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भारत कथा माला

उन अनाम वैरागी-मिरासी व भांड नाम से जाने जाने वाले लोक गायकों, घुमक्कड़  साधुओं  और हमारे समाज परिवार के अनेक पुरखों को जिनकी बदौलत ये अनमोल कथाएँ पीढ़ी दर पीढ़ी होती हुई हम तक पहुँची हैं

वो आहिस्ते-आहिस्ते एक-एक कदम ऑफिस की सीढ़ियों से संभलकर उतर रहा था। नीचे उतरने के बाद उसने लंबी साँस ली। उसे अब मन मस्तिष्क पर का बहुत सारा दबाव उतर जाने का एहसास हुआ। उसके दिल के ठोके की गति धीमी होते जा रही थी।

ऑफिस कंपाउंड के बाहर आने पर उसे कुछ अच्छा लगने लगा। मन आनंददायी हल्का-सा होने से उसे अच्छा लगने लगा था।

अब वो धीरे-धीरे चलने लगा।

साहब को अपना इस्तीफा सौंपकर तुरंत बाहर निकल पड़ा था। औरों को अनदेखा कर वह वैसे ही बाहर आया था।

उसके दिमाग में भरा भला-बुरा बाहर आता तो बड़ा बखेडा खड़ा हो जाता, लेकिन उसने सब दबा रखा था क्योंकि उसका अंत कैसा और क्या होता, यह बता नहीं सकता था। शायद मारामारी हो जाती, यहां उसने संयम से काम लिया, उसका निर्णय भी संयम से ही लिया गया था।

सुबह का दस सवा दस का समय होगा. अपना थैला संभालकर प्रकाश रास्ते से चल रहा था। कागज, फाइल, टिफिन बॉक्स, कुछ अन्य कागज उसमें ठस-ठस कर भरे थे। थैले का सामने का हिस्सा गला दबाये जैसा दिख रहा था. हाथ से गिरने की संभावना होने के कारण वह उसे अपने शरीर से लिपटाकर चल रहा था।

गली कूचे से रास्ता निकालकर वह मेन रोड पर पंहुचा। थैला वैसे ही समेटा हुआ था, आखिर ऑफिस के गेट पर पहुंचा। पेडों के बीचोबीच तहसील कृषि अधिकारी नामक बोर्ड कवेलू के मकान पर लगा था। लेकिन एक बाजू की दीवार ढह जाने से ऑफिस की दुर्दशा छिप नहीं पा रही थी।

आज ऑफिस के सामने बड़ी भीड़ दिखाई दे रही थी। भीड़ में ऑफिस कर्मी ज्यादातर दिखाई दे रहे थे।

इनमें धोती, पायजामा, सर पर टोपी पहने देहाती लोगों की संख्या बड़ी थी।

“साहेब “आवाज दूर से प्रकाश को सुनाई दी , आवाज का रुख उसी की ओर था।

“नमस्कार हो भालेराव साहेब! नमस्कार! “पायजामा पहना हुआ वह प्रकाश को हाथ हिलाकर नमस्कार कर रहा था।

“नमस्कार” प्रकाश ने भी उन्हें नमस्कार किया। और मन ही मन में बोला, अब इसका क्या है, पता नहीं? वह आवाज देने वाले के पास पहुंचा।

यह उन्नीस-बीस का होगा, थोडा भोला-भाला, अल्हड-किशोर लड़का और इसे बिना सायास सरकारी सर्विस मिल गई थी।’ बहुत खुशनसीब है’ ऐसा यह लोग कहते हैं। उसे साहब जैसा मिजाज-ठाठ-बाट भले ही न जमता हो लेकिन उनके लिए वह साहब था।

वह इधर-उधर की बातें होने के पश्चात वह बोला- “पाटिल चाचा, क्या काम निकला हमारे तरफ?” प्रकाश को उनसे जानकारी लेनी थी। इसीलिए उसने उन्हें अस्पष्ट-सा सवाल किया, बाद में उसके सीधा पूछने पर पाटिल ने कहा, “आपसे ही काम है साहब “कान का परदा फाड़ने वाली गाड़ियों की हॉर्न की आवाजें और बाजू के वेल्डिंग की दुकान से मशीन की आने वाली कर्ण-कर्कश आवाजों से प्रकाश को ठीक से सुनाई नहीं दिया। फिर भी हरदम की आदत से उसने क्या कहा, ये अंदाज किया, “बोलिए क्या सेवा कर सकता हूँ आपकी? “इस पर पाटिल ने कहा, “सेवा की बात करते हो साब, आप तो हमें मिलते तक नहीं। इसलिए हम डायरेक्ट मिलने ही पहुँच गए!” पाटिल ने अपनी तिरछी हुई टोपी को सीधा किया और प्रकाश को बातों की कैची में पकड़ा।

“पाटिल चाचा कही गल्लत कर रहे हो, मिलते नहीं यैसा कैसे कहते हो, मैं सबेरे से आपकी पंचायत में बैठा था। वहां बहुत सारे लोग मुझे मिले, इतना ही नहीं, सरपंच साहब की मुलाकात हुई।”

प्रकाश अचरज में पड़ गया, मिलते नहीं यार क्या हुआ, अब तक वह वहीं था, उसकी फिल्ड ड्यूटी थी, लेकिन यही बात पाटिल प्रकाश के वरिष्ठ अफसर को बता देता तो इसकी खटिया खड़ी हो जाती। क्योंकि ग्राम वासियों के मसले सुनना-सुलझाना उसके काम का एक हिस्सा था।

“यही घोड़ा घास खाता है साहेब, आप सिर्फ पंचायत ऑफिस और सरपंच के आगे-पीछे घुमते हो, हम गरीब कहाँ तुमे दिखाए देते? आपका काम सिर्फ ऑफिस में बैठकर काम करना नहीं, खेतों में जाकर पंचनामा, देख-रेख करना है साब। इस तरह पंचायत विपक्ष पार्टी के पाटिल ने प्रकाश को फैसले पर लिया।” यह क्या बात हुई पाटिल, आप तो मुझ पर सीधा इल्जाम लगा रहे हो, आज तक किन-किन लोगों के मेरी वजह से काम नहीं हुए बताइए “प्रकाश को पाटिल का इस तरह से कहना चुभने लगा था। उसने पाटिल को सीधा कहा, “पाटिल तुम्हारी राजनीति तुम संभालो, हमें उसमें मत घसीटो। गांव की राजनीति अपने गांव में खेलो, हमारा उससे कुछ लेना-देना नहीं। अपने काम की बात करो बस। “प्रकाश के इस तीखे वक्तव्य पर पाटिल बोले, “साहेब, आपने गत दिनो में खेतों के पंचनामे किए, उनमें हमारा जिक्र ही नहीं किया, हमारे खेतों मे दुबारा आ के देखो- “यह कहने लगा। अच्छा था की खेतों का पंचनामा करते समय हरदम की तरह प्रकाश ने गवाहदार के तौर पर सरपंच, तलाठी, ग्रामसेवक, पोलिस पाटिल और कोतवाल इन्हें उपस्थित रखकर किये गए थे। यह रिपोर्ट हेड ऑफिस भेज भी दी गई। अब इसमें कुछ हेरा-फेरी की गुंजाइश नहीं। इस तरह पाटिल को प्रकाश समझाता रहा लेकिन वह उसे मानने के लिए तैयार नहीं हो रहा था। वहाँ बैठे लोगों ने उसे बताया कि पाटिल बड़े साहब को मिलकर भी आया। प्रकाश को लगा इसने यह टेप साहब के सामने बजाई होगी। उसने पाटिल को चाय लेने की गुजारिश की लेकिन उसने नकार दिया। उसने भी ज्यादा मिन्नतवारी नहीं की और वह अपने ऑफिस के नियत काम में लग गया।

चार, आठ दिन बाद…। प्रकाश अपने दफ्तर में हरदम की तरह काम में व्यस्त था। नरेगा स्कीम में फलबाग का प्रस्ताव। केंचुआ खाद यूनिट प्रस्ताव, नेडेप कंपोस्ट खाद प्रस्ताव इस तरह के काम में वह व्यस्त था। सारे कास्तकार के प्रस्ताव मंजूरी के लिए मेन ऑफिस को भेजने की जिम्मेदारी उसकी थी। उसका यह दफ्तरी हर दिन का रूटीन था।

तालुका कृषि अधिकारी ऑफिस का चपरासी डाक लेकर पंहुचा। बहुत सारी अर्जियाँ, शोकाज नोटिस थे। लेकिन प्रकाश की नजर एक पत्र पर रुक गयी। जिस पर दस-बारह हस्ताक्षर किए दिखाई दे रहे थे। उसमें के बहुत सारे नाम जाने-पहचाने से थे।

वह लोग वही थे जो एक सप्ताह पहले उसे मिलने आये थे। उन्होंने ही उसकी कंप्लेंट की थी।

“हमारे गाव के खेती के पंचनामे झूठे होकर वह सब वसीलेबाजी से किये गए हैं। हमारे नाम जानबूझकर निकाले गए हैं।” ऐसा कुछ उस पर लिखा हुआ था।

यह पढ़कर प्रकाश अस्वस्थ होने लगा। उसका सिर भारी पड़ने लगा। जिन-जिन लोगों ने अर्जी की थी, उनके खेत की फसल को कतई नुकसान नहीं हुआ था। फिर हमारे पंचनामा में कैसे नुकसान दर्ज करना संभव था। अब बड़े साहब के मन में दोबारा पंचनामा करवाने की आशंका पैदा हुई। वह इसी विचारचक्र में लीन हो गया। “साहब ने बुलाया है” -चपरासी बोला। तब वह हडबडा कर जागा और मीटिंग में पंहुचा।

“उन लोगों ने अर्जी की है, एक बार खेतों के पंचनामे कर लो प्रकाश। तुम्हारे लेवल पर छुट-फुट नुकसान दिखा दो। उनके बढ़त और अन्तिम पंचनामा रिपोर्ट बनाओ। आगे क्या करने का, बाद में देखेंगे?” बड़े साहब बोले।

मीटिंग में प्रकाश ने प्रतिकार नहीं किया। दुबारा पंचनामा करने का नियम नहीं था। बाद में वह साहब को मिला।

“आओ प्रकाश, बैठो”

“साहब उनका कुछ भी नुकसान न होते हुए……”

“उनका दिमाग क्या चकरा गया है।”

“साहब मुझे बाकि मालूम नहीं, मैंने सब-कुछ कानून के हिसाब से किया है।”

“ऐसा कौन-सा कानून लगाया आपने? थोडा लोगों को समझा करो, ये सब मेरे गाँव के किसान हैं। दिखा दो थोडा-थोडा बाधित क्षेत्र। मैं जबसे तुम्हें यही बता रहा हूँ।”

“साहब यह राइटिंग में दीजिए।”

“मुझे राइटिंग में ऑर्डर मांगता है तुम, अरे मेरा मुँह बोला हर शब्द ऑर्डर होता हैं। चल निकल, जितना बताया उतना करना।

‘किन्तु’

“किन्तु नहीं और कुछ नहीं। मेरे साइन से सैलरी लेते हो। मुझे पढ़ाते हो। अब बोलना मत।

बड़े साहब से चल रहे उसकी विवाद की तरफ पूरे ऑफिस का ध्यान लगा था।

केबिन के बाहर आने पर वह सोचने लगा, अपना प्रोबेशन पीरियड चल रहा हैं, नौकरी जारी रखने के लिए सी.आर. अच्छा होना जरुरी है, वह साहब के हाथ में है। उस पर अपनी सर्विस निर्भर है।

प्रकाश ‘भालेराव’ यह अपने नाव ने दगा दिया। अपनी जाति आड़े आ गयी। पहले ही साहब के मन में जाति रूपी जहर की ज्वाला पनप रही थी। उसकी तपिश प्रकाश को लग रही थी।

प्रकाश का प्रतिरोध लुप्त हो गया था। अब तक वह समझ चुका था, अर्जी लिखवाने के पीछे कौन था? उसने दोबारा पंचनामा किसानों के खेतों जाकर किया। रिपोर्ट भी सबमिट किया। कुछ माह बाद नुकसान सहायता राशि प्राप्त हुई। वह सब किसानों के बैंक खातों में जमा हो गयी।

उसके कुछ दिनों बाद जिलाधिकारी ऑफिस से एक खत आया, जिसमें लिखा था, ‘आपको दुबारा बढत पंचनामा करने का अधिकार किसने दिया? ऐसा करके शासन की राशि का गलत उपयोग हुआ है। इसके लिए आप को जिम्मेवार पकड़ कर यह राशि आपसे वसूल क्यों न की जाये? उसका तुरन्त खुलासा कीजिए।’ यह पढ़कर वह हक्का-बक्का हो गया। उसे ग्लानि आने लगी। थोड़ी देर जाने के बाद वह साहब से मिला। अब साहब कुछ सुनने को तैयार नहीं थे। उल्टा उन्होंने उसे केबिन के बाहर का रास्ता दिखाया। अब उसे यह नौकरी करने की इच्छा ही नहीं रही थी। नहीं होना यह झूठमूठ का पंचनामा, झूठ को सच कहना और आफत आयी तो अपने ही सर लेना। इससे बेहतर है अपनी खेती। ना किसी का ऑर्डर, ना किसी की दो बातें सुनना, न ही कोई झंझट?।

‘नहीं बस, अब नहीं रहना यहाँ’ उसने ठान लिया, इस्तीफा लिखा और केबिन पहुंचकर साहब के हाथ सौंपा। साहब ने पढ़कर उसे समझाया।

“यह क्या कर रहे हो” जल्दबाजी में मत आओ। लोगो को सर्विस नहीं मिलती। तुम्हें पछताना पड़ेगा। थोडा ठंडे दिमाग से सोचो।

“यह मेरी कोई जल्दबाजी नहीं और न पागलपन। यह मुझे इसके पहले करना था। देर से क्यूं ना सही, मैं सयाना हो गया हूँ।”

“देखो एक बार और सोचो”

“नहीं साहब मेरा लिया निर्णय सही हैं”

“ठीक है, आपको किससे कोई तकलीफ, कोई शिकायत”

“नहीं साहब, तकलीफ कैसी होगी, यहाँ सब देवता समान लोग हैं, “ऐसा कहकर ऑफिस के बहार निकला पडा।”

अब प्रकाश आजाद हो गया था। उसे आजाद पंछी के सामान मुक्त होने का एहसास होने लगा था। अब उसपर किसी का बंधन न था, न किसी का डर। अब वह पूरे जोर-शोर से स्पर्धा परीक्षा और बैंकिंग की परीक्षा तैयारी में जुट गया था।

और जल्द ही उसकी जिद और दीर्घ प्रयत्न के कारण उसी तालुका प्लेस पर राष्ट्रीयकृत बैंक में कृषि अधिकारी के पद पर नियुक्त हुआ।

आज उसके टेबल पर इक फाइल पड़ी थी दस्तखत के लिए …

यह फाइल उसका दस्तखत होते ही, मंजूर या नामंजूर होने वाली थी। और उस किसान को कर्जा मिलने का मार्ग सरल होना था।

फलबाग, पोलिहॉउस, फेंसिंग इन कामों के लिए सब्सिडी के प्रस्ताव की फाइल चपरासी ने प्रकाश के टेबल पर रखी थी। इस प्रस्ताव पर सिर्फ उसका दस्तखत बाकी था। फाइल के ऊपर लिखा नाम पढ़कर वह दंग रह गया। वह फाइल उसके पहले के साहब की थी। यह फाइल वही साहब की थी जिसके दस्तखत से प्रकाश की सैलरी निकलती थी। आज उसकी फाइल प्रकाश के दस्तखत के लिए उसके सामने पड़ी थी। उस साहब को अपने दस्तखत का बड़ा घमंड था। इगो था।

भारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा ‘भारत कथा मालाभारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा ‘भारत कथा माला’ का अद्भुत प्रकाशन।’