Summary: एक पिता-सा ससुर: जब बहू के सपनों ने पाई उड़ान
राधा के अंदर छुपे क्रिएटिव टैलेंट को उसके ससुर हरिशंकर जी ने पहचाना और सामाजिक दबाव के बावजूद उसे आगे बढ़ने का हौसला दिया।
यह कहानी बताती है कि सही समर्थन मिले, तो एक बहू न सिर्फ़ आत्मनिर्भर बनती है, बल्कि पूरे परिवार की सोच बदल देती है।
Short Story in Hindi: सुबह का आँगन हमेशा की तरह चुप था। बहू राधा झाड़ू लगाते-लगाते बार-बार खिड़की की तरफ देख रही थी, जैसे मन कहीं और भटका हो। उसकी उँगलियों में आज भी मेहंदी के पुराने निशान थे, पर उन्हीं उँगलियों से वह कभी कागज पर रंग बिखेरती थी ये बात घर में बस एक ही इंसान जानता था, उसके ससुर हरिशंकर जी। उन्होंने कई बार देखा था, रात को सबके सो जाने के बाद राधा पुराने कॉपी के पन्नों पर चुपचाप स्केच बनाती रहती थी, जैसे घर के कामों के बीच अपनी साँसें बचाकर रख रही हो।
एक दिन हरिशंकर जी ने उसे आँगन में बैठा देखा, आँखों में थकान और अधूरापन दोनों थे। उन्होंने सहजता से कहा, “बहू, ये घर का काम तो चलता रहेगा, पर तू जो बनाती है न… उसमें जान है।” राधा सकपका गई, बोली, “बाबूजी, ये सब शौक की बातें हैं, घर-गृहस्थी के आगे क्या मायने?” हरिशंकर जी मुस्कराए, लेकिन आवाज़ में दृढ़ता थी “शौक नहीं, हुनर है। और हुनर को दबाना पाप होता है।”
धीरे-धीरे उन्होंने घर के कामों की जिम्मेदारी खुद और अपनी पत्नी के बीच बाँट दी। पत्नी ने हैरानी से पूछा, “ये सब क्या कर रहे हो? बहू को घर से छुड़वाकर बाहर की उड़ान सिखाओगे?” हरिशंकर जी ने पहली बार सख़्ती से कहा, “हाँ, अगर ज़रूरत पड़ी तो। ये लड़की सिर्फ़ चूल्हा-चौका करने के लिए नहीं बनी।” बात बढ़ी, तकरार हुई, लेकिन वे डटे रहे। उन्हें मालूम था, राधा के अंदर जो आग है, अगर बुझ गई तो ज़िंदगी भर धुआँ देती रहेगी।
बेटे को जब पता चला कि पिता बहू को ऑनलाइन क्रिएटिव काम सीखने, ऑर्डर लेने के लिए कह रहे हैं, तो वह नाराज़ हो गया। उसने कहा, “पापा, लोग क्या कहेंगे? मेरी पत्नी बाहर कमाएगी?” हरिशंकर जी ने शांत स्वर में जवाब दिया, “लोग कुछ भी कहें, पर अगर मेरी बहू का टैलेंट मर गया तो मैं खुद को माफ़ नहीं कर पाऊँगा।” बेटे की नाराज़गी चुप्पी में बदल गई, मगर मन में खटास रह गई।
राधा डरती थी। उसे लगता था, कहीं सब बिखर न जाए। लेकिन ससुर हर रोज़ उसका हौसला बढ़ाते कभी कहते, “आज एक नया डिज़ाइन बना,” कभी बोलते, “देख, ये ऑनलाइन प्लेटफॉर्म है, यहाँ लोग पैसे देकर हुनर खरीदते हैं।” पहली कमाई जब उसके हाथ आई, तो राधा की आँखों से आँसू बह निकले। उसने काँपती आवाज़ में कहा, “बाबूजी, ये सब आपके बिना संभव नहीं था।” हरिशंकर जी ने सिर पर हाथ रखा, “मेहनत तेरी है, मैं तो बस रास्ता दिखा रहा हूँ।”
वक़्त बदला। घर में पैसों की तंगी कम होने लगी। बेटे ने देखा कि राधा की कमाई से घर की ज़रूरतें आसान हो गई हैं, उसका आत्मविश्वास बढ़ गया है। एक दिन उसने खुद कहा, “पापा, शायद आप सही थे।” पत्नी भी अब राधा के काम को गौर से देखने लगी। उसने माना, “मैं डर गई थी, पर तुमने जो किया, वो सही था।”
एक शाम मोहल्ले में सब बैठे थे। किसी ने कहा, “आजकल बहू का नाम बड़े-बड़े ऑर्डर में आता है।” हरिशंकर जी चुप रहे, लेकिन आँखों में संतोष चमक रहा था। पत्नी ने सबके सामने कहा, “अगर इनके हौसले न होते, तो मेरी बहू आज भी सिर्फ़ काम में उलझी रहती।” बेटे ने आगे बढ़कर पिता के पैर छुए, बोला, “आपने हमें सोचने का नया तरीका दिया।”
राधा उस दिन ससुर के पास बैठी थी। उसने धीमे से कहा, “बाबूजी, आपने मुझे सिर्फ़ काम नहीं दिया, पहचान दी।” हरिशंकर जी की आँखें भर आईं। उन्होंने कहा, “बेटी, जब घर की बेटी उड़ान भरती है, तब घर भी ऊँचा हो जाता है।” उस पल हर कोई जान गया सच में, ये ससुर नहीं, एक चुपचाप क्रांति करने वाला इंसान था, जिसकी वजह से एक बहू की दुनिया बदल गई।
