुए चलने लगी। 

      थोड़ी देर बाद लड़का एक संकरी सी गली में मुड़ गया और मीनाक्षी भी। मीनाक्षी ने पूछा  “और कितनी देर है हाईवे पर पहुँचने में?” 

इस पर लड़का उसकी तरफ देख कर मुस्कुराया और बोला, “बस आ ही गये समझो”…. फिर एक जोरदार शीटी मारी।

          उस शीटी की आवाज से चार और आदमी दाएं बाएं की गलियों से उस गली की तरफ आ गये। उनको देख मीनाक्षी को समझते देर न लगी कि वह फंस गई है। मीनाक्षी ने वहाँ से भागना शुरू किया।……

वे चारों आदमी और वह लड़का , अपनी राक्षसी हसी हँसते हुए मीनाक्षी को पकड़ने की कोशिश में उसके पीछे भागे जा रहे थे। 

    भागते भागते मीनाक्षी एक पुराने से मकान में घुस गई और चुपचाप कहीं छुप गयी। वे पांचों लोग मीनाक्षी को इधर उधर ढूँढने लगे।

बहुत ढूंढने के बाद भी जब मीनाक्षी उनको कहीं नहीं मिली तो वे लोग एक कमरे में इकट्टा हो गए। तभी बाहर पुलिस की गाड़ी का सायरन सुनाई दिया। जिसे सुनकर वे पांचों एक दूसरे को देख घर के बाहर जाने के लिए भागे। मुख्य दरवाजे पर पहुंच कर देखा तो ताला लगा हुआ था। वे लोग चौंक गए। भीतर की ओर मुड़े तो देखा मीनाक्षी पिस्तौल ताने खड़ी है और दो हट्टे कट्टे आदमी भी अपने अपने हाथों में पिस्तौल लिए खड़े हैं।

यह दृश्य देखकर वे पांचों कहने लगे- “हमें जाने दो हमने कुछ किया ही नहीं है।”

“किया नहीं है, करने वाले तो थे न …. … बलात्कार!!

मैं कब से तुम लोगों को पकड़ना चाहती थी। और कोई रास्ता समझ नहीं आया तो मुझे खुद तुम्हारा शिकार बनके सामने आना पड़ा। तुम्हें क्या लगा था? हर ‘भीगी भागी से लड़की’

एक मौका होती है? जिसे तुम लोग जैसे चाहो नुकसान

पहुंचा सकते हो!…. बिल्कुल नहीं। मैं बारिश में भीगी जरूर थी, अकेली भी थी लेकिन शिकार नहीं तुम्हारा। मैं तो तुम्हारा शिकार करने आई हूँ। और मैं हूँ इस जिले की नई एस. पी…… ‘मीनाक्षी ठाकुर’ ।।