Posted inहिंदी कहानियाँ

अरमानों की आहुति-गृहलक्ष्मी की कहानियां

गृहलक्ष्मी की कहानियां-शाम हो चुकी थी। ठंडी हवा चल रही थी। घर की खिड़कियों में पर्दे लगे वो हल्के पीले रंग के पर्दे उड़ने लगे थे। बाहर बालकनी में लगे मनीप्लांट की बेल भी मानो हवा का आनंद ले रही हो। तुलसी का कोमल पौधा तेज़ हवा को सहन नहीं कर पा रहा था। तभी […]

Posted inहिंदी कहानियाँ

विडंबना – गृहलक्ष्मी कहानियां

ये एक स्त्री के लिए विडंबना ही तो है कि घर-बाहर हर जगह उसका अपना ही वजूद सुरक्षित नहीं। नरपिशाचों से खुद को बचाते हुए लक्ष्मी का भाग्य भी ऐसी ही परिस्थितियों से गुज़र रहा था।

Posted inहिंदी कहानियाँ

भाग्य या दुर्भाग्य – गृहलक्ष्मी कहानियां

राजा की आंखों के आगे अंधेरा छा गया वह वहीं एक कुर्सी पर सिर पकड़कर बैठ गया और सोचने लगा कि यह सब क्या हो गया? अब वह रानी को क्या जवाब देगा और मां से क्या कहेगा? अब उसकी जेबों में उसका भाग्य था और घर में बिखरा हुआ दुर्भाग्य था।

Posted inहिंदी कहानियाँ

लाइव गिफ्ट- गृहलक्ष्मी की कहानियां

कमरे की नीली रोशनी में उसका गोरा चेहरा, बिखरे बाल और तराशे हुए बदन को देखकर मैं पागल सा हो गया। अपने को रोक पाना मुश्किल सा लगने लगा, मेरा दिमाग शून्य होता जा रहा था…

Posted inहिंदी कहानियाँ

इतिश्री – गृहलक्ष्मी कहानियां

प्रसव के दौरान देवरानी पलक की मौत ने मुझे भीतर तक झकझोर दिया, उसकी उम्र ही क्या थी? मौत उम्र नहीं देखती, उसे जब आना होता वह आती है। मन को समझाएं हुए मैं उसकी नवजात बेटी को कमरे में सुलाने गयी तो वहां ताई सास अपनी बहू मीना को पाठ पढ़ा रही थीं। ‘मीना’ तू अपने मायके खबर कर दे। तेरे घर वाले सांत्वना देने आ जाएंगे, फिर मौका देखकर तेरी बहन रीना के रिश्ते की बात पल्लव से चला देंगे। बच्चों की खातिर शादी के लिए पल्लव मान ही जायेगा।

Posted inहिंदी कहानियाँ

वह जल रही थी – गृहलक्ष्मी कहानियां

कमरे के बीचों बीच उसकी आग में झुलसी हुई लाश, जो आधी जल चुकी थी, एक सफेद चादर में ढकी हुई थी। वह जल चुकी थी, सांसें खत्म हो चुकी थीं, लेकिन उसकी आग से अनछुई रूह वहीं कमरे में एक कोने में बैठी मुस्कुरा रही थी। घरवालों की, लोगों की, रिश्तेदारों की बातें सुन रही थी। कई बहुत अफसोस कर रहे थे कि देखो, बेचारी जलकर मर गई।

Posted inहिंदी कहानियाँ

मुझे माफ़ कर देना- भाग 3

महीने भर बाद हमारा विवाह हो गया। मुझे वो दिन अभी भी याद हैं जब मैंने आखिरी बार तेरा चेहरा देखा था, तूने कोई रोष व्यक्त नहीं किया था, कोई प्रतिवाद नहीं किया था। तूने हम दोनों को मुबारकबाद दी थी और तेरे चेहरे पर खुशी के रंग थे। पर क्या तू वाकई भीतर से खुश थी? नहीं, तुझे बहुत दु:ख हुआ था रवीन्द्र की बेवफाई पर, पर जैसा कि तेरा स्वभाव रहा है, तूने उफ्फ तक नहीं की। अपना दु:ख, अपनी पीर अपने अंदर ही जज़्ब कर ली। विवाह के बाद हम मुम्बई आ गए। पहले रवीन्द्र अपने पिता और भाइयों के संग मिलकर कारोबार करता रहा, फिर उसने अपना बिजनेस अलग कर लिया।

Posted inहिंदी कहानियाँ

मुझे माफ़ कर देना- भाग 2

फिल्म और साहित्य को लेकर वह अक्सर बातें करता था। विशेषकर वे बातें जो स्त्री-पुरुष के बीच की अंतरंग बातों को व्याख्यायित करती थीं। मेरे भीतर एक औरत भूखी रहने लगी थी। मैं उसकी भूख को कुचलने की कोशिश करती, तो वह और अधिक भड़क उठती। मैं सोचती कि वह भूख रवीन्द्र के सानिध्य में कम हो जाएगी, उसके स्पर्श से वह शांत हो उठेगी, पर ऐसा न होता। वह और अधिक तेज़ हो जाती। फिर सोचती, रवीन्द्र्र की अनुपस्थिति में यह भूख शांत हो जाएगी, पर जब वह मेरे करीब न होता तो इस भूख को जैसे दौरा-सा पड़ जाता। मुझे वह रवीन्द्र के पास दौड़ा ले जाना चाहती। अभी मैं अपने भीतर की औरत की इस भूख से दो-चार हो ही रही थी कि मुझे यह अहसास होने लगा कि रवीन्द्र की दिलचस्पी मुझमें खत्म होती जा रही है, वह अब तेरी तरफ झुक रहा है।

Posted inहिंदी कहानियाँ

प्रतीक्षित लम्हा- भाग 2

वह उन्हें देख कर कह उठे- ‘भावी! कितनी प्यारी है ये पहाडिय़ां और कितनी सुंदर है इन पर बर्फ से ढकी चादर। बिल्कुल तुम्हारी तरह। जी चाहता है बस तुम्हें इसी तरह निहारता रहूं। बड़ा सुख और संतोष है तुम्हारे सौंदर्य को देखने और निहारने में। और मैं मन ही मन पुलकित हो उठती। आलोग ने बताया था कि उसके घर वाले भी शादी के लिए तैयार हैं। यह कहते हुए उसने मेरे मुंह में एक टॉफी डाल दी थी, आधी अपने दांतों से काटकर। फिर हम दोनों मुस्कुराते हुए आगे बढ़ चले थे। एक साथ एक ही डगर पर।

Gift this article