हर क्षेत्र में खुद को साबित किया (जयश्री सेठी )
मेहनत के दम पर जिदंगी में एक मकाम हासिल किया जा सकता है, मगर मनचाही ऊंचाईयों को छूना हर किसी के बस की बात नहीं। बतौर मीडिया प्रोफेशल हर पायदान पर खुद को साबित करते रहने का जुनून जिस पर सवार रहता था, वो कब एक स्टोरी टैलर बन गई। शायद वो खुद भी नहीं जान पाई। चाहे थिएटर हो, रेडियो हो, टीवी हो या फिर प्रिंट मीडिया, जयश्री सेठी ने हर क्षेत्र में खुद को साबित किया और आगे बढ़ती चली गई। एक के बाद एक कामयाबी मिलने के बाद भी जयश्री के आगे बढ़ने वाले कदम बार-बार रुक रहे थे, क्योंकि उनकी मंजिल तो कहीं और थी। कहते हैं, न शिद्दत से किसी काम को चाहो तो वो ज़रूर पूरा होता है। फिर क्या था, जयश्री ने साल 2012 में अपने दिल की सुनी और स्टोरीघर नाम की एक संस्था की शुरुआत की, जिसका मकसद कहानियों के ज़रिए बच्चों से जुड़ना था। अब जयश्री ने बच्चों को बड़े-बड़े इवेंटस के ज़रिए स्टोरी सुनाने का काम शुरू किया। बचपन से ही हर घटना में एक कहानी को तराशना तो उनकी पुरानी आदत थी। अपने इसी शौक को उन्होंने अपना पेशा बनाया और बच्चों को कहानियों के ज़रिए पढ़ाना शुरू कर दिया। जय श्री प्रोप्स, पपेट्स, प्रोजेक्टर और साउंड सिस्टम के साथ पूरा माहौल तैयार कर कहानियां सुनाती हैं। उन्हें अपने इस काम में अपने परिवार का भी पूरा साथ मिला। पूरे मन से कहानियां बुनने वाली जयश्री ने स्टोरी टैलिंग में पीएचडी भी की। उन्होंने असम, त्रिपुरा, हिमाचल प्रदेश, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, दिल्ली और हरियाणा में तकरीबन सात हज़ार से ज्यादा टीचर्स को ट्रेनिंग दी है। इसके अलावा हाशिए से जुड़े लोगों तक पहुंचने के लिए जयश्री सेठी ने 2018 में चेष्ठा केयर फाउनडेशन की स्थापना की। जो प्राथमिक शिक्षा के क्षेत्र में काम कर रही है और इस संस्था से हजारों नहीं बल्कि लाखों बच्चों को लाभ मिल रहा है। इतना ही नहीं साल 2015 में लोगों से ज्यादा से ज्यादा जुड़ने के लिए स्टोरी टॉकिज नाम की एक मोबाइल एप्लिकेशन भी लान्च की गई। काम के प्रति जयश्री का जुनून उनके द्वारा किए गए प्रयासों में साफ झलकता है। जीवन में आगे बढ़ना और दूसरों को खुद से जोड़ना यही उनकी जिंदगी का मकसद है।

जरूरतमंद लोगों के लिए रोशनी की किरण (डॉ. नीलम गुप्ता )
हमारे आसपास फैली समस्याओं के बारे में बात करना बेहद आसान है। मगर कुछ ही ऐसे चुनिंदा लोग हैं जो वाकई उन समस्याओं को, उन परेशानियों को दूर करने का सपना खुली आंखों में देखते हैं। नन्ही सी उम्र में ही जिसने अपने ईर्द-गिर्द फैली गरीबी को दूर करने का सपना देख लिया था और आगे चलकर गुरबत की जिंदगी गुज़ार रहे बेसहारा लोगों की लाठी बनने की ठानी थी, उस शख्सियत का नाम है- नीलम गुप्ता। ठंड से ठिठुर रही बच्ची को देखकर जिसने अपना स्वेटर उतारकर उसको पहनाया और फिर एक समाजसेवी इदारा खोलने का संकल्प नन्ही उम्र में ही मन ही मन ले लिया था, आज वो उस एनजीओ की बदैालत तकरीबन देश के 18 राज्यों में विभिन्न योजनाओं के तहत काम कर रहे हैं। दिल्ली से सटे नोएडा में स्थित आरोह फाउनडेशन नाम की समाजसेवी संस्था साल 2001 में अस्तित्व में आई। संस्था ने शुरुआती दिनों में 15 वालेंटियर्स की मदद से बच्चियों को पढ़ाने का काम शुरू किया था। फिर उसके बाद देखते ही देखते युवाओं के भविष्य को सुनहरा बनाने के लिए उन्हें वोकेशनल कोर्सिस कराए जाने लगे। इस मुहिम के तहत उनकी संस्था अब तक बीस हज़ार युवाओं को स्किल ट्रेनिंग दिला चुकी है, जिनमें से 75 फीसदी युवाओं को रोज़गार हासिल हो चुका है। इसके अलावा आरोह फाउनडेशन अन्य संगठनों के साथ मिलकर पर्यावरण सरंक्षण, स्वास्थ्य जांच कैम्प, स्मार्ट क्लासिस मॉडल विलेज, गांवों तक स्वच्छ जल पहुंचाना जैसे विभिन्न उद्देश्यों पर काम कर रही है। दिन-रात समाजसेवी कार्यों में जुटी इस संस्था ने हर उम्र के लोगों को उनकी ज़रूरत के हिसाब से मदद करने का पूरा प्रयास किया है। इस संस्था को पूरी निष्ठा से आगे बढ़ाती हुई डॉ. नीलम शर्मा का मकसद ज़रूरतमंद लोगों को उनकी मंजिल तक पहुंचाना है।

कहते हैं न जिन्हें थककर रूकना मंजूर नहीं, उनसे कोई भी मंजिल दूर नहीं (ऋचा अग्रवाल )
बचपन से ही कला के प्रति खास लगाव और स्नेह रखने वाली ऋचा बेहद मेहनती और एक सुलझी हुई शख्सियत है। जीवन के इस सफर में हर गृहलक्ष्मी की तरह उनकी जिंदगी में भी कई मोड़ और उतार-चढ़ाव आए, मगर कड़ी मेहनत और मज़बूत इरादों के दम पर वे हर चुनौती का बखूबी सामना करती रहीं और आगे बढ़ती गई। जानी-मानी कंपनी इमामी आर्ट एंड कोलकाता सेंटर फॉर क्रिएटीविटी में बतौर सीईओ का पद संभाल रहीं ऋचा अग्रवाल की पढ़ाई उटी में हुई, जिस कारण प्रकृति से उनका एक खास लगाव हो गया। ये लगाव अब धीरे-धीरे उनका शौंक बन गया, जिसके चलते उन्होंने अपनी मां से ऑयल पेंटिंग और अपनी चाची से तंजौर पेंटिग के गुर सीखे और उसका निरंतर अभ्यास भी किया। इसी तरह से कोयंबटूर में जन्मी ऋचा हर वक्त घर में ही भारतीय कला के हर प्रारूप से घिरी रहीं। चाहे क्ले मॉडलिंग हो या फिर सिलाई-कढ़ाई उन्होंने अपना समस्त बचपन कला के विभिन्न प्रारूपों में डूबों दिया। वो नहीं जानती थी कि कला और प्रकृति के प्रति उनकी रूचि ही उन्हें जिंदगी में एक खास मकाम तक ले जाएंगी। आज भी ऋचा का अधिकांश समय अपनी आर्ट गैलरीज़ में ही बीतता है, जहां वो हर वक्त काम में मसरूफ रहती हैं और कुछ नया करने की कोशिश में जुटी रहती हैं। मारवाड़ी परिवार से ताल्लुक रखने वाली ऋचा का विवाह 19 साल की कम आयु में हो गया, कम उम्र में विवाह होने के बावजूद भी उन्होंने परिवार की हर गतिविधि में पूरा सहयोग प्रदान किया और खुद को परिवार के अनुरूप ढ़ाल लिया। हमेशा से ही कुछ कर गुज़रने की चाहत रखने वाली ऋचा ने जब इमामी में बतौर प्रोफेशनल कदम रखा तो इस काम में उन्हें अपने पति और परिवार का पूरा सहयोग मिला, जो अब भी जारी है। उनके द्वारा की गई चित्रकारी और बनाई गई कलाकृतियों से काम के प्रति उनकी अटूट निष्ठा झलकती है। वो मार्डन आर्ट के साथ-साथ प्राचीन कला को भी प्रमुखता देती हैं। पुरानी रिवायतों को दर्शाती आर्ट गैलरीज़ को संजोने के पीछे ऋचा का मकसद लोगों को आर्ट और प्रदर्शन कला के ज़रिए उनके रीति-रिवाजों और विरासत से जोड़े रखना है। चाहे कोई त्योहार हो या इवेंट। उनका मानना है कि हमारे आसपास घटित होने वाली हर चीज़ में कला छिपी हुई है। पेंटिग्स के साथ-साथ परफॉरमिंग आर्ट और इवेंटस के ज़रिए भी वे बड़ी तादाद में लोगों को केसीसी से जोड़ने में प्रयासरत है। उनका मकसद केसीसी को इंटरनेश्नल लेवल तक पहुंचाना है। ऋचा का जीवन के प्रति एक बेहद सरल मंतरा है, वे मानती है कि जिंदगी में विफलता उतनी ही ज़रूरी है, जितना सफलता। अगर सफलता हमें ऊंचा मकाम दिलाती है तो विफलता हमें वहां तक पहुंचाने के लिए हमारे व्यक्तित्व का विकास करने में सहायक होती है।
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