praarthana ka auchity
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Heart Touching Story: बात उन दिनों की है जब स्वामी विवेकानंद जी अपने जीवन के कठिन दौर से गुजर रहे थे। स्वामी जी की माता बहुत बीमार थी। वह मरणासन्न अवस्था में बिस्तर पर लेटी हुई थी। स्वामीजी के पास बहुत ज्यादा धन नहीं था जिससे वह मां का ईलाज करवाते और ना ही इतना था कि अच्छे भोजन का इंतजाम करते।

खुद की इस हालत पर स्वामीजी को बहुत गुस्सा आया कि जिस मां ने मुझे पाल पोसकर इतना बड़ा किया मैं आज उसके लिए कुछ नहीं कर पाया हूं। गुस्से में स्वामीजी अपने गुरु राम कृष्ण परमहंस जी के पास पहुंचे और कहा, “यह जो पूजा और चिंतन हम करते हैं सब व्यर्थ हैं, इन सबका क्या औचित्य हैं? मैंने अपने सम्पूर्ण जीवन में निःस्वार्थ भावना की भक्ति की है लेकिन बदले में मुझे क्या मिला? आज जब मेरी मां जिसने मुझे अपने लहू से सींचा है मैं उसकी कोई मदद नहीं कर पा रहा है। यह सब क्या है प्रभु?” परमहंस जी शंति से विवेकानंद की सारी बातें सुन रहे थे। आज पहली बार वह अपने शिष्य को टूटते हुए देख रहे थे, मन ही मन वह बहुत दुःखी भी हो रहे थे।

परमहंसजी के आश्रम में मां काली का छोटा सा मंदिर था। उन्होंने विवेकानंद जी से कहा कि अगर उन्हें भगवान से कोई शिकायत है या वह काली मां से कुछ मांगना चाहते हैं तो मंदिर में जाएं और जो चाहे मांग लें। यह सुन विवेकानंद तीव्र गति से मंदिर में गए और बोले, “हे मां मुझे बल दें, बुद्धि दे, विद्या दे।” ऐसा कह कर स्वामीजी मंदिर से वापस आए।

गुरुजी ने पूछा, ‘क्या तुम ने भगवान से धन मांग लिया?”

स्वामीजी अवाक से रह गए और बोले, “महाराज, धन मांगना तो मैं भूल ही गया।”

गुरुजी बोले, “ठीक है फिर से वापस जाओ।”

स्वामीजी फिर से मंदिर में गए और बोले, “हे मां मुझे बल दे, बुद्धि दे, विद्या दे।” ऐसा कह कर फिर वापस आ गए।

गुरुजी ने फिर पूछा, “धन मांग लिया?”

विवेकानंद जी बोले “नहीं।”

गुरुजी “फिर से मंदिर में जाओ और मां से धन मांग लो।”

विवेकानंद जी फिर से मंदिर में गए और बोले, “हे मां मुझे बल दे, बुद्धि दे, विद्या दे।”

यह देखकर परमहंसजी ने स्वामीजी को गले से लगा लिया। उनकी आंखें चमक रही थी। बोले, “तुम पूछ रहे थे भक्ति कर के क्या मिला? आज मैंने तुम्हारा स्वरुप देखा है यह उसी निःस्वार्थ पूजा का फल है। तुम चाह कर भी भगवान से धन नहीं मांग पाए। यह तुम्हारी आत्मशक्ति को दर्शाता है। अगर तुम आज भगवान से धन या सांसारिक वस्तु मांग लेते तो शायद आज तुम्हारा और मेरा अंतिम मिलन होता। मैं आज के बाद तुमसे कभी नहीं मिलता। यही तुम्हारी शक्ति है कि तुम निःस्वार्थ दुनिया के मार्गदर्शक बनोगे। फल की इच्छा से की गई पूजा का कोई औचित्य नहीे है।”

आगे चल कर अपनी इन्हीं आत्मशक्तियों के बदल पर स्वामी जी ने सिर्फ लोगों का मार्गदर्शन किया बल्कि जीवन का सत्य लोगों को बताया।

ये कहानी ‘दिल को छू लेने वाली कहानियाँ’ किताब से ली गई है, इसकी और कहानी पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर जाएंDil Ko Chhoo Lene Wali Kahaniyan (दिल को छू लेने वाली कहानियाँ)