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Laut Aae Tum

Summary: "दस साल बाद लौटा प्यार: जब अधूरी कहानी ने पा लिया अपना मुकम्मल अंत

रिया और ऋषभ की कहानी ने दिखाया कि दूरी प्यार को खत्म नहीं करती, बल्कि और गहरा बना देती है। दस साल बाद जब वो फिर मिले, तो अधूरा रिश्ता एक खूबसूरत वादा बन गया, साथ निभाने का हमेशा के लिए।

Hindi Prem Kahani: रात का वक्त था। मुंबई की हलचल अब थम चुकी थी, पर रिया के मन में तूफान चल रहा था। बालकनी में बैठी वो कॉफी की चुस्की ले रही थी, सामने गगनचुंबी इमारतों की लाइटें थीं। उसकी आंखों में सिर्फ अंधेरा था। दस साल पूरे हो चुके थे उसे ऋषभ से बात किए हुए। आखिरी बार जब दोनों अलग हुए थे, ऋषभ ने कहा था कि वह शादी में यकीन नहीं रखता। रिया ने जवाब में कहा कि अगर आज़ादी चाहिए तो अब वह ले सकता है। यही उनका ब्रेकअप बन गया।

समय बीत गया। रिया ने करियर में खुद को झोंक दिया। अब वह एक नामी इवेंट मैनेजर थी। बड़े-बड़े शो, लाइफस्टाइल ब्रांड्स, चमकदार शहर, सब उसके नाम पर भरोसा करते थे। लेकिन रात को जब लाइट बंद होती, तो उस चमक के पीछे वही पुरानी खाली जगह जाग उठती।

कई बार उसने सोचा शायद ऋषभ किसी और के साथ होगा, खुश होगा। पर फिर एक कोना कहता था कि अगर वह खुश है तो उसे क्यों चैन नहीं आता।

ऋषभ भी कम नहीं बदला था। अब वह एक जाने-माने लेखक था, अपनी किताबों से मशहूर। लोग कहते थे कि उसकी कहानियों में दर्द है, लेकिन बहुत सच्चा दर्द। वह मुस्कुरा देता, क्योंकि जानता था कि यह दर्द किसी और का नहीं, उसका खुद का था। उसकी हर किताब, हर पंक्ति रिया से जुड़ी थी। वह सोचता था कि रिया उसे अपना लेना चाहती थी और वह सोचता रहा कि प्यार को नाम क्यों देना।

फिर एक दिन किस्मत ने खेल खेला। रिया को अपने ऑफिस में नया प्रोजेक्ट मिला दिल्ली लिटरेचर फेस्टिवल 2025। लिस्ट देखी तो उसका दिल धड़क उठा। गेस्ट ऑफ ऑनर में लिखा था ऋषभ मेहरा।

दिल की धड़कनें तेज हो गईं। दस साल बाद वह फिर उसके सामने आने वाली थी।

इवेंट के दिन जब रिया स्टेज पर आई, तो सामने वही चेहरा था। थोड़ा परिपक्व, थोड़ा गंभीर, लेकिन वही आंखें जिनमें एक वक्त उसका पूरा आसमान था।

ऋषभ ने माइक संभाला और मुस्कुराया। उसने कहा कि कुछ कहानियां अधूरी नहीं होतीं, बस वक्त बीच में आ जाता है। रिया की आंखें भर आईं। उसे याद आया यह वही लाइन थी जो ऋषभ पहले कहता था जब वह गुस्सा होती थी।

इवेंट के बाद रिया बैकस्टेज जा रही थी। ऋषभ उसके सामने आ खड़ा हुआ। कुछ पल दोनों एक-दूसरे को देखते रहे। फिर ऋषभ ने धीरे से पूछा कि कैसी हो। रिया मुस्कुराई और कहा कि ठीक हूं, बस अब ग्रीन टी पीती हूं।

ऋषभ हंसा और बोला कि अब वह कॉफी में भी अदरक डालता है ताकि उसकी याद कम न आए। दोनों की आंखें भर आईं। भीड़ थी, लेकिन जैसे वक्त ठहर गया।

अगले दिन रिया होटल से चेकआउट कर रही थी, तभी फोन आया। ऋषभ की आवाज़ थी, अगर वक्त मिले तो कॉफी पी जाए। वही आवाज़ थी जो कभी उसकी धड़कनों का हिस्सा थी।

कैफे में मुलाकात हुई। खामोशी रही। फिर ऋषभ बोला कि वह उस वक्त गलत था। उसे लगता था कि शादी आज़ादी छीन लेती है। लेकिन अब समझ आया कि अगर सही इंसान के साथ हो, तो शादी सुकून देती है।

रिया की आंखें नम हो गईं। उसने कहा कि उसे लगता था सिर्फ प्यार काफी नहीं। लेकिन अब समझ आया कि अगर सच्चा हो, तो वही काफी है।

ऋषभ ने उसकी ओर देखा और कहा कि दस साल लगे यह समझने में कि बिना उसके कुछ भी पूरा नहीं। रिया ने हल्की मुस्कान दी और कहा कि उसे भी दस साल लगे यह मानने में कि जो अधूरा था, वह अब भी वहीं खड़ा है इंतजार में।

दिन बीतने लगे। ऋषभ बार-बार उसके आसपास दिखने लगा। कभी कॉल, कभी शाम की मुलाकात। एक दिन रिया ने पूछा कि क्या वह फिर से वही गलती कर रहा है। ऋषभ ने जवाब दिया कि इस बार गलती नहीं, किस्मत कर रही है सब कुछ।

धीरे-धीरे उनके बीच फिर वही जादू लौट आया। एक शाम इंडिया गेट के पास चलते हुए ऋषभ रुका और कहा कि याद है जब वह कहती थी कि जब तक वह शादी का प्रस्ताव नहीं देगा, भरोसा नहीं होगा कि वह सच्चा प्यार करता है।

रिया मुस्कुराई और बोली कि ऋषभ ने कहा था शादी उसकी चीज नहीं।

ऋषभ ने जेब से एक छोटी-सी रिंग निकाली और कहा कि शायद उस वक्त वह नासमझ था। लेकिन अब जान गया है कि बिना उसके वह अधूरा है। उसने पूछा कि क्या रिया उसे पूरा करेगी।

रिया की आंखों से आंसू बह निकले। उसने कांपते हाथों से रिंग थामी और कहा कि इस बार हाँ के अलावा कुछ नहीं कहेगी। ऋषभ ने धीरे से उसका हाथ थाम लिया और कहा कि अबकी बार न वक्त बदलेगा, न हालात, बस दोनों रहेंगे एक-दूसरे के साथ।

कुछ महीनों बाद शादी की हल्दी लगी। रिया पीली साड़ी में बैठी थी, चेहरे पर वही चमक जो सालों से खो गई थी। दोस्तों ने छेड़ा कि इतने साल लगे हाँ बोलने में। रिया मुस्कुरा कर बोली कि कभी-कभी देर इसलिए लगती है क्योंकि कहानी को सही वक्त चाहिए।

मंडप में जब दोनों सामने आए, तो ऋषभ ने हाथ थामते हुए कहा कि जब पहली बार मिला था, तब बस प्यार किया था। आज जब शादी कर रहा है, तब समझ आया कि प्यार को निभाने के लिए हिम्मत चाहिए और वह हिम्मत उसे रिया से मिली।

फेरे शुरू हुए। पंडित मंत्र पढ़ रहे थे। रिया की आंखें ऋषभ के चेहरे पर थीं। वही शख्स जो कभी ना कह कर चला गया था, आज हाँ के सात वचन ले रहा था। आखिरी फेरा पूरा होते ही ऋषभ ने उसके कान में कहा कि अब चाहे वक्त कितना भी बदले वह नहीं बदलेगा। रिया ने मुस्कुरा कर जवाब दिया कि वह कहीं नहीं जाएगी।

तालियां गूंजीं, शंख बजा, फूलों की बारिश के बीच दोनों मुस्कुरा रहे थे। दस साल की दूरी, दस साल की तन्हाई, दस साल की खामोशी सब मिट गई थी। अब कहानी अधूरी नहीं थी। वह पूरी हो गई थी हमेशा के लिए।

कभी-कभी वक्त हमें दूर करता है ताकि हम प्यार की असली कीमत समझ सकें। और जब वह कीमत समझ में आ जाती है, तो वही प्यार लौटकर जिंदगी बन जाता है।

राधिका शर्मा को प्रिंट मीडिया, प्रूफ रीडिंग और अनुवाद कार्यों में 15 वर्षों से अधिक का अनुभव है। हिंदी और अंग्रेज़ी भाषा पर अच्छी पकड़ रखती हैं। लेखन और पेंटिंग में गहरी रुचि है। लाइफस्टाइल, हेल्थ, कुकिंग, धर्म और महिला विषयों पर काम...