Hundred Dates
Hundred Dates

Hindi Love Story: आज उसे ड्राइव पर ले जाते ज़बान और पाँव, दोनों काँप रहे थे। आधे घंटे की चैट से दस मिनट मिलने को राजी हुई। मुझे पता था, आज की मुलाक़ात अदालती माहौल में होनी है।

“सॉरी यार, कल बहुत ज़्यादा हो गई थी।” मैं अच्छी तरह जानता था कि, मैं क़सूरवार हूँ।

“एक मिनट का कॉल या मैसेज करने का भी तुम्हारे पास टाइम नहीं था? कम से कम मेरे मैसेज देखकर एक रिप्लाई ही कर दिया होता कि आज बात नहीं होगी, बिजी हो। मैं परेशान होती रही दो बजे रात तक, लेकिन तुम्हें क्या फ़र्क पड़ता है।” जब उसने कहा तो मैंने ख़ुद को उसकी जगह पर रख कर भी देखा; कभी-कभी यह ऐब मुझे बहुत सताता है।

“मुझे टाइम का पता ही नहीं चला न। इतने दिनों बाद बचपन का ग्रुप मिला था। कितना पीया, कैसे घर पहुँचा, मुझे कुछ भी याद नहीं।” मैंने सच ही कहा।

“बता तो सकते थे ना?”

“हम शाम सात बजे से ही बैठे हुए थे। मुझे लगा था अपनी बात होने के टाइम तक वापस तो पहुँच ही जाऊँगा। लेकिन उसके बाद होश ही नहीं रहा।” आज भी तो शाम हुई जा रही थी, लेकिन थोड़ा हैंगओवर बाकी ही था।

“घर पहुँच गए थे, यह याद है? या रात भी कहाँ और किसके साथ बिताई, यह भी याद नहीं?”

“तुम शक कर रही हो मुझ पर?” मुझे पता है, वह मुझ पर शक नहीं करती; पर बात इतने में ख़त्म कर देना पर्याप्त सज़ा भी तो नहीं थी।

“ऑन लाइन भी तो दिखे थे तुम, बारह के आस-पास। तब भी तुमने ना मेरे मैसेज देखे, ना बताया कि बाहर हो।”

“मुझे याद नहीं…शायद तुम्हीं को इनफॉर्म करने के लिए ऑनलाइन आया होऊँगा और भूल गया होऊँगा।”

“तुम मुझे ही भूल गए हो। मैं ऐसा कर देती, तो सोचो मेरा क्या हाल करते।” कल से तो यही सोच-सोच कर शर्मसार हो रहा था।

“हाँ ना बाबा। मैं समझ रहा हूँ। मेरी गलती है। नशे में इतना क्या डूबना कि सब कुछ भूल जाओ। आज भी; अभी शाम से तो कुछ ठीक लगा है, दिन भर ऐसे ही पड़ा रहा। मुँह सूख रहा था और चलने-फिरने की भी हिम्मत नहीं हो रही थी।” वाह रे मेरी बेचारगी।

“दोस्तों के पास क्यूँ नहीं चले जाते, एनर्जी मिल जाएगी। मुझे बात ही नहीं करनी तुमसे।”

मैं समझ चुका था कि अब सज़ा के लिए मुझे तैयार रहना चाहिए। थोड़ी देर की शांति के बाद मैंने कहा- “सॉरी ना यार। प्लीज़। अब ऐसा ना हो पूरी कोशिश करूँगा।”

उसने कुछ भी नहीं कहा। उसकी कॉलोनी भी आ गई थी। वह गेट के सामने उतरी और बगैर मेरी ओर देखे सीधे कदमों से चली गई।

थोड़ी दूर ही गया था कि, मेरी बेचैनी बढ़ने लगी। मैंने एक किनारे कार खड़ी की, सिगरेट सुलगाई और उसे मैसेज किया- ‘तुम्ही मेरा सुकून हो।’

उसने मैसेज देखा, पर रिप्लाई नहीं किया। अपनी गलती की सज़ा, आकुलता स्वीकार करते हुए; घर पहुँच कर उसे किए जाने वाले मैसेज का खाका बुनने लगा।

यूँ मेरी समझ ने दस्तक दे दी थी; वह मुझे छोड़ पाती, तो आज थोड़ी देर के लिए भी आने वाली नहीं थी।