Hindi Motivational Story: इंटरमीडिएट का रिजल्ट आया था। परीक्षा में पास बच्चे अपने माता-पिता, भाई-बहनों से खुशियाँ बाँट रहे थे। एक दूसरे को मिठाई खिला रहे थे। अपने रिश्तदारों को फोन कर खुशियों का इजहार कर रहे थे।
दिव्या भी परीक्षा में पास हुई थी। गाँव में सर्वाधिक नंबर उसके आए थे। उसने भी अपनी माँ से अपनी खुशियाँ व्यक्त की। माँ और बेटी दोनों की आँखों से सजल हो गईं।
माँ के साथ खुशियों को बाँटने के बाद दिव्या ने अपने बाबू को खुशखबरी सुनाई -“बाबू, बाबू…….. पता है, मैं फर्स्ट डिवीजन से पास हुई हूँ। पूरे गाँव में सबसे ज्यादा मेरे नंबर हैं। तीन विषयों में डिस्टिंक्शन है।”
उसके बाबू दिनेश बाहर से तो खुश थे किंतु अंदर से बहुत उहापोह का अनुभव कर रहे थे। वे दिव्या की आगे की पढ़ाई को लेकर चिंतित थे। वे उसे आगे पढ़ाना चाहते थे, लेकिन मजबूरी यह थी कि वह पढ़ने जाएगी तो घर का काम कौन करेगा?
गाँव के सभी बच्चे स्नातक में प्रवेश के लिए रजिस्ट्रेशन कराने पास के कस्बे में जा रहे थे। दिव्या भी सुबह से घर के काम निपटाने में लगी थी। आज वह एक घण्टे पहले जगी थी जिससे घर का काम पूरा कर रजिस्ट्रेशन के लिए कस्बा जा सके। घर के कामों से फुर्सत पाकर उसने पूछा-“बाबू, मैं बीए करूँ या बीएससी?
दिनेश के दिमाग में पत्नी की बीमारी, दिव्या की आगे की पढ़ाई, छोटी बेटी और बेटे की देखभाल को लेकर मंथन चल रहा था। वे दिव्या को आगे पढ़ाने के लिए न हाँ कर पा रहे थे और न ही रोकने की हिम्मत कर पा रहे थे। फिलहाल उन्होंने दिव्या से रजिस्ट्रेशन के लिए कल जाने के लिए कह दिया।
दिनेश दिनभर असमंजस में पड़ा रहे। शाम में उसने रागिनी से दिव्या की पढ़ाई की बात की-“रागिनी मेरी समझ में नहीं आ रहा कि दिव्या को आगे कैसे पढ़ाऊँ? यदि वह पढ़ने जाएगी तो घर का काम कौन करेगा?”
“पिछले तीन सालों से घर का काम वही तो कर रही है, आगे भी वह कर लेगी।”
“रागिनी तब की बात और थी। उसका स्कूल गाँव में था। अब उसे पढ़ने के लिए गाँव से दस किलोमीटर दूर जाना पड़ेगा।”
“तो क्या हुआ। गाँव के कई बच्चे पढ़ने जाते हैं। वह भी उन्हीं के साथ चली जाएगी।”
“अरे! तुम समझ नहीं रही। उसे कालेज आने जाने में ही दो घण्टे लगेंगे। घर का काम और पढ़ाई कैसे कर पाएगी?”
दोनों उसकी पढ़ाई को लेकर चर्चा करते रहे। जब दोनों किसी एक बात पर सहमत नहीं हो पाए तो दिव्या से बात करने का निश्चय किया।
दिनेश ने पूछा- “दिव्या! तुम अब पढ़ाई छोड़ दो।”
. पर ऐसी क्या मजबूरी है बाबू?” बड़ी हिम्मत करके पहली बार उसने बाबू से सवाल किया था।
“दिव्या, मैं भी चाहता हूँ कि तुम आगे पढ़ो। तुम्हें बताने की जरूरत है क्या? तुम्हारी माँ बीमार रहती है। स्कूल तो गाँव में ही था। तुम पढ़ाई के साथ-साथ घर भी संभाल लेती थी। अब कालेज के लिए दूर जाना पड़ेगा।”
बीमार होने के कारण रागिनी को दिनेश की बातों का समर्थन करना पड़ा। उसे भी दिव्या से सकुचाते हुए पढ़ाई छोड़ने के लिए कहना पड़ा।
“ठीक हैं, जैसी आपकी मर्जी।” भारी मन से उसने कहा था। लेकिन उसके सपने टूटते नजर आ रहे थे। उसे अपना भविष्य अन्धकारमय लग रहा था। उसकी आँखें डबडबा आईं। उसके मुख से शब्दों के बजाय आँखों से आँसू बहने लगे। आज के आँसू उसकी हताशा, निराशा और दुःख के थे। उसे लगा कि बाबू के एक वाक्य ने उसके सपने छीन लिए।
दिव्या बाबू के सामने ज्यादा न बोल सकी। लेकिन उनके बाहर जाते ही उसने माँ से कहा- “मम्मी, अभी तक मैं पढ़ाई के साथ घर का काम भी कर लेती थी, अब भी कर लूँगी। मुझे आगे पढ़ने दो।”
“दिव्या पहले स्कूल गाँव में ही था। अब कॉलेज दूर है। पढ़ाई और घर का काम कैसे कर पाओगी?”
“मम्मी, मैं कर लूँगी।
दिव्या अपनी बीमार माँ की चारपाई को पकड़े रोये जा रही थी। माँ को बार-बार दिलासा दिलाती जा रही थी। माँ, माँ……… मैं पढ़ाई और घर का काम सब कर लूँगी। मुझे आगे पढ़ने दो। बेटी के आँसू देख रागिनी की आँखों में भी आँसू आ गए। वे अपने आपको धिक्कार रही थी। यदि वह बीमार न होती तो बेटी की पढ़ाई न छूटती। कुछ देर बाद दिव्या वापस घर के काम में लग गई।
पूरा दिन बीत गया। दिव्या घर के काम में लगी रही। शाम के समय उसकी छोटी बहन ने माँ को बताया कि दीदी ने आज कुछ नहीं खाया। माँ ने उससे पूछा कि तुमने दीदी से पूछा नहीं कि वह खाना क्यों नहीं खाई। उसने बताया कि मैंने पूछा था लेकिन वह कुछ बोली नहीं।
रागिनी का दिल बैठा जा रहा था। उसे समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करे? बेटी से पूछने की हिम्मत नहीं पड़ी क्योंकि वह पढ़ाई के साथ-साथ घर की सारी जिम्मेदारी निभा रही थी। तीन सालों से वह अपने छोटे भाई-बहन की माँ बन गई थी।
शाम को रागिनी ने हिम्मत जुटाकर दिनेश से फिर कहा, “दिव्या की पढ़ाई मत छुड़वाइये। उसने आज कुछ नहीं खाया। उसे पढ़ने दीजिए। जब वह घर का काम करने को तैयार है तो एक बार देख लीजिए।”
“रागिनी! मैं भी चाहता हूँ कि मेरी बेटी आगे पढ़े। पढ़कर अपने अरमान पूरे करे, लेकिन क्या करूँ? कैसे करूँ? मेरी समझ में नहीं आता। कालेज बहुत दूर है। पहले गाँव से दो किलोमीटर सड़क तक पैदल जाएगी फिर बस से। आने में कभी बस देर कर दी तो कैसे आएगी। और घर का काम कैसे होगा।”
“हो जाएगा, सब कुछ हो जाएगा। मेरी बेटी सब संभाल लेगी। उसे पढ़ने दीजिए।”
आखिर दिनेश को बेटी की जिद्द और पत्नी के साहस के सामने झुकना पड़ा। दिव्या सुबह जल्दी उठती। घर का सारा काम निपटाती और कालेज के लिए निकल जाती।
दिव्या का दूर से ही माँ, माँ…….. पुकारना, रागिनी को खुशियों से भर देता था। वह समझ जाती थी कि आज बेटी का कोई रिजल्ट आया है। उसका अंदाजा सही था। आज बीए की परीक्षा का रिजल्ट आया था। उसने अपनी कक्षा में सर्वाधिक अंक प्राप्त किए थे। बेटी की खुशी में कुछ देर के लिए ही सही रागिनी अपनी बीमारी भूल गई।
