Hindi Kahani
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Hindi Kahani: शाम का वक्त था। रिया बालकनी में बैठी थी। सामने आसमान में ढलता सूरज, नीचे गली में बच्चों की चहल-पहल… और भीतर उसके मन में एक गहरा सन्नाटा।
कॉफी का मग आधा खाली था, और दिल पूरा।

आकाश अंदर मोबाइल पर रील्स देख रहा था। कभी-कभी हंस पड़ता, फिर दोबारा स्क्रीन में खो जाता।
रिया ने धीरे से पूछा —
“खाना बनाऊं या बाहर से मंगवा लें?

आकाश ने सिर उठाए बिना कहा —
“जो तुम्हारा मन करे, मुझे तो कुछ भी चलेगा। वैसे भी सुबह से मीटिंग करते-करते दिमाग घूम गया है।”

रिया ने धीरे से “ठीक है” कहा और चुप हो गई।
अब उसे आदत हो चली थी — हल्की बातचीत के बाद अब अक्सर ऐसी ही एक लंबी चुप्पी छा जाती थी, जो दीवार की तरह उनके बीच खड़ी रहती।

रात को दोनों साथ बैठे टीवी देख रहे थे।
रिया ने कहा—“आकाश, याद है तुम्हें, शादी के बाद जब हम पहली बार मनाली गए थे? तुमने कहा था, ‘रिया, मैं तुम्हें खोना नहीं चाहता… तुम हमेशा बस मेरे पास रहना।’”

आकाश हंसकर बोला —
“अरे हां, पर अब भी तो हम साथ में ही हैं ना! क्यों, मुझसे दूर जा रही हो क्या?”

रिया के चेहरे पर हल्की सी मुस्कान आ गई, मगर आंखों में नमी उतर आई।

धीरे से बोली — “हाँ, हम साथ में ही तो रहते हैं… एक ही चार दीवारी के भीतर , बस अपनी-अपनी जिंदगियों में खोए हुए!”

अगले दिन नंदिनी आई। उसकी कॉलेज की पुरानी दोस्त।
कॉफी के दौरान उसने पूछा —
“रिया, तू खुश तो है ना?”

रिया ने एक हल्की हंसी हंसते हुए कहा —
“खुश? हाँ… क्यों नहीं? सब ठीक ही तो है।”

नंदिनी ने उसकी आंखों में झांका —
“रिया, तेरी आंखों में वो चमक नहीं दिखती अब। तू पहले बहुत हंसती थी, हर चीज़ में खुशी ढूंढ लेती थी। तेरी वो पेंटिंग्स, तेरी कविताएं… सब कहां खो गईं?”

रिया कुछ देर खामोश रही। फिर बोली —
“शादी के बाद सब कुछ धीरे-धीरे घुल गया।
पहले लगा, वक्त नहीं है।
फिर समझ में आया कि वक्त तो है, बस अब वो ऊर्जा नहीं बची।”

नंदिनी ने उसका हाथ थाम लिया —
“रिया, हर रिश्ता दो लोगों से बनता है।
अगर वो साथ नहीं दे रहा, तो तू खुद से रिश्ता बना ले।”

रिया ने उसकी ओर देखा —
“मतलब?”

नंदिनी मुस्कुराई —
“मतलब, वही कर जो तुझे ज़िंदा रखता है। पेंटिंग कर, लिख, गिटार बजा। खुद को फिर से जी ले, क्योंकि तू खुद को जितना भूलती जाएगी, उतनी ही भीतर से सूखती जाएगी।”

उस रात रिया देर तक सो नहीं पाई।
ड्रेसिंग टेबल के पास रखे पुराने गिटार को देखा। उस पर हल्की धूल जमी थी। उसने धीरे से उसे उठाया, तारों को छुआ। एक बेसुरा स्वर गूंजा, लेकिन रिया की आंखों में चमक लौट आई।

बस अगले ही दिन से रिया ने अपने जीवन में छोटे-छोटे बदलाव शुरू कर दिए। सुबह टहलना, घर के काम के बाद स्केच बनाना, और हफ्ते में एक दिन नंदिनी के साथ घूमने निकल जाना।

आकाश को अब रिया थोड़ी बदली-बदली सी लगने लगी थी। उसे ऐसा लगा मानो रिया अब पहले की तरह उससे बेवजह के सवाल नहीं पूछती! या अब वह उससे कुछ पूछती ही नहीं है।
एक दिन उसने बस इतना कहा —
“तुम अब पहले जैसी नहीं रही, रिया… पहले मैं जब भी घर पर होता, तुम मेरे आस-पास रहती थी, बेवजह के सवाल पूछती थी। पर अब पता नहीं कहां इतनी बीजी रहती हो।”

रिया ने मुस्कुराते हुए कहा —
“तो मैं बेवजह के सवाल पूछती थी? इसीलिए मैंने अब तुम्हें तंग करना छोड़ दिया है, आकाश।”

आकाश के पास कोई जवाब नहीं था।
वो फिर लैपटॉप के स्क्रीन पर झुक गया।

कुछ महीनों बाद रिया ने अपनी पहली आर्ट एग्ज़िबिशन लगाई।
दीवारों पर उसकी पेंटिंग्स थीं — कुछ रंगीन, कुछ धुंधली, जैसे उसकी ज़िंदगी रही थी।
लोग तारीफ कर रहे थे, फोटो ले रहे थे।

नंदिनी ने गले लगाकर कहा —
“देख, तूने खुद को फिर से पा लिया।”

रिया की आंखें नम थीं, मगर इस बार दर्द से नहीं, आत्मगौरव से।
उसने धीमे से कहा —
“जानती हो नंदिनी, रिश्तों का टूटना उतना दर्द नहीं देता… जितना दर्द किसी रिश्ते में रहते हुए भी खुद को खो देने से होता है।
अब मैं खुद को पा चुकी हूं।”

रात को घर लौटते वक्त आकाश ने पूछा —
“रिया, लोग सच में तुम्हारा काम बहुत पसंद कर रहे थे!”

रिया ने मुस्कुरा कर जवाब दिया —
“हां, शायद इसलिए कि उसमें मैंने अपना सच उकेरा है… वो सारा दर्द, जो तुम्हें कभी दिखा नहीं।”

आकाश कुछ कहना चाहता था, मगर शब्द गले में अटक गए।
वो खिड़की से बाहर देखने लगा। बहुत ही दिलकश चांदनी रात थी, पास में उसका पहला प्यार रिया थी, पर अब उनके बीच सिर्फ खामोशी थी… और एक फासला, जिसे शायद अब कभी पाटा नहीं जा सकता।

रिया ने खिड़की से बाहर देखा और मन ही मन सोचने लगी—
“कभी-कभी सिचुएशनशिप से निकलने का रास्ता सिर्फ तलाक और कंपनसेशन ही नहीं होता है, बल्कि खुद से एक वादा भी हो सकता है……. कि अब मैं फिर से जीऊंगी।”