Overview:कुणाल खेमू की संवेदनशील अदाकारी में ढली एक हल्की-फुल्की लेकिन विचारोत्तेजक नेटफ्लिक्स सीरीज़
‘सिंगल पापा’ एक परफेक्ट सीरीज़ नहीं है, लेकिन इसका दिल सही जगह पर है। यह हंसाने की कोशिश भी करती है, रुलाती भी है और कुछ जरूरी सवाल भी उठाती है। कभी-कभी ज्यादा मुद्दे समेटने की चाह इसे भटका देती है, लेकिन मजबूत कास्टिंग, चुस्त संवाद और कुणाल खेमू की शानदार परफॉर्मेंस शो को संभाले रखती है। अगर आप हल्की-फुल्की कॉमेडी के साथ समाज पर सवाल उठाने वाली कहानी देखना चाहते हैं, तो ‘सिंगल पापा’ एक ईमानदार कोशिश है।
Single Papa Review: अविवाहित पुरुषों को बच्चे गोद लेने की इजाज़त मिलनी चाहिए या नहीं—यह सवाल लंबे समय से समाज और सिस्टम के बीच अटका हुआ है। नेटफ्लिक्स की सीरीज़ ‘सिंगल पापा’ इसी बहस को केंद्र में रखकर एक ऐसी कहानी कहती है, जो दिल को छूती भी है और कई बार उलझाती भी है। कुणाल खेमू के अभिनय के सहारे आगे बढ़ती यह कहानी हल्की-फुल्की कॉमेडी के बीच रिश्तों की गहराई को टटोलती है। यह शो एक ऐसे आम आदमी की यात्रा दिखाता है, जो एक बच्चे की मौजूदगी से खुद बड़ा हो जाता है। हंसी, भावनाओं और सामाजिक सवालों के बीच झूलती यह सीरीज़ अपनी सरलता के कारण असर छोड़ती है।
कहानी और मूल विचार: एक बच्चा, जो जिंदगी बदल देता है
कहानी गौरव (कुणाल खेमू) की है, जिसे अपनी कार में छूटे एक नन्हे बच्चे से ऐसा जुड़ाव हो जाता है कि वह उसे गोद लेने का फैसला कर लेता है। यह सिर्फ एक व्यक्ति की पैरेंटिंग की कहानी नहीं, बल्कि उस सोच से टकराव है जो मानती है कि अकेला पुरुष बच्चे की परवरिश नहीं कर सकता। ‘सिंगल पापा’ इसी सोच को हल्के-फुल्के अंदाज़ में चुनौती देती है। हालांकि एक साधारण कहानी के लिए घटनाएं कुछ ज्यादा हो जाती हैं, लेकिन भावनात्मक स्तर पर यह सफर असर करता है।
गौरव का किरदार: कमजोर, उलझा और बेहद इंसानी
गौरव (कुणाल खेमू) ऐसा किरदार है, जो पहली नज़र में भरोसा नहीं जगाता। टूटा हुआ विवाह, माता-पिता के साथ रहना और पिता के शराबखाने में बेमन से काम करना—उसकी जिंदगी ठहरी हुई लगती है। लेकिन अमूल नाम के बच्चे के आने के बाद वही गौरव धीरे-धीरे बदलता है। उसकी झिझक, डर और असुरक्षा बहुत असली लगती है। यही अपूर्णता उसके किरदार को खास बनाती है।
गोद लेने की प्रक्रिया और सामाजिक टकराव
सामाजिक कार्यकर्ता रोमिला (नेहा धूपिया) गौरव के रास्ते की सबसे बड़ी बाधा हैं। वह न सिर्फ उसके पालन-पोषण कौशल पर सवाल उठाती हैं, बल्कि इस विचार पर भी हंसती हैं कि अविवाहित पुरुष अकेले बच्चे की परवरिश कर सकता है। इन दृश्यों में शो समाज की उस सोच को सामने रखता है, जो बराबरी की बात तो करता है, लेकिन अमल में पीछे रह जाता है। हालांकि कुछ टकराव जरूरत से ज्यादा सीधे और बनावटी लगते हैं।
पारिवारिक ड्रामा और उपकथाएं
गौरव की जिंदगी में चल रहा बदलाव उसकी बहन नम्रता (प्राजक्ता कोली) और गोल्डी (अंकुर राठी) की शादी के साथ चलता है। यहां जाति, वर्ग और नारीवाद पर दिए गए भाषण सुनने में प्रगतिशील हैं, लेकिन कई बार बनावटी भी लगते हैं। वहीं, अपर्णा का मां न बनना चाहने का फैसला और उस पर गौरव का गुस्सा कुछ अहम मुद्दों को दबा देता है। गौरव की मां पूनम (आयशा रजा) का मेकओवर और ‘साउथ दिल्ली’ अंदाज़ शो में अतिरिक्त ड्रामा जोड़ता है।
हास्य, सिटकॉम टच और सहायक किरदार
‘सिंगल पापा’ का हास्य सिटकॉम जैसा है—कभी जानबूझकर, तो कभी अनजाने में। कुछ दृश्य बेहद मज़ेदार बन पड़े हैं, खासकर पुरुष नैनी परबत सिंह के रूप में दया शेट्टी की मौजूदगी। उनका विशालकाय लेकिन कोमल दिल वाला किरदार शो की ताजगी बन जाता है। मनोज पाहवा और प्राजक्ता कोली के साथ कुणाल खेमू के सीन भी खास असर छोड़ते हैं।
कुणाल खेमू की परफॉर्मेंस: शो की सबसे बड़ी जीत
गौरव के किरदार में कुणाल खेमू के अलावा किसी और की कल्पना करना मुश्किल है। उनकी सबसे बड़ी खूबी यह है कि वे स्क्रिप्टेड डायलॉग्स को भी ऐसे बोलते हैं, मानो सब कुछ उसी पल गढ़ा जा रहा हो। हास्य और भावनात्मक दृश्यों के बीच संतुलन बनाना उन्हें बखूबी आता है। वे सह-कलाकारों को दबाते नहीं, बल्कि उनके साथ मिलकर दृश्य को बेहतर बनाते हैं—और यही एक मजबूत लीड एक्टर की पहचान है।
