Hindi Love Story: बादलों से झूमते आसमान का लुत्फ़ लेते, दो-दो पेग हमने आज स्कूटी पर चलते-चलते ही लगा लिए थे। जैसे हम पर शराब, वैसे फ़लक पर घटायें। आज हम सौ किलोमीटर से ज़्यादा घूम चुके थे, शहर की नई बसाहट और बाहर की ओर। मस्ती से घूमना, चिपकना, चूमना।
“थोड़ा जल्दी चलो। कबूतरियों का दड़बे में घुसने का टाइम हो गया।” उसने देखा कि, साढ़े छः हो चुके थे और सात तक उसे हर हाल में हॉस्टल पहुँच जाना है।
“गलत रोड पकड़ लिया ना आज, इस समय ट्रैफिक ज़्यादा ही मिलता है इधर। पाँच-सात मिनट देर हो सकती है, क्या फ़र्क पड़ जाएगा इतने टाइम में?” मुझे वैसे भी उसके हॉस्टल टाइम से चिढ़ है, जिसकी वजह से मैं अपनी ज़िंदगी के हसीन हो सकने वाले लम्हें गवाँता फिरा हूँ।
“वार्डेन को जानते हो ना, कितनी बड़ी डायन है। आजकल ज़्यादा ही स्ट्रीक्ट है। एक मिनट की भी देर हुई तो पेरेन्ट्स से मेल आने के बाद ही घुसने देगी हॉस्टल में।” उसकी परेशान आवाज़ से भी मुझे नफ़रत है।
“तुम लोग एडल्ट हो या बच्चे, जो अब भी पेरेन्ट्स का मेल चाहिए?” मैंने कहा।
“ये सब जाने दो, पहले ऐसा हुआ था तब भाई से दस मिन्नतें करके मेल कराई; जबकी वह छोटा है मेरे से। पापा से कहती हूँ तो बोलते हैं बेटा ध्यान रखाकर टाइम का, तब तो लाइफ़ में डिसीप्लीन सीखोगे। इन लोगों को बस लड़कियों को परेशान करना है।”
थोड़ा रुक कर उसने फिर कहा -“एक्चुली लड़कियाँ करती भी तो गज़ब-गज़ब कांड हैं। पिछले हफ़्ते दो लड़कियाँ घर से तो निकली हॉस्टल जाने को, पर दो दिन बाद पहुँची। बात खुल गई कि, वो अपने बॉयफ्रेण्ड्स के साथ किसी रिसॉर्ट में थीं। यहाँ अटेन्डेन्स हो जाने के बाद तो ये अपने नियम चला लें, पर घर से कब निकले, कब आ रहे हैं इसकी कोई मॉनिटरिंग नहीं थी इनके पास। अब पैरेन्ट्स को हॉस्टल से जाने-आने की पूरी टाईमिंग का मेल जाता है और आजकल नया शौक़ चढ़ा है मैडम को, कभी भी मोबाइल माँगकर चेक करने लगती हैं।”
“तो पैरेन्ट्स को बोलना चाहिए ना।” इस दर्जे की ग़ुलामी पर मुझे गुस्सा आया।
“वो क्यूँ बोलेंगे, उनको तो अच्छा है ये स्ट्रीक्ट रहें और होस्टलर्स रूल्स-रेगुलेशन फॉलों करें। बल्कि पैरेन्ट्स तो ऐसे हॉस्टल ज़्यादा पसंद करते हैं।”
“वाह! सुपर्ब…तुम लड़कियाँ कभी बड़ी होगी या नहीं? भाई, पापा फिर पति। और ये तो इंडियन लॉ के ख़िलाफ़ भी है।”
“यहाँ इनके अपने लॉ चलते हैं, जब मर्ज़ी कुछ भी बना लो, जब मर्ज़ी कुछ भी बदल दो। थोड़ी ज़िद करनी पड़ेगी, पर इस बार घर जाऊंगी तो पापा के मेल का पासवर्ड लूँगी, फिर इतनी टेन्शन नहीं रहेगी।” मुझे उसकी समझ पर फ़ख्र हुआ कि उसने चोरी का लाज़िमी रास्ता निकाल लिया था।
मैंने देखा, दस मिनट का टाइम और है। हिसाब बिठाया कि, हम तब तक आराम से पहुँच जाएँगे। उससे कहा- “पहुँच जाएंगे टाइम से, टेन्शन मत लो।”
“रश्मी और सुरभी पहुँच गईं। डिनर का पार्सल भी ले आई हैं।” उसने मैसेज देखते हुए, आरामदायक आवाज़ में कहा।
“ठंडा खाने वाली कबूतरियों।” मैंने चिढ़ाया।
“ज़्यादा मत बोलो ना, गरम खाने वाले कबूतर।” उसने भी बदला लिया।
मुझे फुल स्वींग मस्ती चढ़ी। मैंने कहा- “देख लेना, कभी कोई कबूतरी अगर टाइम से ना पहुँच पाए और हॉस्टल से निकाल दी जाए, तो उन्हें हेल्प के लिए मेरा नम्बर दे सकती हो।”
“तुम्हारा मर्डर ना कर दूँ?” उसने मेरी कमर से हाथ हटाकर मेरी गर्दन को अपनी दोनों हथेलियों से घेरते हुए कहा।
“मोहतरमा, बुरे समय में किसी के काम आना, ऐसा कौन सा बुरा काम है; जिसके लिए आपने सज़ा-ए-मौत मुक़र्रर की है?” मैंने हँसते हुए कहा।
“सुनो, अच्छाई के देवता। किसी दिन मुझमें यह अच्छाई जाग गई ना, तो सोच लेना कैसे नागराज लोटेंगे तुम्हारी छाती पर…” बराबरी की दुर्जनता उसकी ज़बान पर उग आई।
“माफ़ कर दीजिए माता जी। मैं अबोध बच्चा, यह बात मासूमियत के बहकावे में कह गया…” मैंने गंभीर रहने की नाकाम कोशिश की।
उसने गरदन से हथेलियाँ हटाकर, गाल थपथपाते हुए कहा-“ओ…हो…मेरे प्यारे मासूम बच्चे; जल्दी आ गई समझदारी…”
मैंने शिकारी जानवर की तरह झपटा मारा और उसकी दो उँगलियाँ मेरे दाँतो की चपेट में आ गईं।
ये कहानी ‘हंड्रेड डेट्स ‘ किताब से ली गई है, इसकी और कहानी पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर जाएं – Hundred dates (हंड्रेड डेट्स)
