Hindi Social Story
Hindi Social Story

Hindi Social Story: देख बहू…तू तो इतने दिनों में अच्छे से समझ चुकी है कि मैं उन सासों में से नहीं हूं जो बहू की खामियां ढूंढती रहती है और सुना सुना कर उनका जीना हराम कर देती है…वो इसलिए नहीं कि मैं एक महान इंसान हूं बल्कि इसलिए कि मैं नहीं चाहती जो मैंने झेला वो कोई और झेले…चाहे वो मेरी बेटी हो, बहू हो या और कोई भी हो…पर मैं तुझे एक चीज जरूर सिखाना चाहूंगी!!
हां मम्मीजी मुझे पता चल चुका है कि आप अलग है… मुझे भी आप सास कम मां ज्यादा लगती है और आपसे एक क्या कई चीजें सीखनी है मुझे इसलिए तो आपको कुछ दिन और रूकने कह रही हूं… प्लीज़ मम्मी जी
मैं भी रूकना चाहती हूं पर तुझे तो पता है ना तेरे ससुरजी को कुछ नहीं करने आता..वो हर चीज के लिए मुझपर निर्भर है… उन्हें कुक के हाथ का खाना भी नहीं भा रहा…नौकरी थोड़ी बहुत बची है उसके बाद तो हमें तुम्हीं लोगों के पास ही तो रहना है कभी रमन के पास तो कभी राहुल के पास…
समझती हूं मम्मीजी इसलिए तो ज्यादा रोक भी नहीं रही…आप किस चीज के सिखाने की बात कर रही थी..?
हां… मैं कह रही थी सब करना पर पड़ोस से कटोरे कटोरी का संबंध मत रखना…
मतलब…ठीक से बताइए ना..!
मतलब यही बहू की आज मैंने कुछ अच्छा बनाया तो पड़ोस की भाभी को दे आऊं…कल वो कुछ अच्छा बनाएगी तो मुझे देगी…इस तरह के संबंधों से पूरी तरह परहेज करना भले बातें कितनी कर लेना…घनिष्ठता भी रखना क्योंकि सबसे पहले पड़ोसी ही काम आते हैं…जी चाहे तो घर पर सपरिवार आमंत्रित करके खिला देना पर कटोरे कटोरी के आदान प्रदान से परहेज़ करना…
मुझे लगता है इसके पीछे आपका कोई बुरा अनुभव रहा है मम्मी जी…मुझसे शेयर नहीं करेंगी..
फिर कभी बहू…पर जान लो ऐसा करोगी तो तुम्हारे संबंध हमेशा पड़ोसी से अच्छे रहेंगे।
सासु मां नवविवाहिता रागिनी को मूलमंत्र देकर चली गई…रमन उस बिल्डिंग में पहले से रहता था,एक फ्लोर पर चार फैमिली रहती थी.. जिसमें दीपा की एक छह महीने की बच्ची थी,राधा का बेटा स्कूल जाने लगा था और रानी के दोनों बच्चे तीसरी और पांचवीं में पढ़ते थे… रागिनी के आते ही तीनों मिलने आई उसे गिफ्ट भी दिया…तीनों का व्यवहार भी काफी अच्छा था फिर जाने ऐसी बात क्यों कह गई मम्मी जी…हो सकता है उनके साथ बुरा हुआ हो पर दुनिया का हर इंसान एक सा तो नहीं होता…और सासु मां रहती थी गांव में जहां लोग संकुचित सोच के होते हैं और ये तो शहर है यहां हर कोई समझदार और प्रैक्टिकल होता है..!
बेचारी दीपा खुद अपने मुंह से बोल रही थी उसदिन…दिनभर बच्ची में ऐसी उलझी रहती हूं कि कुछ अच्छा बना खा भी नहीं सकती…वहीं रानी भाभी नॉन-वेज बहुत पसंद करती थी पर बच्चों और पति के नहीं लेने के कारण कभी नहीं बना और खा पाती थी…और राधा भाभी के पति बिल्कुल नमक तेल मसालों से परहेज़ करते थे बीपी और शुगर की वजह से तो बड़ा संतुलित खाना ही बनता उनके घर…इधर रागिनी पाक-कला में निपुण ही नहीं थीं उसे खाना बनाना अच्छा भी बहुत लगता था…और सुबह रमन के ऑफिस जाने और बाईं के काम करके जाने के बाद बैठकर बोर होती रागिनी हर तरह के खाने बनाती रहती थी…शुरू में कुछ दिन तक तो सासु मां की बात याद रही पर सहेलियां मिलने के बाद धीरे धीरे भूलने लगी थी…उसे लगा कि जब वो व्यंजन लेकर किसी के घर जाएगी तो इस बहाने आधे घंटे बातचीत में भी कट जाएंगे….और दोपहर के वक्त किसी के पति होते भी नहीं घर पर तो ज्यादा सोचने की भी जरूरत नहीं है..!!
डरती डरती दीपा ने कटोरी देन लेन शुरू तो कर दिया पर जब वो कटोरी लेकर किसी के घर जाने लगती एकबार सासु मां की याद जरुर आ जाती उसे….!
वाह भाभी…लिट्टी चोखा… मैं तो इसका टेस्ट भी भूलने लगी थी अब… यहां तो किसी होटल में भी नहीं मिलता और बनाने में समय इतना लगता है कि सोच भी नहीं सकती…भाभी थोड़ी देर बैठो ना मै बेबी को सुलाकर आती हूं फिर गप्पें मारेंगे –बिहार से ताल्लुक रखने वाली दीपा खुशी से उछल पड़ी थी जब वो पहली बार उसके घर लिट्टी चोखा लेकर गई थी।

वहीं जब रानी भाभी के घर एक दिन नॉन-वेज लेकर गई तो उनके तो बोल ही नहीं निकल रहे थे…
आज इतनी इच्छा थी खाने की तुम्हें क्या बताऊं रागिनी…होटल से कभी कभी दिन में सबसे छुपाकर मंगवा तो लेती हूं पर घर पर वाला टेस्ट कहां आता है उसमें…??आओ ना मैं चाय चढ़ाकर आई थी अपने लिए साथ पीते हैं…!
उसी तरह जब एक दिन उसने कटहल की खुब स्पाइसी सब्जी बनाई थी तो राधा भाभी के घर लेकर गई…
ऐसी मसालेदार खुशबू के लिए तो मैं तरस गई हूं रागिनी तुम कितनी अच्छी हो…बैठो ना थोड़ी देर बात करते हैं..।
उनकी खुशी देखकर बहुत अच्छा लगता रागिनी को भी और बातों में समय कब कट जाता पता भी नहीं चलता…तीन महीने होने को थे पर रागिनी को अभी तक ऐसा नहीं लग रहा था कि इसमें कुछ ग़लत या बुरा है…सासु मां का भी फोन आता रहता वो पूछतीं..
पड़ोसनों से बात होती है या नहीं..??
हां मम्मीजी…कभी कभी जब आमने सामने मिल जाती है तो बोल बतिया लेती हूं —रागिनी साफ झुठ बोल गई क्योंकि सासु मां को भी तो उदास या निराश नहीं करना था।
खैर…उस दिन उसने बड़े प्यार से गट्टे की सब्जी बनाई थी…चखकर देखा तो लाजवाब बनी थी…खुद नाश्ता करने के बाद रागिनी ने तीन कटोरियां लगाई…उसने सोचकर ही ज्यादा बनाई थी कि एक साथ आज तीनों भाभियों को देगी…।
बड़े प्यार से एक ही थाली में तीनों कटोरियां रखकर उसने सोचा सबसे पहले रानी भाभी के घर चलती हूं….फिर उनके बच्चे आ जाते हैं तो वो व्यस्त हो जाती है।
रानी भाभी का दरवाजा हल्का खुला हुआ था तो ठिठक गई… कहीं कोई गेस्ट तो नहीं आया भाभी के घर ..!तभी अंदर से राधा भाभी के जोर से हंसने की आवाज आई तो उसे थोड़ी राहत महसूस हुई अच्छा हुआ वो भी यही मिल गई दीपा को भी यही बुलाकर सब गप्पें हांकेंगे…सोचती हुई अभी वो बिना बेल बजाए अंदर घुसने ही वाली थी कि रानी भाभी की बात सुनकर रूक गई….
यार… मैं तो परेशान हो गई हूं…अब नॉन-वेज हमारे यहां नहीं चलता तो सिर्फ नॉन-वेज लेकर कभी कभी देने आए तो समझ में आता है…पर कोई भी सब्जी भाजी लेकर पहुंच जाती है…वो भी जब मैं सब काम खत्म कर थोड़ा आराम करने जा रही होती हूं…उसके जाते जाते बच्चे आ जाते हैं…दिन भर फिर आराम नहीं कर पाती…फिर तो मैं इतनी थकावट होती है कि क्या कहूं!
मेरे साथ भी दिक्कत है भाभी….कम तेल मसाला नमक खाते खाते अब मेरा पेट भी वैसे ही खाने पचा पाता है… शुरू शुरू में तो एक दो दिन शौक से खा ली उसकी दी हुई सब्जियां पर….इतनी बार टायलेट भागना पड़ा कि तौबा कर ली मैं तो…अब तो दे भी जाती है तो मैं या तो मेड को दे देती हूं या फिर फेंक देती हूं…कौन रिस्क ले बाबा…और मना करने में बुरा लगता है ना—ये राधा भाभी का स्वर था।
पांच छह दिन पहले दीपा आई थी…वो बोल रही थी..कि भाभी कभी कभी या एक आध दिन ठीक है पर अक्सर वो आकर कटोरी थमा जाती है…अब कटोरी खाली तो वापस करेंगे नहीं…बड़ी कोफ्त होती है क्योंकि मेरे पास तो बिल्कुल समय नहीं होता…अब रोज रोज कटोरी में मिठाई या रेडीमेड नमकीन तो देकर वापस नहीं कर सकते ना…तो बच्ची को रूलाकर या फिर उसके सोने पर खुद आराम ना कर कुछ ना कुछ बनाना पड़ता है…देखो राधा अब इसकी तरह तो हम तीनों खाली नहीं है ना…पर ये शायद इस बात को समझती ही नहीं…और भई समय होता है ना किसी के घर जाने आने का..अब बेवक्त किसी के घर पहुंचोगी तुम्हें मैनर नहीं है लेकिन अगले को है ना तो वो तुम्हे बैठने कहेगा ही…—रानी भाभी के स्वर में हल्का रोष भी था।
चलो भाभी…अब चलती हूं…आपके भी बच्चे आ जाएंगे मेरे भी बेटे के आने का समय हो रहा है..मेरा पार्सल जो कल आपके घर ले गया था कुरियर वाला वो दे दो जल्दी से.. –बोलती हुई राधा भाभी के इतना कहते ही रागिनी ने जल्दी से अपने घर आकर कुंडी लगा लिया…!
उसकी समझ में बिल्कुल नहीं आ रहा था कि क्या करे हंसे रोए…या क्या करें…?
तभी सासु मां का फोन बज उठा…इच्छा ना होते हुए भी रागिनी ने उठा लिया….
प्रणाम मम्मी जी…
खुश रहो बहू…कैसी हो? आवाज सुस्त लग रही है?
सासु मां के प्यार से इतना कहते ही रागिनी की आंखें छलक उठी उसके सब्र का बांध टूट गया और वो जोरों से फफक उठी…और फिर सारी कहानी मम्मी जी को बता दिया।
मम्मीजी… मैंने उन्हें साफ साफ बताया था कि कटोरी सामान सहित वापस करने की जरूरत नहीं…या कुछ अच्छा ना लगे या कोई दिक्कत हो तो वो आराम से मुझे बता दें…पर…
बहू देखो… इसमें उनलोगों का भी कोई कुसूर नहीं है…ये इंसानी प्रवृति है…जो चीज जबतक नहीं मिलती तंद्रा बनी रहती है पर लगातार मिलने लगे या मिलती जाय तो उसका महत्व कम होता जाता है…. मैंने क्या कहा था तुमसे…बातों की घनिष्ठता रखना…कभी कभी सपरिवार आमंत्रित भी कर लेना पर कटोरे कटोरी आदान-प्रदान का संबंध ना रखना…
नहीं समझी थी आपकी बात को तभी तो ठोकर खा गई मम्मी जी..!
कोई बात नहीं…ठोकर खाकर आदमी ज्यादा अच्छी तरह सिखता और समझता है…अब तुम ऐसा कभी नहीं करोगी मुझे पता है…!
जी मम्मी जी…समझ में नहीं आ रहा कल से क्या करूंगी?
शॉपिंग और साफ सफाई शुरू कर दो..तुम्हारे ससुरजी की कुछ छुट्टियां बांकी थी… उन्होंने अभी ले ली है तो हमलोग संडे को आ रहे हैं…अब सास ससुर आएंगे तो शॉपिंग और साफ-सफाई तो करनी होगी ना—सासु मां ने मजाकिया स्वर में कहा..!
फोन रखने के बाद रागिनी पहले से हल्का महसूस कर रही थी…सच कहा सासु मां ने कोई इंसान गलत या बुरा नहीं है उसकी प्रवृत्ति और प्रकृति ही ऐसी होती है….!!!!