स्टोर रूम-गृहलक्ष्मी की कहानियां: Store Room Grehlakshmi Story
Store Room

Store Room Grehlakshmi Story: पड़ोसन को दीवाली की सफ़ाई करते देख मालती की हड़बड़ाहट भी बढ़ती जा रही थी।
“सबने सफाई शुरू कर दी मैं ही रह गयी हूँ। बाद में तो और काम बढ़ जाएगा। रिश्तेदार भी तो पूरे शहर में फैले हैं। दस पंद्रह दिन पहले ही आना शुरू कर देते हैं।”

मालती ने अपने बेटे, बेटी और पति को  इस रविवार सुबह जल्दी उठ कर  सफाई में उसकी मदद करने का फरमान सुना दिया।

शनिवार रात को मालती देर तक सोचती रही की सफाई की शुरुआत कहाँ से करे? साल भर बच्चों के कमरे से , अपने कमरे से और रसोई से जो भी फालतू सामान निकलता है वो सब स्टोर रूम में रख दिया जाता है ये सोचकर कि ‘इनका क्या करना है बाद में देखेंगे।’  ऐसे करते -करते स्टोर रूम में काफी ऐसा सामान था जो कभी प्रयोग नहीं हुआ बस सालो से जगह घेरे हुए था ।

मालती सोचे जा रही थी कि विनय कब से स्टडी रूम के लिए बोल रहा है। इतना बड़ा स्टोर रूम फालतू सामान से भरा पड़ा है तो कल उसी को खाली करके ,सफाई करके स्टडी रूम बना देंगे।
स्टोर रूम में कुछ सामान तो दुछत्ती में फेंक रखा था जो धूल की मोटी परतों से ढका हुआ था। और कुछ सामान काठ के बड़े -बड़े संदूकों में भर रखा था।

मालती ने तड़के ही पति और बेटे की मदद से एक- एक करके सारा सामान बरामदे में इकट्ठा करवा दिया।
स्टोर रूम खाली हुआ तो मालती लंबी सांस लेते हुए वहाँ सफाई करने लगी।
तभी प्रियंका दौड़ती हुई मालती के पास आई,

“अरे मम्मा देखो सन्दूक में ये मिले सॉफ्ट टॉयज। इनसे मैं खेलती थी न बचपन में। कितने प्यारे हैं ,इनको धोकर मैं अपने रूम में सजाऊँगी। ”  कहते हुए प्रियंका सारे टॉयज अपने कमरे में रख आई। और फिर से बरामदे की तरफ दौड़ती हुई गयी और पुराने सामान के ढेर में अपना बचपन तलाशने लगी।

“ओह्ह माय गॉड !! मेरे स्केट्स, पापा देखो जब मैं फोर्थ में था तब के हैं।”

विनय ने स्केट्स अपने सीने से ऐसे लगाये मानो किसी प्रेमी को बिछड़ी हुई प्रेमिका मिल गयी हो , क्योंकि वो जानता था पापा रात नौ बजे ऑफिस टूर से थके हारे घर वापस आये थे । विनय की अगले दिन से स्केट्स ट्रेनिंग शुरू होनी थी तो पापा ने जूते भी नहीं उतारे थे तुरंत बाज़ार जाकर पहले विनय को स्केट्स दिलाये।
विनय भी स्केट्स कमरे में रखकर दौड़ता हुआ वापस सामान के ढेर के पास पहुँच गया।
थोड़ी ही देर में मालती के पति को भी कुछ खास मिल गया  और वो उसे थामे हुए अपने कमरे की तरफ चल दिये।

“क्यों लाये इसे अंदर?”

“अरे तो फेंक देंगे क्या? कितनी यादें जुड़ी हैं इसके साथ। पता है तुमको, पूरे मोहल्ले में उस वक़्त सिर्फ़ हमारा टी वी ही हुआ करता था।  आस -पड़ोस के सब लोग देखने आते थे। और माँ चौधराइन बनी पूरा घमंड दर्शाती हुई इठलाती थी। दो टांगे ही तो टूट गयी , जुड़वा कर इसे बैठक में माँ बाऊजी की याद में सजा देते हैं।” कहते हुए मालती के पति  चार टाँगों वाले पुराने टी वी पर अपना दुलार लुटाते हुए सफ़ाई में लग गए । उनकी आँखों मे उभर  आई  चमक ऐसे प्रतीत हो रही थी मानो वर्षो बाद माँ बाऊजी ही मिल गए हों।

मालती बच्चों के कमरे के पास से गुजरी तो देखा
दोनों ने  पुराने सामानों से  बचपन की यादों को चुन -चुन कर  फैला रखा था और अपने बचपन को याद कर खुश हो रहे थे ।

“देख ये प्लास्टिक  का फ़ोन …इसमें बटन दबाने से गाना बजता था..चल छइंयां छइयाँ छइंयाँ छइयाँ चल……और ये पिंक कलर का बार्बी स्कूल बैग , पता है!  मुझे बस पिंक कलर ही चाहिए होता था…हैं न मम्मी? ये किचन सेट देख , मम्मी से सब्जी मांगकर छोटे -छोटे बर्तन में डालकर बनाने की एक्टिंग करती थी। रख लेते हैं , इंस्टा स्टोरी में डालेंगे।”

“ये देख!! मेरे नन्हू से बॉक्सिंग ग्लव्स , कितने क्यूट हैं। जब मैं बहुत छोटा था तब पापा ने दिलाये थे। जब मेरे  बच्चे हो जाएंगे तब उनको दिखाऊंगा….हा… हा…. हा…।”

बच्चों को बचपन की यादों में गोता खाते हुए देख मालती के चेहरे में मुस्कराहट फैल जाती है।

मालती भी बरामदे में संदूक खोलकर बैठ गयी। ये सोचकर कि जितना हो सकेगा आज फालतू सामान बाहर कर देगी। एक -एक करके सामान निकालना शुरू कर दिया। थके हुए चेहरे में अनायास ही मुस्कराहट छाने लगी। बहुत कुछ बीता हुआ याद आने लगा।

क्रोशिया के बने कितने ही टेबल क्लॉथ, टी कौजी ,टी वी कवर अभी भी खूबसूरत लग रहे थे।  रंग बिरंगे धागों से कढ़ी हुई कितनी ही बेड शीट सालों से एक ही तह में दबी पड़ी थी।
जिन्हें कभी अपनी अड़ोस-पड़ोस की सखियों के साथ धूप में बैठकर बनाये थे । सिर्फ़ धागों को ही नहीं गूंथा था बल्कि धागों के साथ हजारों मनोभावों को भी गूंथा था।

मशीन से बना लुभाने वाला सामान बाजार में क्या आया, ये ओल्ड फैशन बनकर संदूकों में कैद होते चले गए।

मालती छोटे- छोटे ऊनी मौजे, स्वेटर ,टोपियां, पोतड़े, झबले  सब उठाकर चूमते हुए अपने सीने से लगाती है। ये पहले दिन का, ये एक महीने का सब सम्भाल कर रखें हैं।
“जब मेरे बच्चों के बच्चे होंगे तो सबसे पहले अपने मम्मी पापा के बचपन के कपडे ही तो पहनेंगे।” मन में बुदबुदाते हुए वापस संभाल कर रख देती है।

तभी मालती ने देखा कि उसके पति दो टूटी हुई फोल्डिंग कुर्सी ढेर में से उठाकर साइड में रख देते हैं।

“टूट रखी हैं । क्या करोगे इनका ?”

” ठीक करवाकर बरामदे में रखवा दूंगा यहाँ बैठने के काम आएंगी । पता है कब ली थी? जब हमारी नई-नई गृहस्थी शुरू हुई थी।”

“तुम्हारे हाथ में क्या है मालती ?”

” तुम्हारा दिया पहला उपहार  बनारसी साड़ी। जब तुम शादी के तुरंत बाद ऑफिस के टूर से बनारस गए थे तब लाए थे ।”

“लाओ कमरे में रख आता हूँ। शाम को पहन कर दिखाना। गजरा ले आऊँगा, उस दिन की तरह ही। “

मालती को शरारती अंदाज में छेड़ ही रहे थे उसके पति कि तभी बेटी ने हाथ से साड़ी खींच ली।

“वाओ मम्मा , ये आजकल दुबारा फैशन में है। आपको पता है पुरानी साड़ियों से बहुत कुछ यूनिक सा बन जाता है। और भी निकाल कर देदो। मैं इसको पहनकर देखती हूँ ।”

मालती और उसके पति बेटी को देखकर हँसने लगे।

पुराने सामानों के ढेर में से कोई अपने बचपन की   तो कोई अपनी जवानी के दिनों की सैर कर आया। किसी को अपने बिछड़े याद आये तो किसी को अपने गुजरे जमाने। ये वस्तुएं होती तो निर्जीव हैं, परंतु  जिस प्यार और अपनेपन से हम उन्हें घर लाते हैं या बनाते हैं वो प्यार उन्हें हमेशा सजीव रखता है , इसीलिए तो कितने पुराने भी क्यों न हों उस दौर की यादों में डूबे रहते हैं  , जिन्हें देखते ही ये मन मस्तिष्क यादों के अथाह समंदर  में  डुबकी लगाने लगता है और पीछे छूट  आये उस दौर  को  भले ही थोड़ी देर के लिए , जीने लगता है।

मालती के स्टोर रूम में भी वर्षो से कुछ अनकहे  और खूबसूरत  भाव छिपे हुए थे जो आज   न सिर्फ उजागर हुए बल्कि उतने ही प्यार और सम्मान से पूरे घर में बिखर गए  और  एक बार फिर चाहते हुए भी स्टोर रूम खाली न हो सका।