थाने में दरोगा और दो सिपाही थे। भीड़ को देखकर उन्होंने मोरचा सँभाल लिया।
दरोगा के हाथ में बंदूक, सिपाही मोटे-मोटे डंडों से लैस।…पर भीड़ के जोश का उन्हें अंदाज नहीं था। जब एक साथ सैकड़ों लोग थाने में घुसे, जिनमें औरतें और बच्चे सबसे आगे थे, तो सिपाहियों के साथ-साथ दरोगा की भी सिट्टी-पिट्टी गुम।
हजारों की भीड़ ने दरोगा को पकड़ लिया और देखते ही देखते उसे रस्सियों से जकड़ दिया। यही हाल उन दोनों सिपाहियों का भी हुआ। भीड़ में छोटे-छोटे बच्चे भी थे, पर किसी की आँखों में खौफ नहीं। स्त्रियाँ तो जुलूस में सबसे आगे थीं ही।
इसके बाद शान से तिरंगा लहराया गया। सबने मिलकर ‘विजयी विश्व तिरंगा प्यारा’ गीत के बोल दोहराए। ‘वंदेमातरम्’ के नारों से हवाएँ गूँज उठीं।
कुछ देर बाद मोहना ने इशारा किया तो सब लौट पड़े। चलते-चलते हिरनापुर गाँव के एक जोशीले नौजवान अशर्फी ने रस्सियों से बँधे दरोगा की ओर देखकर कहा, “मोहना काका, यह तुम्हें नदी में फेंकने की बात कह रहा था न। अब हम इसे नदी में फेंकते हैं…!”
सुनकर मोहना ने समझाया, “नहीं अशर्फी भाई, मत मारो। गाँधी जी का रास्ता तो अहिंसा का रास्ता है।…बल्कि मैं तो कहता हूँ, तिरंगा फहराने हम आए थे, वह हमने फहरा लिया। अब इनके भी बंधन खोल देते हैं, फिर भले ही ये हम पर गोलियाँ चलाएँ!…”
“ठीक है, इनके बंधन खोलेंगे, मोहन काका, पर अभी नहीं, कल। रात भर ये ऐसे ही पड़े रहें, तो अपने पाप तो इन्हें याद आएँगे।…आखिर कैसी निर्दयता से निहत्थी जनता पर गोलियाँ चलाते हैं ये लोग?” अशर्फी बोला तो गाँव वालों ने भी हाँ में हाँ मिला दी।
अब मोहना क्या कहता?
सब लौट आए।…
पर सुबह गाँव वाले दरोगा और सिपाहियों की रस्सियाँ खोलने आएँ, इसकी जरूरत ही नहीं पड़ी। रात में गश्ती पर गया थाने का सिपाही लौटा तो थाने की हालत देखकर सकते में आ गया। उसने दरोगा और सिपाहियों की रस्सियाँ खोलीं।
फौरन बनारस शहर के बड़े थाने में रिपोर्ट की गई। बड़ी संख्या में सिपाही आ गए। हिरनापुर में देखते ही देखते हर ओर खाकी वर्दी की गश्त और धर-पकड़। अंग्रेज इस विद्रोह को कुचल देना चाहते थे। सो सबसे पहले मोहना पकड़ा गया, फिर और लोग।
अकेले दो दर्जन लोग मोहना को हथकड़ी पहना, उसके चारों ओर ऐसे सतर्क होकर खड़े थे, जैसे वह कोई खूँखार अपराधी हो, और अभी-अभी हथकड़ी तोड़कर हवा में घुल जाएगा। वायरलेस से बड़े-बड़े अफसरों को बताया जा रहा था, “मोहना गिरफ्तार हो गया…जी हाँ, गिरफ्तार…!”
यह सारा तमाशा देख, मोहना हँसकर बोला, “अगर आप लोग कहते, तो मैं तो वैसे ही थाने में आकर गिरफ्तारी दे देता। इतनी तकलीफ आपने क्यों की…?”
पर उसे गिरफ्तार करने वाले सिपाहियों की आँखों में एक अजीब सी हिंस्र चमक थी। जैसे कह रहे हों, “बस, अब आखिरी बार हँस लो मोहना, क्योंकि अब तुम जेल से छूटकर कभी नहीं आ सकोगे।”
हिरनापुर गाँव का वह ऐतिहासिक दिन था। कोई आधे गाँव की गिरफ्तारी हुई थी, जिनमें गाँव की स्त्रियाँ भी थीं। सब ओर दुख और गुस्से की लहर।
बाकी लोग तो कुछ अरसे बाद छूट गए, पर मोहना…? वह कहाँ गया… उसका क्या हुआ? किसी को पता नहीं।
ये उपन्यास ‘बच्चों के 7 रोचक उपन्यास’ किताब से ली गई है, इसकी और उपन्यास पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर जाएं – Bachchon Ke Saat Rochak Upanyaas (बच्चों के 7 रोचक उपन्यास)
