mohna kaka ki sabha
mohna kaka ki sabha

और फिर काशी भाई के जाने के बाद मोहना ने भी वही रास्ता चुन लिया।

जगह-जगह पद-यात्राएँ। गाँव-गाँव में जागरण। वह सीधे-सादे शब्दों में गाँधी जी का संदेश लोगों के सामने रखता। कहता—

“देखो भाइयो, गाँधी बाबा ने सारी दुनिया को रोशनी दिखा दी। तो वह रोशनी भला हिरनापुर में क्यों न आए?…मैं तो जी, अज्ञानी था। काशी भाई ने अपनी बातों से मेरे दिल में चाँदना कर दिया। गाँधी बाबा की बातों का सत मुझे समझ में आ गया। वही आपको समझाता हूँ। इससे देश जागेगा, हिरनापुर भी जागेगा। बच्चा-बच्चा जागेगा। हर जगह देशप्रेम की आँधी उठेगी, तो फिरंगी उसके आगे तिनके की तरह उड़ जाएगा।…”

मोहना की बातों से लोग बँध जाते। सबका दिल उमगने लगता। तो वह फिर से याद दिलाता—

“मेरे प्यारे भाइयो, मेरी बातों पर यकीन करना।…इसलिए कि ये मेरी नहीं, गाँधी बाबा की बातें हैं। वे तो सत्य और अहिंसा के अवतार हैं। मैं तो बस, उनकी बातें ही दोहरा रहा हूँ…!”

मोहना की सीधी-सादी बातें लोगों के दिल में घर कर लेतीं। जैसा मीठा सुर उसके इकतारे के संगीत में, ऐसी ही मिठास उसकी बातों में थी। वे दिल से दिल को जोड़ने वाली बातें थीं। इसलिए जहाँ भी वह जाता, दर्जनों लोग जुट जाते।

सभा से पहले बच्चे दूर-दूर तक ढिंढोरा पीट देते, “सब लोग जल्दी आओ, जल्दी!…मोहना काका की सभा होने वाली है।…वे स्वदेशी की बात बताएँगे, गाँधी बाबा की बात बताएँगे…!” और आसपास की स्त्रियाँ, पुरुष, बच्चे सब दौड़ पड़ते।

मोहना उनका अपना मोहना था। पर वे देख रहे थे, उस मोहना में गाँधी का तेज उतर रहा था। वह बोलता तो उसकी आँखों में एक नूर होता। वह लोगों के दिलों में उतर जाता।

गाँव के बुजुर्ग और औरतें उस पर ममत्व वारतीं। जवान उसके कंधे से कंधा मिलाकर चलते और बच्चे उसकी सेना के सबसे बड़े सिपाही बन गए।

अब तो हर रोज सुराजी उसके पास आते और कहते, “गाँधी बाबा ने संदेश भिजवाया है।…” देखते ही देखते गाँधी जी का वह संदेश आसपास के सभी गाँवों में पहुँच जाता। गाँवों के लोग अनपढ़ थे, पर बातों का मर्म समझने में उनसे कोई भूल नहीं होती थी।

फिर एक दिन सारे देश में सन् बयालीस के आंदोलन की लहर पहुँची तो भला हिरनापुर में वह क्यों न पहुँचती? काशी भाई ने गाँधी जी के ‘करो या मरो’ का संदेश मोहना तक भी पहुँचाया। उन्होंने चिट्ठी में लिखा—

“मोहना, मेरा प्यार भरा आशीष। उम्मीद है, काम में जुटे होगे।…बड़ा ही चुनौती भरा समय सामने आ गया है, मोहना। यह करो या मरो का समय है।…बस, मोहना, बस, यही हमारी और तुम्हारी परीक्षा है। जीते तो समझो देश की आजादी को कोई रोक नहीं सकता, मरे तो देश के काम आएँगे। इन अंग्रेजों ने बहुत अत्याचार किए हैं। धरती कराह रही है, बेड़ियों में जकड़ी भारत माता आँसू बहा रही है…और उम्मीद भरी नजरों से हमारी ओर देख रही है। यह माँ के आँसू पोंछने का समय है…!”

“…यह माँ के आँसू पोंछने का समय है।…भारत माँ उम्मीद भरी नजरों से हमारी ओर देख रही है, गुलामी के जुए को उतार फेंको…!” मोहना ने काशी भाई की चिट्ठी का मर्म गुना, और हर ओर एक लहर सी फैला दी।

हवाओं में भी जैसे वही पुकार समा गई थी, “आजादी, आजादी, सुराज…! यह जीने या मरने का समय है…! जननी पुकार रही है…! भारत माँ पुकार रही है…! कब तक सोते रहोगे, मेरे भाइयो? बहनो, तुम भी उठो और देशवासियों के कंधे से कंधा मिलाकर चल पड़ो…! सब मिलकर सामने आ जाएँ तो मुट्ठी भर अंग्रेज क्या करेंगे…?”

मोहना में सचमुच गाँधी जी उतर आए थे। लोगों पर उसकी बातों का गहरा असर होता। जहाँ भी चार लोग इकट्ठे होते, मोहना अपने इकतारे का सुर छेड़ देता और फिर देखते ही देखते वहाँ चारों ओर सिर ही सिर दिखाई देते। मोहना गाता तो उसे कुछ होश न रहता—

गाँधी आया रे….आया रे,

गाँधी आया रे!

सोता देश जगाने गाँधी आया रे,

लेकर नए तराने गाँधी आया रे,

बड़ा अँधेरा, बड़ा अँधेरा है भाई,

उसको दूर भगाने गाँधी आया रे…!!

और मोहना के साथ-साथ हवाएँ भी गाने लगतीं, “गाँधी आया रे….आया रे, गाँधी आया रे! सोता देश जगाने गाँधी आया रे…!”

ये उपन्यास ‘बच्चों के 7 रोचक उपन्यास’ किताब से ली गई है, इसकी और उपन्यास पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर जाएंBachchon Ke Saat Rochak Upanyaas (बच्चों के 7 रोचक उपन्यास)