गृहलक्ष्मी कहानियां – उसकी रूह हंस रही थी, ‘आप लोगों को तो आज मेरी जली हुई लाश नज़र आ रही है। मैं तो कई सालों से जल रही थी, अपमान और तिरस्कार की आग में पल- पल जल रही थी। मेरा वजूद तो कितने सालों से टुकड़े-टुकड़े होकर आग में झुलस रहा था।
इतना तिरस्कार, ‘दहेज कम, सौंदर्य कम, अक्ल कम, मायके में कंगाली ऐसे ताने और गालियां सुनकर उसकी आत्मा तो पहले से ही लहूलुहान हो रही थी प्रतिदिन। उस पर फिर पति और सास की मार और गाली-गलौच। प्रताड़ित काया और आत्मा बन गई थी वह। एक ऐसा चक्रव्यूह, जिसमें वह फंस गई थी, सिर्फ अपने मां-बाप की इज़्ज़त के कारण उसे वापसी का कोई रास्ता दिखाई नहीं दे रहा था।
फिर आज उसका धैर्य खत्म हो चुका था, आत्मा ज़ार-ज़ार रो रही थी। कैसे वह अब इस रोज़ के जलने से बचे? उसकी आंखें रोज़ के रोने से पथरा गई थीं और दिल भी पत्थर हो चुका था। फिर उसके पत्थर मन ने पत्थर सा फैसला किया, इस दुनिया को अलविदा कहने का। यहां उसकी चिता रोज़़ जल रही थी तो क्यों न एक बार पूरी जल जाए। चैन की नींद सो जाए। उसकी जलती हुई रूह को ठंडक मिल जाए।
आज वाकई ही उसकी रूह ठंडक और शांति महसूस कर रही थी। मंद-मंद मुस्कुरा रही थी। उसके अपराधियों को सज़ा मिलेगी या नहीं उसको थोड़ा सा ताज्ज़ुब हो रहा था। जो जलना विवाह की पवित्र वेदी की अग्नि से आरम्भ हुआ, आज वह आग बुझ चुकी थी। दुनिया और अखबार के लिए वह आज ही जल के मरी थी। लेकिन वह तो कई सालों से जल रही थी।
यह भी पढ़ें – उम्मीद – गृहलक्ष्मी कहानियां
