Short Story: बड़े शहर की रौनकें छोड़कर जब सुनैना की शादी एक छोटे कस्बे के घर में हुई, तो मन में थोड़ा डर था और थोड़ी उम्मीद। नए घर का माहौल समझना मुश्किल नहीं था यहां सब कुछ नियमों से चलता था, और उनमें सबसे अधिक “चुप” थी उसकी सास, शांता देवी।
शुरुआती दिनों में सुनैना ने गौर किया कि घर के हर फैसले में शांता देवी की कोई राय नहीं ली जाती। खाना कब बनेगा, क्या बनेगा, बहुएं क्या पहनेंगी, यहाँ तक कि किसको कब आराम करना है सब कुछ बड़ी बहू रीना और ससुर जी तय करते।
शांता देवी बस सबकी हां में हां मिलातीं, और अपने कमरे में चली जातीं। वहां वे चुपचाप बैठकर सिलाई-कढ़ाई करतीं – जैसे अपने मन की बात उस धागे में पिरोती हों।
एक दिन, सुनैना ने देखा कि शांता देवी पुराने कपड़ों से बेहद सुंदर पैचवर्क बैग्स, कवर, और कढ़ाई वाले रुमाल बना रही थीं। हर डिज़ाइन में एक गहराई थी जैसे हर टांका उनके सालों के अनुभव और भावनाओं से बुना गया हो।
“माँ जी, ये सब आपने बनाया है?”
“हां बेटा, ऐसे ही टाइम पास के लिए बना लेती हूँ। पहले कुछ ऑर्डर भी आते थे, लेकिन अब तो घर के कामों से फुर्सत ही कहाँ मिलती है, और… कौन पूछता है अब हमारी कला को?”
उनकी आंखों में एक अधूरी प्यास दिखी मानो बरसों से किसी ने उनकी पहचान को मिटा दिया हो।
सुनैना को झटका-सा लगा इतनी बड़ी कलाकार, और इतनी खामोशी?
अगले ही दिन सुनैना ने उनके बनाए बैग्स की फोटो खींची और एक इंस्टाग्राम पेज बनाया- “Handmade by Amma”
शुरुआत में बस दोस्तों ने तारीफ की, कुछ ने ऑर्डर भी दिए। लेकिन देखते ही देखते, पेज पर फॉलोअर्स बढ़ने लगे। लोगों को शांता देवी की कला में कुछ खास नजर आया उसमें एक अपनापन था, एक कहानी थी।
जब पहला बड़ा ऑर्डर आया, सुनैना ने खुशी-खुशी माँजी के हाथ में फोन थमाया, “देखिए माँ, किसी ने पाँच बैग्स का ऑर्डर दिया है। और आपके फूलों वाला डिज़ाइन उन्हें सबसे ज़्यादा पसंद आया है!”
शांता देवी की आँखों में नमी उतर आई। “तू तो मेरी बेटी है, बहू नहीं… सालों बाद किसी ने मेरी कला को देखा।”
धीरे-धीरे घर की हवा बदलने लगी।
अब शांता देवी के कमरे में सिर्फ धागे और कपड़े नहीं, बल्कि हौसले और सपनों की गूंज होती।
बड़ी बहू रीना, जो कभी ताने देती थी — अब वही पूछने लगी, “माँ जी, इस बार वाले बैग्स में रंग कौन-सा डालें?”
ससुर जी, जो कभी कहते थे कि “बुढ़ापे में आराम करो”, अब गर्व से मोहल्ले में बताते, “मेरी घरवाली के बैग्स अब दिल्ली तक बिक रहे हैं!”
“Handmade by Amma” अब सिर्फ एक इंस्टा पेज नहीं रहा, ये एक पहचान बन गया।
महिलाओं के लिए वर्कशॉप शुरू हुईं, कॉलेज की लड़कियाँ सीखने आने लगीं।
शांता देवी की आवाज अब सिर्फ सिलाई मशीन की गूंज नहीं थी, वो अब मंच से बोलने लगी थीं।
एक दिन लोकल न्यूज चैनल का रिपोर्टर घर आया। इंटरव्यू में शांता देवी से पूछा गया, “आपको इस उम्र में इतनी पहचान कैसे मिली?”
शांता देवी मुस्कराईं, और एक ही वाक्य बोला, “जब सबने मुझे भुला दिया, मेरी बहू ने मुझे फिर से खुद से मिलवाया।”
