Hindi Love Story: छोटे शहर के हम जैसे लोग, किसी बड़े शहर में कुछ काम से भी गए हों और किसी वजह से दिन भर कोई काम नहीं होने वाला हो; तो मन कभी-कभी वर्जित मस्तियों की ओर झुकने लगता है। एक दोस्त को कॉल किया जिसका इस शहर में अक्सर आना-जाना रहता है। सोचा; दिन को कुछ काम का बना सकूँ, कहीं घूम फिर सकूँ। दोस्त, जिसका व्यक्तित्व ही योनिनुमा है और वैसी ही उसने सलाह दी कि वह नम्बर भेज रहा है, किसी लड़की को बुलाकर ‘क्वालिटी टाइम’ स्पैण्ड कर ले। इन्द्र के शाप का किस्सा याद कर, इस दोस्त के लिए चिन्ता में पड़ जाता हूँ; कहीं वैसे कांड इस दुनिया के सच हुआ करते तो!
शाम होते-होते मैंने उस एजेन्ट के नम्बर पर वाट्सअप कर ही दिया। उसने मेरी सामान्य इन्फॉर्मेशन लेते हुए मुझे पन्द्रह-बीस लड़कियों की फोटो भेज दी कि, मैं उनमें से अपनी पसंद की लड़की बुला सकूँ। मैंने दो घंटे के लिए सौदा तय किया और एक लड़की की फोटो पसंद कर उसे होटल के सामने भेजने को कहा। मैंने तय किया कि मुझे कमरे में नहीं, बाहर ही इसके साथ ‘क्वालिटी टाइम’ स्पैण्ड करना है।
मैंने देखा, फोटो की तरह ही वह ख़ूबसूरत और लिपा-पोती से भी भरपूर थी। लॉन्ग स्कर्ट और हाई हील की मैचिंग सैण्डल्स, एक्सेसरीज़; वह हर तरह से बाज़ार की लेटेस्ट प्रॉडक्ट लग रही थी। उसके पास पहुँचते ही लेडिज़ परफ्यूम की मस्त सुगन्ध ने मन और भी ख़ुश कर दिया।
“आप ही बात कर रही हैं मुझसे?” मैंने मोबाइल पर और सामने दोनों ही कहा।
“हाँ, आर यू देयर?” उसने उंगली मेरी ओर की और हमने अपने फोन कट कर अपनी जेबों में रख लिए।
“चलें?” उसने कहा।
“हाँ, मैंने कैब बुला ली थी। आती ही होगी।”
“पर आपने तो यहीं का एड्रेस दिया था।”
“हाँ, पर हम कहीं और चलते हैं।” मैंने जानबूझकर, सोची-समझी मुस्कान बिखेरी कि, वह थोड़ा कम्फर्ट महसूस करे।
“ठीक है। मुझे कोई दिक्क़त नहीं, पर आपका टाइम दो घंटे का ही है, इस टाइम में ही आपको मुझे यहाँ वापस छोड़ना होगा वरना चार्जेस, पर ऑर के हिसाब से लगेगा।” मंझे हुए सौदाग़र की तरह उसने समतल शब्दों में कहा।
“ओके। कोई बात नहीं। देर होगी तो एक्सट्रा ले लेना।” जब पैसे गलाने ही निकले हैं; तो क्या थोड़े कम, क्या थोड़े ज़्यादा।
कैब आई और थोड़ी ही देर में मैं उसके साथ एक पब के सामने खड़ा था।
“यहाँ रूम है आपका?” उसने कहा। हालाँकि रास्ता पाँच मिनट का ही था, पर इन पाँच मिनटों में ना उसने कुछ कहा ना मैंने; पर उसके परफ्यूम का लुत्फ़ पूरे रास्ते मैंने उठाया।
“अरे नहीं, चलो पहले कुछ खाते-पीते हैं फिर रूम की सोचेंगे।”
मुझे लगा नहीं कि, वह पहले किसी पब में आई होगी। पहनावे और मेकअप में ज़रूर आधुनिक थी। मैंने एंट्री फीस दी और दोनों के हाथों में स्टॉम्प लगाते हुए बाउन्सर्स ने हमें अंदर का रास्ता दिखाया।
माहौल और पब वह बहुत ही ध्यान से देख रही थी, ख़ुशी उसके चेहरे पर थी।
“वॉव…मस्त है ये तो।” उसने मेरे कान से मुँह सटाते हुए कहा, क्योंकि अब म्यूज़िक की तेज़ आवाज़ में आसानी से बात कर पाना मुमकिन था नहीं।
मैंने देखा, कुछ लड़के-लड़कियाँ डॉन्सिंग फ्लोर पर पूरी मस्ती से नाच रहे थे और कुछ अपनी टेबलों पर ही मस्त थे। पैर उसके भी थिरकने लगे थे। चारों तरफ़ एक नज़र डालते हुए मैंने बैठने की जगह ढूँढी। म्यूज़िक की कम आवाज़ और अलग ग्लास पार्टिशन में, एक कोने की टेबल। इस पॉर्टिशन का इन्टीरियर कुछ असली और कुछ नकली पेड़ पौधों से भरा हुआ था। तीन ओर लकड़ी की दीवारें और कारपेट लगा हुआ फ़र्श शायद कुछ अतिरिक्त आवाज़ें सोख लेने के लिए था। हर टेबल से डांसिंग फ्लोर देखा जा सकता था, जिससे मस्ती का सिलसिला कम ना हो।
“क्या लेंगी आप?” मैंने बैठते हुए पूछा।
“कुछ भी।”
“बीयर मँगा लूँ?” एंट्री के साथ मिले कूपन्स से चार बीयर आ सकती थी, मैंने मेन्यू पर नज़र मारते हिसाब लगा लिया था।
“हाँ, मुझे पसंद है।” उसका चेहरा खिल गया था।
उसने दो और मैंने तीन बीयर पी, चिकन टिक्का के साथ। अब वह मुझसे खुल कर बातें कर रही थी। उसने बताया कि उसका जो नाम मुझे बताया गया है, वह गलत है, उसने अपने घर-परिवार, बच्चे, ससुराल की परेशानियों के बारे में बताया। वह उत्तर प्रदेश में कहीं की रहने वाली थी। उसे देखकर यह कोई भी कह नहीं सकता था कि, वह एक बच्चे की माँ भी हो सकती है। उसने बताया कि वह जॉब के बहाने यहाँ रहती है और घर में किसी को भी पता नहीं कि, उसका असल काम क्या है।
जब हम बाहर निकले, दो घंटे हो चुके थे।
“जाओ, अब तो आपका टाइम ख़त्म हो गया।” मैंने कहा।
“भाड़ में जाए टाइम। मैं किसी की बांदी नहीं।” उसने किसी को कॉल करके कहा कि वह काम ख़त्म करके घर निकल गई है, आज और काम नहीं होगा।
“अब चलें रूम में?” उसने मुझसे मुस्कुराते और अपने हाथ मेरे हाथों में डालते हुए कहा।
“रूम में क्या करेंगे यार, यहीं बैठते हैं। इतना ज़ोरदार मौसम है।” इस बीच हम टहलते हुए थोड़ा आगे निकल आए थे, जहाँ साफ़ फुटपाथ के किनारे आर.सी.सी बेंच लगी हुई थीं। मैंने आते समय ही इस जगह को नोटिस में ले लिया था, कि उसे छोड़ने के बाद थोड़ी देर यहाँ बैठा जा सकता है और सिगरेट के साथ ग़ज़लों का मज़ा लिया जा सकता है।
मैंने उसकी ओर देखा तो यह तय पाया कि, बीयर का थोड़ा असर उसके दिमाग और थोड़ा आँखों पर भी है। इतनी सी देर में उसकी ख़ूबसूरती और भी बढ़ गई थी। मैंने बैठते हुए सिगरेट जलाई और एक उसकी ओर बढ़ा दी। वह मुझसे सट कर बैठ गई।
“मैं आपको पसंद नहीं आई?” उसने कश छोड़ते हुए कहा। बिस्तर के लिए उसका रिजेक्शन शायद उसकी समझ में नहीं आ रहा था।
“क्यों नहीं आओगी। अच्छी हो।” मैंने उसके चेहरे पर कश छोड़ने की बदतमीजी की।
“तो रूम क्यों नहीं लेके जाते? उसके लिए पैसे दिए हैं आपने। टाइम की चिंता मत करिए कुछ एक्स्ट्रा भी नहीं लगेगा, मैंने दल्ले को बोल दिया है कि काम ख़त्म हो गया।” उसने अपनी सोच के मुताबिक, मेहरबानी का सलूक किया।
“अरे नहीं। मैंने तुम्हें उस काम के लिए नहीं बुलाया था। मैं अकेला था, तो सोचा किसी के साथ अच्छा टाइम बिताने को मिल जाएगा।” मैं ख़ुश था।
वह इत्मिनान से सिगरेट पीती रही। बारिश से पहले की हवाएँ और बीच-बीच में आती उसकी थोड़ी ख़ुशबू। एक दिलकश शाम इसे ना कहा जाए तो किसे?
“आपसे कितने पैसे लिए उसने?” उसने मेरे कंधो की ओर झुकते हुए पूछा।
“छः हज़ार।”
“ओह…इतने तो मैं रखी नहीं हूँ, तीन हज़ार ही हैं मेरे पास। ये आप वापस ले लो, मेरे को इतने ही मिलने थे उसमें।” अफ़सोस उसकी शक्ल पर ज़ाहिर था।
“अरे! कोई बात नहीं। आप रखिए। वापस क्यों करना है आपको?”
“नहीं, मैं नहीं रखूँगी। आपके साथ मुझे बहुत अच्छा लगा और लगा ही नहीं कि आपने मुझे ख़रीदा है। अब कभी आप आएँ तो सीधे मुझे कॉल कीजिएगा। मैं आ जाऊँगी।” उसने मेरी जेब में ज़बरदस्ती पैसे डाले और फुटपाथ पर खड़े होकर एक टैक्सी वाले को रुकने के लिए तेज़ आवाज़ लगाई। नशे में मीना नक़वी भी चढ़ आयीं-
ये औरतों में तवायफ तो ढूँढ लेती हैं
तवाइफ़ों में इन्हें औरतें नहीं मिलतीं।
“कभी मन हो…तो आपको कॉल कर सकती हूँ? आपको कोई दिक्क़त तो नहीं होगी? मैं अपने दूसरे पर्सनल नम्बर से करूँगी, वो वाला तो फ़र्ज़ी है।” टैक्सी वाला आ चुका था और उसे वह ‘एक मिनट भईया’ कह कर पीछे पलटी और मेरे पास आकर उसने कहा।
“हाँ, कोई दिक्क़त नहीं।” मैंने मुस्कुराते हुए कहा। वह भी मुस्कुराई और बॉय में हाथ हिलाते चली गई।
मुज़फ़्फ़र वारसी साहब, जगजीत सिंह की आवाज़ में दिल पर सुकून उड़ेलने लगे-
“मेरी ज़िंदगी किसी और की, मेरे नाम का कोई और है
मेरा अक्स है सर-ए-आइना, पस-ए-आइना कोई और है…”
स्ट्रीट लाइट के उजाले में धुएँ से बन रही अस्पष्ट बनावटों में कुछ तलाश पाने की नाकाम कोशिशें भी शायद ‘पस-ए-आइना’ देख पाने की ज़ोर-आज़माइशें ही थीं।
ये कहानी ‘हंड्रेड डेट्स ‘ किताब से ली गई है, इसकी और कहानी पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर जाएं – Hundred dates (हंड्रेड डेट्स)
