Posted inहिंदी कहानियाँ

जरिया – गृहलक्ष्मी कहानियां

आखिर नंबर घुमाते ही कान चोंगे से सट जाते हैं । घंटी बज रही है । ‘हलो’ भी होने लगी । निगम ‘हलो’ को बहुत खींचते हैं…मगर प्रत्युत्तर में वह कुछ खींचती-सी खामोश हो आई । यूं…यूं मजा नहीं आएगा । फोन उसके चेहरे पर थिरकते इंद्रधनुष को अभिव्यक्त नहीं कर पाएगा । उसकी उत्तेजक खुशी मात्र सूचना बनकर रह जाएगी ।

Posted inहिंदी कहानियाँ

भीड़ साक्षी है- गृहलक्ष्मी कहानियां

……अचानक अस्पताल में हो-हंगामा मच गया, ‘क्या हुआ, क्या हुआ?’….कहते हुये लोग ‘अपातकालीन कक्ष’ की ओर भागने लगे। तीन बच्चे, एक महिला व एक पुरुष बुरी तरह छटपटा रहे थे। नीचे जमीन में पड़े वे इतने छटपटा रहे थे कि लगता था अब प्राण छोड़ें और तब प्राण छोड़ें।

Posted inहिंदी कहानियाँ

अपनेपन की महक – गृहलक्ष्मी लघुकथा

सोमेश ने घर में घुसते ही सभी को आवाज लगाई ,”चलो सभी ,सुगंधा (सोमेश की पत्नी ) नितिन ( बेटा ) नीति (बेटी) जल्दी इधर आ जाओ । नए घर का नक्शा बनकर आ गया है, जिसको जो भी चेंज कराने हो अभी बता देना, एक बार नक्शा फाइनल हो गया तो फिर कुछ नहीं हो सकता। ”

Posted inहिंदी कहानियाँ

सुभा – गृहलक्ष्मी कहानियां

जब कन्या का नाम सुभाषिणी रखा गया, तब कौन जानता था कि वह गूँगी होगी। उसकी दोनों बड़ी बहनों का नाम सुकेशिनी और सुहासिनी रखा गया था, अतः मेल के अनुरोध पर उसके पिता ने छोटी कन्या का नाम सुभाषिणी रखा। अब सब उसे संक्षेप में सुभा कहते।

Posted inहिंदी कहानियाँ

चोरी का धन – गृहलक्ष्मी कहानियां

महाकाव्य के युग में स्त्री को पौरुष के बल पर प्राप्त किया जाता था, जो अधिकारी होते वही रमणी-रत्न प्राप्त करते। मैंने कापुरुषता के द्वारा प्राप्त किया, यह बात जानने में मेरी पत्नी को विलंब हुआ। किन्तु, विवाह के बाद मैंने साधना की; जिसे धोखा देकर चोरी से पाया, उसका मूल्य प्रतिदिन चुकाया है।

Posted inहिंदी कहानियाँ

क्या नहीं हो सकता – गृहलक्ष्मी कहानियां

उसकी निगाह मुझ पर आकर टिक गई तो मुझे लगा कि वह मुझे कुछ पहिचानने की कोशिश कर रहा है। तभी उसने दूर से नाम लेकर मुझे आवाज लगाई और मेरी ओर बढ़ने लगा। मुझे भी यह चेहरा कुछ जाना पहचाना लग रहा था। मैंने दिमाग पर जोर डाला, ‘कौन हो सकता है यह आदमी? है भी निकट का, नाम लेकर साधिकार आवाज दी है उसने मुझे।’ किन्तु पुरजोर कोशिश करने के बाद भी मैं उसे पूरी तरह नहीं पहचान सका।

Posted inहिंदी कहानियाँ

दीदी – गृहलक्ष्मी कहानियां

किसी ग्रामवासिनी अभागिन के अन्यायी अत्याचारी पति के सब दुष्कृत्यों का सविस्तार वर्णन करते हुए पड़ोसिन तारा ने बड़े संक्षेप में अपनी राय प्रकट करते कहा‒ऐसे पति के मुँह में आग!

सुनकर जयगोपाल बाबू की पत्नी शशि ने बड़े कष्ट का अनुभव किया‒पति जाति के मुख में सिगार की आग छोड़ अन्य किसी दूसरी तरह की आग की किसी दशा में भी कामना करना स्त्री जाति को शोभा नहीं देता।

Posted inहिंदी कहानियाँ

राधा – गृहलक्ष्मी कहानियां

राधा का जवाब सुनते ही राघव का चेहरा तमतमा गया।

‘क्यों? आखिर क्यों ! तुम नहीं जानती तो और कौन जानता है?

‘कौन है वह जिससे मैं पूछने जाऊं? जब भी मैंने तुमसे पूछा, तुमने हमेशा ही उल्टा जवाब दिया।’

Posted inहिंदी कहानियाँ

चाय का चक्कर या चाय की महिमा – गृहलक्ष्मी कहानियां

चाय की चाह का जवाब कोई नहीं, हर सवाल का जवाब चाय होती है। इस देश के सभी वासी जानते हैं कि चाय की महिमा है अपरंपार। देखिए, इसी की एक बानगी।

Posted inहिंदी कहानियाँ

अतिथि – गृहलक्ष्मी कहानियां

काँठालिया के ज़मींदार मतिलाल बाबू सपरिवार नौका से अपने घर जा रहे थे। रास्ते में दोपहर के समय नदी किनारे की एक मंडी के पास नौका बाँधकर भोजन बनाने का आयोजन कर ही रहे थे कि इसी बीच एक ब्राह्मण बालक ने आकार पूछा, “बाबू, तुम लोग कहाँ जा रहे हो?” प्रश्नकर्ता की आयु पंद्रह-सोलह से अधिक न होगी।

Gift this article