रांग नम्बर कभी-कभी लोगों को जोड़ देता है तो कभी-कभी झगड़े की जड़ भी बन जाता है। ऐसे ही एक बार लगे रांग नम्बर पर एक मजेदार वार्तालाप…
Tag: कहानी
सब्जी का ठेला – गृहलक्ष्मी की कहानियां
कहानी प्रतियोगिता-
प्रिय पाठको, गृहलक्ष्मी के शब्दों से भरे भावभीने संसार को आपने दिया प्यार और सम्मान। आभारी हैं हम और अब बारी है हमारी। तो लीजिए, गृहलक्ष्मी जुटा लाई है आपके लिए एक अवसर अपनी छिपी प्रतिभा
बाहर लाने का, एक प्रभावपूर्ण कहानी के जरिए। कहानी का विषय कुछ भी हो, बस हो दिल छू लेने वाला और शालीन। शब्द संख्या 1000-1200 से ज्यादा न हो। रचना वापसी के लिए टिकट लगा लिफाफा साथ रखना न भूलें। कृपया अपनी कहानी की फोटोकापी संभालकर रखें। कहानी पर विचार करने पर लगभग 3 महीने का समय लगता है, अत: कहानी भेजने के 3 महीने बाद ही संपर्क करें। अगर आपकी
कहानी पुरस्कृत हो गई हो तो कृपया दुबारा न भेजें। याद रखें, अधिक शब्द संख्या वाली कहानियां नहीं चुनी जाएंगी।कॉन्टेस्ट में भाग लें और जीतें आकर्षक उपहार।
गृहलक्ष्मी की कहानियां – चल री सजनी
गृहलक्ष्मी की कहानियां – गूंजती ढोलक की थाप, हंसती-गाती-ठुमकती महिलाएं, शहनाई की स्वर-लहरियां आकाश को भेदती आतिशबाजी और सबसे निःस्पृह बैठी सुधा। एक क्षण के लिए भी किंचित हंसी उसके चेहरे पर नहीं आती है। फेरों का कार्यक्रम निपट गया। दूल्हा और बाराती भी जनवासे में चले गये। मां ने सुधा का पूजा वाले कमरे […]
गृहलक्ष्मी की कहानियां : एहसास
बीस साल की राधिका शहर में आने के बाद और आकर्षक लगने लगी थी। कुछ ही दिनों में उसका सौंदर्य निखर आया था। अत: रमेश का उसकी तरफ खिंचाव बढ़ रहा था।
गृहलक्ष्मी की कहानियां – लघु कथा: ‘बदला’
हिन्दी में कविता,कहानी, उपन्यास पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें – आप हमें फेसबुक और ट्विटर पर भी फॉलो कर सकते हैं।
आवरण – गृहलक्ष्मी की कहानियां
गृहलक्ष्मी की कहानियां – हफ्ते भर की मेहनत के बाद पूरा घर सेट हुआ था, बिजेन्द्र के आॅफिस जाते ही मैंने सोचा आज अदरक वाली गरमागरम चाय पीते हुए अपनी मनपसंद पत्रिकाएं पढूंगी, जो पिछले कई दिनों से नहीं पढ़ पा रही थी। तभी डोरबेल की आवाज सुनकर दरवाजा खोला तो सामने 4-5 महिलाएं खड़ी […]
गृहलक्ष्मी की कहानियां : सिमटते दायरे
क्या सोच रखा है मैंने गुड़िया के बारे में कि उसे उन्मुकतता से जीना सिखाऊंगी, उसे बांधूगी नहीं, कभी। लड़कों की तरह तो नहीं पर लड़कों से अलग ही बनाऊंगी, क्योंकि मैंने इस समाज को देखा था, सोचा था और समझा भी था, जहां पर कभी लड़के-लडकियां समान नहीं हो सकते थे…
गृहलक्ष्मी की कहानियां – क्योंकि सास भी कभी बहू थी
गृहलक्ष्मी की कहानियां – हां, विवाह के पिछले सीजन में मैं भी सास बन गई हूं। वैसे देखने में तो अपने चौबीस वर्षीय पुत्र की बड़ी बहिन ही लगती हूं, पर हां, मेरा पद अवश्य बढ़ गया है। अब बारी आ गई है, मेरे वो सभी कर्जे चुकाने की जो बहू बनने के बाद से […]
गृहलक्ष्मी की कहानियां : मेरी भी शादी करा दो
गृहलक्ष्मी की कहानियां : उसकी तैयारी देख बड़ी भाभी अक्सर चुटकी लेती। ‘‘ऐसा न हो कुमुद की इसी मंडप में कोई तुम्हें भी ब्याह कर ले जाए।” शादी के दिन तो दुल्हन से ज्यादा कुमुद ही मंच से लेकर मंडप तक छायी हुई थी। रंग-रूप ही नहीं अपने आकर्षक व्यक्तित्व और आधुनिक ढंग के मैचिंग […]
गृहलक्ष्मी की कहानियां : चक्रव्यूह में फंसी औरत
गृहलक्ष्मी की कहानियां : घर के छोटे से बगीचे में हरे भरे सुंदर फूलों के पौधे करीने से गमलों में लगे थे। मेन दरवाजे से अन्दर घुसते ही भगवान जी की एक सुंदर बड़ी सी मूर्ति स्थापित थी और मोगरा अगरबत्ती की खुशबू का झोंका यकायक सांसों को महकाने लगता। एक कोने की तिकोनी मेज […]
