गंगा नदी के किनारे एक बहुत बड़ा पेड़ था। इस पेड़ पर बहुत से पक्षी रहा करते थे। एक दिन एक बूढ़ा गिद्ध वहाँ आया और पक्षियों से बोला कि “क्या वह इस वृक्ष के खोल में रह सकता है।” सभी पक्षियों ने बूढ़े गिद्ध की आयु को देखते हुए, उसे वहाँ रहने की इजाजत दे दी। वे अपने हिस्से के भोजन में से भी कुछ भोजन उसे खाने को दे देते।
बूढ़े गिद्ध को बहुत अच्छा लगता था। वह मन ही मन सोचता- ये पक्षी कितने दयालु हैं। अतः जब वे अपने बच्चों के लिए भोजन की तलाश में जाया करेंगे, तो मैं पीछे से इनके बच्चों की रक्षा किया करूँगा। उस दिन के बाद से गिद्ध ने उनके बच्चों की रक्षा करनी शुरू कर दी। सभी मिल कर हँसी-खुशी रहने लगे।
एक दिन एक बिल्ली वहाँ से गुजरी। उसने उस पेड़ पर नन्हें पक्षियों के चहचहाने की आवाजें सुनी। उसने सोचा कि उसे यहाँ कुछ छोटे व ताजा पक्षियों के बच्चे खाने को मिल सकते हैं। उसे देखकर पक्षियों के नन्हें बच्चे डर के मारे जोर-जोर से चिल्लाने लगे। बूढ़ा गिद्ध चिल्लाया, “कौन है?”
बिल्ली ने सोचा कि यहाँ थोड़ी युक्ति से काम लेना पड़ेगा। वह बोली, ‘सुप्रभात श्रीमान! मैं बिल्ली हूँ।” बूढ़ा गिद्ध बोला, “यहाँ से चली जाओ, वरना मैं तुम्हें खा जाऊँगा।”
बिल्ली बहुत चालाक थी। वह बोली, “श्रीमान, मैं कुछ कहना चाहती हूँ। उसे सुन लें। फिर उसके बाद चाहें तो मुझे खा लेना।”
गिद्ध ने सोचा, क्यों न उसकी बात सुन ली जाए। बिल्ली बोली “मैं गंगा नदी के तट पर रहती हूँ। मैं बहुत ही धार्मिक विचार रखती हूँ। मैं गंगा नदी में स्नान करके आपका आशीर्वाद लेने आई हूँ।”
गिद्ध बोला, “मैं तुम पर कैसे विश्वास करूँ? तुम माँस खाने वाली प्राणी हो और यहाँ नन्हें-नन्हें पक्षी रहते हैं। जाओ, भाग जाओ यहाँ से।”
बिल्ली ने उत्तर दिया- “श्रीमान, मेरा विश्वास कीजिए। मैंने जानवरों का माँस खाना छोड़ दिया है। यहाँ गंगा नदी के किनारे चारों ओर हरियाली है और ढेर सारी हरी वनस्पति है। मैं केवल हरी सब्जियाँ और फल खा कर ही अपना पेट भरती हूँ।”
बूढ़ा गिद्ध उसकी बातों में आ गया। उसने उस पर दया खा कर वहाँ रहने की इजाजत दे दी। कुछ दिन तो सब कुछ सही सलामत चलता रहा किंतु बिल्ली अपने ऊपर काबू नहीं रख सकी। अतः उसने प्रतिदिन एक के बाद एक करके नन्हें पक्षियों को खाना शुरू कर दिया। बूढ़े गिद्ध को इसका पता नहीं चला।

बहुत जल्दी पक्षियों ने देखा कि उनके नन्हें बच्चों की संख्या कम होती जा रही है। उन्हें चिंता सताने लगी तथा वे उन्हें यहाँ-वहाँ ढूँढ़ने लगे। चालाक बिल्ली ने इस स्थिति को भाँप लिया
और सोचा कि अब वह पकड़ी जा सकती है। अतः वह वहाँ से भाग निकली।
अपने बच्चों को ढूंढते हुए जब पक्षी, बूढ़े गिद्ध के खोल के पास पहुंचे, तो उन्होंने वहाँ अपने बच्चों की हड्डियाँ पड़ी हुई देखीं। उन्होंने सोचा, इस बूढ़े गिद्ध ने ही हमारे बच्चों को मारा है। अतः वे गुस्से से भर गए और उन सबने मिल कर बूढ़े गिद्ध को मार डाला। बेचारे मासूम गिद्ध को अनजान बिल्ली पर विश्वास करके अपने प्राणों से हाथ धोना पड़ा।
शिक्षाः- कभी किसी अनजान पर भरोसा मत करो।
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