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जिन्न नहीं हूं ‘मैं ‘ – गृहलक्ष्मी कहानियां

‘मां आज नाश्ते में आलू के परांठे बना देना, नहीं मां आलू के नहीं प्याज़ के बनाना, रोहन-रिया की फरमाइश अभी सुन ही रही थी कि अजय कहने लगे, ‘क्या तुम लोग भी आलू प्याज करते रहते हो यह भी कोई परांठे हैं, खाने हैं तो गोभी या पनीर के खाओ, मज़ा आ जायेगा।

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वह जल रही थी – गृहलक्ष्मी कहानियां

कमरे के बीचों बीच उसकी आग में झुलसी हुई लाश, जो आधी जल चुकी थी, एक सफेद चादर में ढकी हुई थी। वह जल चुकी थी, सांसें खत्म हो चुकी थीं, लेकिन उसकी आग से अनछुई रूह वहीं कमरे में एक कोने में बैठी मुस्कुरा रही थी। घरवालों की, लोगों की, रिश्तेदारों की बातें सुन रही थी। कई बहुत अफसोस कर रहे थे कि देखो, बेचारी जलकर मर गई।

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उम्मीद – गृहलक्ष्मी कहानियां

मेरे विचारों में पहले से अधिक लचीलापन आ गया है। क्योंकि जिन्दगी सब चीजों से अधिक कीमती है। ये बात सही है क्वारटांइन का एंकात पीड़ा देता है पर यह खुद को करीब से महसूस भी करवाता है।

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समीकरण – गृहलक्ष्मी कहानियां

आसमां से विधाता भी अपनी इस कृति (इंसान) को देख निहाल हो रहा था। ‘विपरीत से विपरीत परिस्थिति में भी सकारात्मक और आशावादी बने रहकर तू विजयी हो ही जाता है। धन्य है तू!

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अवसरवाद की महिमा – गृहलक्ष्मी कहानियां

समाजवादी कहते हैं कि वे समाजवाद के समर्थक हैं। पूंजीवादी कहते हैं कि वे पूंजीवाद के समर्थक हैं। यदि अवसरवाद के कोई संस्थापक होंगे तो उन्हें जान कर अफसोस होगा कि अवसरवाद के कट्टर समर्थक भी यह मानने के लिए तैयार नहीं होते कि वे अवसरवादी हैं।

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मिलियन डालर स्माइल – गृहलक्ष्मी कहानियां

हैपी बर्थडे टू यू मां, मे गॉड ब्लेस यू…’

पार्श्व में बजते संगीत के मध्य आभा अपनी अस्सी वर्षीय वयोवृद्धा मां को सहारा देते हुए लंदन के फाइव स्टार होटल में लाल गुलाबों, जलती हुई सुगंधित मोमबत्तियों और मां-पापा के बड़े-बड़े पोस्टरों से सजे डाइनिंग हाल में ले जा रही थीं।

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लत – टीवी के तेज़ होते वॉल्यूम

टीवी के तेज़ होते वॉल्यूम के साथ बहू माला के डांटने का स्वर गूंजा तो बाबूजी की नींद भी उचट गई। अब फिर से नींद नहीं आने वाली, सोचकर उन्होंने तकिए के नीचे से अमृता प्रीतम की ‘सात सौ बीस कदम’ निकाली और सहारा लेकर बैठ गए। नजरें स्वत: ही समीप लेटी पत्नी वसुंधरा की ओर घूम गई।

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