hiranapur ka gandhi
hiranapur ka gandhi

जमींदार बाबू गंगासहाय, हरखू दादा और सब गाँव वालों से विदा लेकर मैं और परमेश्वरी बाबू हिरनापुर के शहीद मेले से लौट रहे थे, तो ‘मोहना की जय…हिरनापुर के अमर शहीद मोहना की जय…!’ के नारे हमारा पीछा कर रहे थे।

“मोहना तो गाँव का सीधा-सादा भोला युवक था। पर उसमें गाँधी जी समा गए थे। इसीलिए तो वह अंग्रेजी अत्याचार से कभी नहीं घबराया और अपनी जोशीली बातों से आसपास के सारे गाँव वालों को जगा दिया।…राजेश्वर, वह समय ही ऐसा था। गाँधी एक नहीं रहा। जिस तरह कृष्ण के अनेक रूप थे, गाँधी के भी जैसे अनेक रूप हो गए। हर गाँव, शहर का एक गाँधी… मोहना भी हिरनापुर का गाँधी ही था!”

“हिरनापुर का गाँधी…!” मेरे होंठों पर शब्द काँप रहे थे, और मन में तुन-तुन-तुन इकतारे का संगीत गूँज रहा था, जो सुन-सुन-सुन कहकर शायद फिर से मोहना की कहानी छेड़ रहा था।

ये उपन्यास ‘बच्चों के 7 रोचक उपन्यास’ किताब से ली गई है, इसकी और उपन्यास पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर जाएंBachchon Ke Saat Rochak Upanyaas (बच्चों के 7 रोचक उपन्यास)