gandhi aaya re
gandhi aaya re

एक दिन मोहना नदी किनारे बच्चों से बात कर रहा था। बच्चे उसके नन्हे सैनिक थे। उन्हें वह समझा रहा था, कैसे गाँधी बाबा के संदेश को दूर-दूर तक पहुँचाना है।

बीच में बच्चों के कहने पर उसने गीत का यही जोशीला सुर छेड़ दिया, “गाँधी आया रे….आया रे, गाँधी आया रे…!”

मोहना गा रहा था तो घोड़े पर जा रहे दरोगा खुदाबख्श ने भी सुना। वह झपटकर वहाँ पहुँचा। गुस्से से लाल-लाल आँखें दिखाकर बोला, “मोहना, क्या बोल रहा है? कुछ होश भी है? यहाँ अंग्रेज बहादुर की सरकार है। खबरदार…! वरना काटकर इसी नदी में डाल देंगे, तो पता भी नहीं चलेगा…!”

इस पर मोहना बिना डरे, प्यार से हँसकर बोला, “बहुत जिंदगी जी ली, दरोगा जी, और जीकर क्या करना…? अब तो देश के लिए जीना, देश के लिए मरना है। आप भी दिल की कर लो और फेंक दो नदी में, ताकि आपको तसल्ली हो जाए।”

“अच्छा, बहुत बनने लगा है। समझ रहा होगा, मैं बड़ा नेता बन गया हूँ।” कहकर दरोगा खुदाबख्श ने आव देखा न ताव, तड़ातड़ एक के बाद एक तीन बेंत मोहना की पीठ पर जड़ दिए।

मोहना सारा दर्द पी गया, मुँह से एक आह तक नहीं।

इतने में आसपास खड़े बच्चे भी दौड़कर आ गए। मोहना के चारों ओर दीवार बनाकर खड़े हो गए। कहा कुछ नहीं, पर उनकी आँखें कह रही थीं, “पहले हमें मारो, बाद में मोहना काका को हाथ लगाना।”

तीन बेंत खाकर भी मोहना पर कोई असर नहीं पड़ा था। बोला, “दरोगा साहब, बेंत से क्या होगा…? जिसके दिल में निर्भयता है, उस पर तो बंदूक की गोली का भी असर नहीं होता। यही तो समझाया है गाँधी बाबा ने।…मेरी मानो तो भैया, उतार दो यह गुलामी की वर्दी और भारत माता की पुकार सुनो।…गाँधी तो फरिश्ता बनकर आया है, उसके पीछे चलोगे तो तुम भी गुलामी का जुआ उतार फेंकोगे। भारत माता के सच्चे पूत बन जाओगे।…”

इस पर फिर से दरोगा ने बेंत चलाने चाहे, पर बच्चे मोहना को घेरे खड़े थे। आखिर चलते-चलते उसने मोहना के सिर पर जोर से बेंत मारा और बुरी तरह धक्का मारकर झाड़ियों में गिरा दिया। फिर घोड़े पर बैठ, यह जा और वह जा।

घायल मोहना खूनमखून। सिर से खून का फव्वारा फूट पड़ा था। काँटेदार जंगली झाड़ियों में गिरकर उसका सारा शरीर भी बुरी तरह छिल गया था।

बच्चे दुखी थे। उसी समय गाँव वालों को बताने दौड़ पड़े।

सुनते ही सबके खून में उबाल आ गया, “ऐसे सीधे-सादे निरीह आदमी को मारा दरोगा खुदाबख्श ने? राच्छस है, पूरा राच्छस…!”

इसके तीसरे रोज ही एक खबर आई, गाँधी जी पकड़े गए। जवाहरलाल नेहरू, पटेल, डा. राजेंद्रप्रसाद, सभी। साथ ही कांग्रेस के सारे छोटे-बड़े नेता भी, जिन्हें देश में जगह-जगह जाकर अलख जगाना था। अंग्रेज सरकार भारत छोड़ो आंदोलन को कुचल देना चाहती है।…

इतना सुनना था कि लोगों के दिलों में विद्रोह की आग उमड़ पड़ी। “कैसी जालिम सरकार है यह….! भारतवासियों को इसने क्या समझा है, क्या गाजर-मूली…?”

मोहना सिर पर पट्टी बाँधे हुए ही लोगों के बीच पहुँच गया। उसके दिल से जैसे वीरता का मारू गान फूट पड़ा। बोला, “दरोगा खुदाबख्श में इतनी अकड़ इसलिए है, क्योंकि वह समझता है कि अंग्रेज इस देश से कभी नहीं जाएँगे। जैसे ही उसे समझ में आएगा कि जनता जाग उठी है और सुराज आने वाला है, उसकी वर्दी की अकड़ ढीली हो जाएगी।”

देखते ही देखते सैकड़ों लोग इकट्ठे हो गए। हिरनापुर के अलावा आसपास के गाँवों के लोग भी थे। मोहना ललकार उठा, “भाइयो, अगर हिम्मत है तो चलो।…हम थाने पर तिरंगा लहराकर दरोगा खुदाबख्श को जनता का संदेश दें कि अब आजादी दूर नहीं है। फिरंगी भागेगा और सुराज आएगा।…”

“हाँ-हाँ, चलो, थाने पर तिरंगा फहराएँगे…!” एक साथ सैकड़ों कंठों से स्वर फूट पड़ा। उनमें मर्द, औरतें, बच्चे सब थे।

“फिरंगी भागेगा और सुराज आएगा।…” बच्चों ने इतने जोर का नारा लगाया कि आसपास के पेड़, पौधे और हवाएँ भी थरथरा उठीं।

अगले ही पल दिशा-दिशा में उसकी गूँज उठी, “फिरंगी भागेगा और सुराज आएगा।…फिरंगी भागेगा और सुराज आएगा।…”

छोटे-बड़े सब मिलकर अब बोल रहे थे, “फिरंगी भागेगा और सुराज आएगा।…फिरंगी भागेगा और सुराज आएगा।…”

सबके दिलों में मचलती आँधी भी यही कह रही थी—

फिरंगी भागेगा और सुराज आएगा,

फिरंगी भागेगा और सुराज आएगा।…

फिरंगी भागेगा…फिरंगी भागेगा…फिरंगी भागेगा…!

हिरनापुर से थोड़ी दूर थाना था। लोग जोश में नारे लगाते हुए चल पड़े। किसी के पास लाठी, किसी के पास डंडा। एक नौजवान के हाथ में लंबा सा बाँस और तिरंगा भी था। एकाध ने ऊपर चढ़ने के लिए बड़ी सी रस्सी भी ले ली।

सबके होंठों पर बस, एक ही बात, “थाने पर तिरंगा फहराएँगे…! दरोगा को बताएँगे कि अब जनता जाग गई है!”

‘भारत माता की जय’, ‘गाँधी बाबा की जय’ और ‘वंदेमातरम्’ के नारे लगाता हुआ मोहना सबसे आगे चल रहा था।

स्त्रियों और बच्चों का उत्साह भी कुछ कम न था। एक ही आँधी सबके दिलों में धधक रही थी कि कुछ करना है, कुछ करना है, कुछ कर गुजरना है…!

आज वह पुण्य वेला आ गई थी, जब उन्हें साबित करना था कि वे भारत माता के सच्चे सपूत और बेटियाँ हैं…

ये उपन्यास ‘बच्चों के 7 रोचक उपन्यास’ किताब से ली गई है, इसकी और उपन्यास पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर जाएंBachchon Ke Saat Rochak Upanyaas (बच्चों के 7 रोचक उपन्यास)